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अहोई अष्टमी व्रत पर विशेष संयोग, संतान सुख के लिए करें ये खास उपाय, जानिए इसका महत्व और विधि विधान - Ahoi Ashtami vrat katha

Ahoi Ashtami 2023 हिंदू धर्म में व्रत एवं त्योहार का विशेष महत्व है. हिंदू धर्म में अहोई अष्टमी का विशेष माहात्म्य है. इस दिन महिलाएं संतान सुख और संतान की सलामती के लिए व्रत रखती हैं. शाम को तारे के दर्शन के बाद इस व्रत को तोड़ने का महत्व है. मान्यता है कि इस व्रत को रखने से संतान पर आने वाली सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं. (Ahoi Ashtami vrat date significance of Ahoi Ashtami vrat katha Ahoi Ashtami Puja muhurat)

Ahoi Ashtami 2023 date
अहोई अष्टमी व्रत

By ETV Bharat Haryana Team

Published : Nov 2, 2023, 10:24 AM IST

Updated : Nov 4, 2023, 4:21 PM IST

जानिए अहोई अष्टमी व्रत का महत्व और विधि-विधान.

कुरुक्षेत्र: सनातन धर्म में प्रत्येक व्रत एवं त्योहार का काफी महत्व बताया गया है. इसके प्रति सनातन धर्म के लोगों की काफी श्रद्धा भावना होती है. वहीं, हिंदू पंचांग के अनुसार 5 नवंबर के दिन अहोई अष्टमी का व्रत है. अहोई अष्टमी का व्रत कार्तिक माह में आने वाली शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है. यह हिंदू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण व्रत और त्योहार में से एक माना जाता है, क्योंकि सुहागिन महिलाएं करवा चौथ का व्रत अपने पति की दीर्घायु और उसकी सलामती के लिए रखती हैं तो वहीं अपने बच्चों के लिए माताएं अहोई अष्टमी का व्रत रखती हैं.

संतान सुख और संतान की सलामती के लिए अहोई अष्टमी व्रत: वैसे तो इस व्रत को वहीं माताएं रखती हैं जिसे बेटा होता है, लेकिन इस व्रत को वैसा महिलाएं भी रखती हैं जिसे बेटी है या कोई भी बच्चा नहीं है. ताकि उसके घर में संतान का जन्म हो और उसे माता का सुख प्राप्त हो. इस व्रत को सभी माताएं अपने बच्चों अच्छे स्वास्थ्य और जीवन में उन्नति के लिए रखती हैं. अगर करवा चौथ के व्रत की बात करें तो करवा चौथ व्रत चांद देखने के बाद खोला जाता है, जबकि अहोई अष्टमी का व्रत तारों के दर्शन करने के बाद खोला जाता है. आइए जानते हैं अहोई अष्टमी व्रत का महत्व क्या है और इसकी व्रत का विधि विधान क्या है.

अहोई अष्टमी व्रत पूजा का शुभ मुहूर्त:कुरुक्षेत्र तीर्थ पुरोहित पंडित पवन शर्मा ने बताया कि हिंदू पंचांग के अनुसार आश्विन महीने के कृष्ण पक्ष में जो अष्टमी आती है, उस अष्टमी के दिन ही अहोई अष्टमी का व्रत रखा जाता है. इस बार अहोई अष्टमी तिथि का प्रारंभ 5 नवंबर को दोपहर 1:00 बजे से शुरू होगा, जबकि इसका समापन 6 नवंबर को सुबह 3:13 होगा. इसलिए इस व्रत को 5 नवंबर के दिन ही रखा जाएगा. व्रत रखने वाली माताओं के लिए अहोई अष्टमी माता की पूजा करने का शुभ मुहूर्त 5 नवंबर को शाम के 6:42 बजे से शुरू होगा, जबकि यह मुहूर्त 7:00 बजे तक रहेगा. इस दौरान पूजा करने का सबसे ज्यादा महत्व होता है और उसकी पूजा का ज्यादा फल मिलता है. व्रत रखने वाली माताएं इस व्रत को तारे दर्शन करने के बाद खोलती हैं.

