करनाल: हिंदू पंचांग के आधार पर ही हिंदू धर्म में प्रत्येक तिथि और त्योहार मनाए जाते हैं. वहीं, हिंदू पंचांग के आधार पर आज यानी मंगलवार, 26 सितंबर को वामन द्वादशी है. वामन द्वादशी का सनातन धर्म में बहुत ही ज्यादा महत्व बताया गया है. विष्णु भगवान के वामन अवतार लेने के चलते ही वामन द्वादशी मनाई जाती है. क्योंकि, राजा बलि ने तीनों लोक पर कर लिया था और उनसे अधिकार वापस लेने के लिए ही उन्होंने वामन अवतार लिया था. यह अवतार उन्होंने भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की 12वीं तिथि को लिया था, जिसको वामन द्वादशी के नाम से जाना जाता है. आइए जानते हैं कि वामन द्वादशी का महत्व क्या है और उसकी पूजा की विधि क्या है.
वामन द्वादशी की तिथि का प्रारंभ: हिंदू पंचांग के अनुसार 26 सितंबर को वामन द्वादशी मनाई जा रही है 26 सितंबर को ही वामन द्वादशी का व्रत रखा जाएगा. हिंदू पंचांग के अनुसार वामन द्वादशी का आरंभ 26 सितंबर को सुबह 5:00 बजे से हो रहा है जबकि इसका अगले दिन 27 सितंबर को सुबह 1:45 बजे होगा.
वामन द्वादशी का महत्व: पंडित विश्वनाथ ने बताया कि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार वामन द्वादशी का सनातन धर्म में बहुत ही ज्यादा महत्व है क्योंकि भगवान विष्णु ने भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की 12वीं तिथि यानी द्वादशी के दिन वामन अवतार लिया था भगवान विष्णु ने धरती पर अधर्म का नाश करने के लिए 10 अवतार लिए थे जिनमें से उसका वामन अवतार पांचवा अवतार था. इस दिन में विशेष तौर पर भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की जाती है और उनके साथ ही उनके वामन अवतार की पूजा अर्चना की जाती है. मान्यता है कि इस दिन वामन अवतार की पूजा करने से इंसान के अंदर का अहंकार खत्म हो जाता है और साथ ही लोग बुराई से अच्छाई की तरफ बढ़ते हैं. इस दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा करने से इंसान के सभी बुरे कर्म से उसकी मुक्ति मिल जाती है जो भी इंसान वामन द्वादशी के दिन विधि विधान से व्रत करते हैं उनको सभी पापों से छुटकारा मिल जाता है.
व्रत व पूजा का विधि विधान:पंडित विश्वनाथ ने बताया 26 सितंबर के दिन यानी वामन द्वादशी के दिन इंसान को सुबह सूर्योदय से पहले उठकर पवित्र नदी या तालाब में स्नान करने चाहिए उसके बाद उन्होंने अपने घर के मंदिर में भगवान विष्णु के वामन अवतार की मूर्ति स्थापित करनी चाहिए मूर्ति स्थापित करने से पहले अपने मंदिर की साफ सफाई अच्छे से करें जहां पर मूर्ति स्थापित करनी है वहां पर गंगाजल का छिड़काव करें. गंगाजल का छिड़काव करने के बाद वहां पर पीले रंग का कपड़ा बिछा कर भगवान वामन अवतार के लिए चौकी बनाए और उस पर वामन अवतार या भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित करें. अगर भगवान विष्णु के वामन अवतार की मूर्ति नहीं है तो वह भगवान विष्णु की मूर्ति की विधि विधान से पूजा करें.
श्रवण नक्षत्र में भगवान वामन की पूजा काल विशेष महत्व: हिंदू पंचांग के अनुसार वामन द्वादशी के दिन श्रवण नक्षत्र लग रहा है और श्रवण नक्षत्र में भगवान वामन की पूजा करने का विशेष फल मिलता है. क्योंकि शास्त्रों में बताया गया है कि इस द्वादशी के दिन भगवान वामन ने श्रवण नक्षत्र और अभिजीत मुहूर्त में महर्षि कश्यप और माता अदिति के घर में जन्म हुआ था. पूजा करने के दौरान सबसे पहले भगवान वामन अवतार के आगे देसी घी का दीपक जलाएं. उसके बाद उनको पीले रंग के फल, फूल, मिठाई और वस्त्र अर्पित करें.
वामन द्वादशी गरीबों को भोजन कराने से विशेष फल की प्राप्ति: अगर कोई इंसान इस दिन वामन द्वादशी का व्रत रखना चाहता है तो वह पूजा करने के बाद व्रत रखने का प्रण लें. पूजा करने के बाद भगवान विष्णु के वामन अवतार को दही और चीनी का भोग अवश्य लगाएं. इस दिन आप भगवान वामन की कथा भी पढ़ें और उनकी आरती भी करें. शाम के समय व्रत खोलने से पहले भगवान वामन अवतार की पूजा अर्चना करने के बाद उनको प्रसाद का भोग लगाएं. उसके बाद गरीबों और जरूरतमंद लोगों को भोजन कराएं और अपना व्रत का पारण कर लें. मान्यता है कि वामन द्वादशी के दिन गरीबों को भोजन कराने विशेष फल की प्राप्ति होती है.