करनाल: आजकल ज्यादातर किसान हार्वेस्टर से फसल की कटाई करना पसंद कर रहे (stubble burning problem in karnal) हैं, जिससे फसल के अवशेष खेत में ही रह जाते हैं. ज्यादातर किसान इन फसलों के अवशेष का इस्तेमाल न करके उसे खेतों में ही जला देते हैं. इन अवशेषों के जलने से पर्यावरण भी प्रभावित होता है.
वहीं दूसरी तरफ खेतों में फसल अवशेष जलाने से मिट्टी में पाए जाने वाले मित्र कीट भी नष्ट हो जाते हैं. जिससे जमीन की उर्वरा शक्ति भी घट जाती (stubble burning problem) है. आज देश में सरकारी, गैर सरकारी संस्थाओं के साथ व्यक्तिगत तौर पर भी लोग इससे निपटने के रास्ते निकाल रहे हैं. अगर आप भी पराली की समस्या से परेशान हैं तो इसको निपटाने के लिए कृषि यंत्रो की खोज की गई है जिसका इस्तेमाल कर आप भी इन समस्या बच सकते हैं.
अपने देश में वैसे तो सैकड़ों फसलों की खेती की जाती है, लेकिन इनमें से तीन-चार फसलें ही ऐसी होती हैं जिनके अवशेषों को इस्तेमाल करना किसानों के लिए सिरदर्द बन जाता है. इन फसलों के अवशेषों में धान, गेंहू और गन्ना अहम हैं. उन फसलों के अवशेषों के जलाने के कारण पूरा देश पर्यावरण की मार को झेलता है. ऐसा नहीं है कि इससे निपटने का कोई सुरक्षित तरीका नहीं है. देश के कृषि वैज्ञानिक लगातार इस क्षेत्र पर काम कर रहे (straw problem) हैं. जिला कृषि कल्याण अधिकारी सज्जन सिंह ने कहा कि आज हम किसान भाइयों को एक ऐसी मशीन के बारे में बताते हैं जो धान फसल अवशेष का प्रबंधन के साथ-साथ गेहूं की बिजाई भी करती है. कृषि विशेषज्ञ की चार मशीन को मिलाकर एक मशीन तैयार की गई है. जिसको सुपर सीडर मशीन कहा (super seeder machine use in karnal) जाता है. इसमें जो किसान पहले चार मशीन खरीदते थे उसके बजाय अब इस अकेली मशीन से धान फसल अवशेष का प्रबंधन भी होगा और साथ में किसान की गेहूं की बिजाई भी होगी.
करनाल में सुपर सीडर मशीन का इस्तेमाल ऐसा करने से किसान ना केवल अपनी जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ा सकेंगे बल्कि आर्थिक लाभ भी किसान को होगा. इस मशीन के प्रयोग करने से किसान को लगभग 5 हजार का आर्थिक लाभ होगा. साथ ही आगे आने वाली फसल की पैदावार भी अच्छी होगी. हरियाणा सरकार में कृषि विभाग की इस मशीन की कीमत दो लाख से दो लाख चालीस हजार तक रखी गई है. लेकिन कृषि इस मशीन पर 50% से लेकर 80% अनुदान देता है.
अगर कोई किसान इसको अकेला लेना चाहता है तो उसको 50% अनुदान दिया जाता है. वहीं अगर किसानों का एक समूह इसको लेना चाहता है तो उस पर 80% अनुदान दिया जाता है. बीते वर्ष ही हरियाणा में जितने किसानों ने इस मशीन के लिए आवेदन किया था सभी किसानों को हरियाणा सरकार व कृषि विभाग की तरफ से यह मशीन अनुदान पर दी गई थी.
पराली जलाने से ना केवल वायु दूषित होकर पर्यावरण को खतरा पैदा कर रहा है बल्कि इससे मिट्टी की गुणवत्ता भी खराब हो रही है. क्योंकि पराली जलाने से खेत की मिट्टी में मौजूद ऑर्गेनिक, कार्बन, नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश को नुकसान हो रहा है. खेत की नमी भी मारी जा रही है, जिससे किसानों को दोहरा नुकसान हो रहा है. पर्यावरण और मिट्टी की उर्वरता के लिए समस्या बन चुकी है. इस पराली का निपटारा करने के लिए सुपर सीडर मशीन का इस्तेमाल करना भी एक बेहद कारगर उपाय है.
इस मशीन की सहायता से किसान पराली की समस्या से ही निजात पाने के साथ अपने खेतों की एक साथ कम समय और कम लागत में जुताई और बुवाई का काम कर सकते हैं. यह मशीन पराली के छोटे-छोटे टुकड़े कर खेत में बिछाने के साथ ही उर्वरक डालने और बीज बोने का काम भी करती जाती है. सुपर सीडर को 45 से 50 हॉर्स पावर वाले ट्रैक्टर से एक दिन में करीब 10 से 12 एकड़ खेत की बुवाई आसानी से की जा सकती है.
पराली जलाने से पर्यावरण प्रभावित इस तरह सुपर सीडर मशीन पराली वाले खेतों मे गेहूं की बुवाई की जाती है. जिससे किसानों की उपज भी बढ़ती है और खर्च भी कम आता है. फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले खरपतवार भी फसल में नहीं उग पाते. ज्यादा गर्मी पड़ने पर खेत का तापमान भी कम रहता है. जिससे फसल की पैदावार बढ़ती है. खेत में नमी अधिक समय तक रहने से सिंचाई कम लगती है.