अहोई अष्टमी व्रत का महत्व: पंडित के अनुसार अहोई अष्टमी व्रत के दिन माता अहोई की पूजा अर्चना की जाती है. अहोई माता की पूजा के साथ-साथ माता पार्वती और भगवान भोलेनाथ की पूजा अर्चना भी की जाती है. इसमें सभी माताएं अपने बच्चों की लंबी उम्र और उनके स्वस्थ शरीर के लिए अहोई माता से उनके संतानों की कुशल मंगल के लिए कामना करता हैं. मान्यता है कि जिन महिलाओं को संतान प्राप्ति नहीं होती वह संतान प्राप्ति के लिए भी अहोई माता के लिए अहोई अष्टमी व्रत को रखती हैं. एक मान्यता यह भी है कि यह भगवान भोलेनाथ के परिवार से संबंधित व्रत है. माता पार्वती ने अपने बच्चों की दीर्घायु और उनके स्वास्थ्य के लिए ही इस व्रत को रखा था, तभी से यह परंपरा चली आ रही है. मान्यता है कि जो भी माता अपने पुत्र के लिए इस व्रत को रखती हैं, उसकी हर प्रकार की समस्या दूर हो जाती है. साथ ही उस पर से बड़ी से बड़ी बला टल जाती है.

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अहोई अष्टमी व्रत विधि: पंडित के अनुसार अहोई अष्टमी के दिन जो भी माताएं अपने बच्चों के लिए व्रत रखना चाहती हैं, वह सुबह सूर्योदय से पहले जो भी खाना (सात्विक) चाहती हैं, वह खा लें. उसके बाद स्नान आदि से निवृत्त होकर नए वस्त्र पहन कर अहोई अष्टमी माता के आगे पूजा अर्चना करें. माता के आगे देसी घी का दीपक जलाकर हाथ जोड़कर प्रार्थना करें और व्रत रखने का प्रण लें. शुभ मुहूर्त के समय अहोई माता की पूजा अर्चना करें. पूजा में रोली, चावल (अक्षत), कुछ फल लें. हालांकि यह हर एक क्षेत्र के अनुसार अलग-अलग परंपरा हो सकती है.

अष्टमी के दिन अहोई माता की पूजा-आराधना के विशेष महात्म्य: दोपहर बाद करीब 2:00 बजे अहोई माता के आगे फल के प्रसाद का भोग लगाकर किसी बुजुर्ग महिला से अहोई अष्टमी व्रत कथा सुनें. उसके बाद बुजुर्ग महिला को अपनी इच्छानुसार कुछ भी भेंट दें. अहोई अष्टमी व्रत कथा सुनने से पहले व्रत रखने वाली माताएं अपनी साड़ी या चुनरी के एक कोने में थोड़े से चावल बांध लें. तारे देखने के बाद तारों को अर्घ्य दें तो उस समय अर्घ्य देते हुए इन चावलों का प्रयोग करें.

संतान प्राप्ति के लिए माता से करें प्रार्थना: कथा सुनने के समय आपको एक धागे में चांदी की बनी हुई अहोई माता की फोटो और उसमें चांदी के बने हुए स्याहू डालें और उसको अपने गले में बांधे या डाल लें. कथा सुनने के बाद चाय इत्यादि ले लें, फिर रात के समय तारों को अर्घ्य देकर अपना व्रत खोलें. अहोई माता से हाथ जोड़कर निवेदन करें कि उसके बच्चों की सलामती के लिए प्रार्थना करें. वहीं, जिन महिलाओं को संतान नहीं है वह संतान प्राप्ति के लिए व्रत रख रही हैं तो माता अहोई से संतान प्राप्ति के लिए प्रार्थना करें. इस दौरान माता का चित्र अपने घर की एक दीवार पर लगाते हैं और उसकी कुछ दिनों तक पूजा-अर्चना भी की जाती है.

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Last Updated : Nov 4, 2023, 4:21 PM IST

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