करनाल: सनातन धर्म में भगवान गणेश को सर्वप्रथम पूजनीय माना गया है. हिंदू पंचांग के मुताबिक माघ महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी का पर्व आने वाला है. इसे गणेश जयंती के रूप में मनाते हैं. पंडित विश्वनाथ ने बताया कि देश के अलग-अलग हिस्सों में गणेश जयंती को माघी गणेशोत्सव, माघ विनायक चतुर्थी, वरद चतुर्थी और वरद तिल कुंद चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है. इस साल माघ माह में आने वाली गणेश चतुर्थी बुधवार 25 जनवरी को है और बुधवार का दिन भी भगवान गणेश का प्रिय माना जाता है. साथ ही बुधवार को ही रवि योग, शिव योग भी निर्मित हो रहा है.
माघ माह की विनायक चतुर्थी का शुभ मुहूर्त: माघ माह के शुक्ल पक्ष की गणेश चतुर्थी तिथि 25 जनवरी को दोपहर 3.22 मिनट से आरंभ होगी और इस तिथि की समाप्ति 25 जनवरी, बुधवार को दोपहर 12.34 मिनट तक होगी. हालांकि उदया तिथि के अनुसार गणेश जयंती 25 जनवरी, बुधवार को है. ऐसे में गणेश चतुर्थी पर पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 11.29 मिनट से दोपहर 12.34 मिनट तक रहेगा और बुधवार को ही रवि योग सुबह 06.44 मिनट से 08.05 मिनट तक रहेगा. परिघ योग 24 जनवरी को रात 9.36 मिनट से 25 जनवरी शाम 6.15 मिनट तक रहेगा. शिव योग 25 जनवरी शाम 6.15 मिनट से 26 जनवरी सुबह 10.28 मिनट तक रहेगा.
भद्रा और पंचक का समय: गणेश जयंती पर भद्रा 25 जनवरी को सुबह 01.53 मिनट से शुरू हो जाएगी, जो दोपहर 12.34 तक है. वहीं, पंचक भी 27 जनवरी को रहेगा. भद्रा में किसी भी प्रकार के शुभ कार्य करना अच्छा नहीं माना जाता है. हालांकि पंचक और भद्रा के दौरान पूजा पाठ किया जा सकता है.
विनायक चतुर्थी व्रत विधि: इस दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान किया जाता है, जिसके बाद भक्त व्रत करने का संकल्प लेते हैं. इस दिन किया गया व्रत सूर्योदय से शुरू हो जाता है और अगले दिन सूर्योदय होने के बाद इसका पारण किया जाता है. संकल्प लेने के बाद भगवान गणेश जी की प्रतिमा पूजा स्थल में स्थापित की जाती है. उसके बाद श्री गणेश जी को स्नान करवाया जाता है और प्रतिमा पर गंगाजल का छिड़काव किया जाता है. जिसके बाद पुराने वस्त्रों को हटाकर नए वस्त्र पहनाएं जाते हैं.
इस दिन व्रत करने वाले भक्त पूरे दिन में मात्र एक बार ही भोजन ग्रहण कर सकते हैं. गणेश जी के मंत्रों के साथ पूजा की जाती है और पूजा में धूप, नैवेद्य, फूल, दीपक, पान का पत्ता और फल इत्यादि अर्पित किए जाते हैं. इस प्रकार दिन में दो बार पूजा करने के बाद कथा को पढ़ा या सुना जाता है. पूजा के पूर्ण हो जाने पर फल और मिठाई को प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है. इस शुभ दिन पर पूजा के बाद दान अवश्य करना चाहिए.