करनाल: हिंदू धर्म में दिनों की गणना हिंदू पंचांग के आधार पर की जाती है. हिंदू पंचांग के आधार पर ही प्रत्येक व्रत एवं त्योहार मनाया जाते हैं. हिंदू पंचांग के अनुसार 14 अक्टूबर को सर्व पितृ अमावस्या (पितृ विसर्जन अमावस्या) है. इस दिन विधिवत रूप से पितरों के नियमित अनुष्ठान एवं तर्पण किए जाते हैं. यह श्राद्ध पक्ष का अंतिम दिन होता है, इसलिए इस अमावस्या का और भी ज्यादा महत्व बढ़ जाता है. इस दिन पितरों की आत्मा के शांति के लिए किए गए अनुष्ठान से पितरों की हर प्रकार की नाराजगी दूर हो जाती है. जानिए जानते हैं सर्व पितृ अमावस्या का शुभ मुहूर्त और इसका महत्व...
सर्व पितृ अमावस्या की तिथि:अमावस्या का सनातन धर्म में बहुत ही ज्यादा महत्व होता है. इस अमावस्या के दिन पितरों के निमित्त तर्पण और श्राद्ध कार्य किए जाते हैं. अगर किसी को अपने पितरों के मरने की तिथि मालूम ना हो या जाने अनजाने में कोई पितर छूट गया तो अमावस्या के दिन उनके लिए पिंडदान किए जाते हैं. सर्व पितृ अमावस्या का आरंभ 13 अक्टूबर को रात के समय 9:50 बजे से होगा, जबकि इसका समापन 14 अक्टूबर को रात के 11:24 बजे होगा.
अमावस्या के दिन तर्पण के 3 शुभ मुहूर्त: पंडित विश्वनाथ ने बताया कि 14 अक्टूबर को सर्व पितृ अमावस्या के दिन विशेष तौर पर पितरों के निर्माता तर्पण किए जाते हैं. तर्पण शुभ मुहूर्त के अनुसार करने चाहिए, क्योंकि अगर शुभ मुहूर्त में तर्पण करता है तो उसका कई गुना ज्यादा फल मिलता है. अमावस्या के दिन तर्पण करने के 3 शुभ मुहूर्त बन रहे हैं. पहला कुतुप मुहूर्त सुबह 11:44 बजे से दोपहर 12:30 बजे तक है. दूसरा रौहिण मुहूर्त दोपहर 12:30 बजे से 01:16 बजे तक है. तीसरा अपराह्न काल मुहूर्त दोपहर 01:16 बजे से 03:35 बजे तक है.
सर्व पितृ अमावस्या का महत्व: पंडित विश्वनाथ ने बताया कि हिंदू धर्म में वैसे तो प्रत्येक अमावस्या का बहुत ही ज्यादा महत्व होता है, लेकिन उन अमावस्या से ज्यादा बढ़कर सर्व पितृ अमावस्या का महत्व होता है. इसमें सभी सनातन धर्म के लोग अपने पितरों के निर्माता पिंडदान करते हैं और उनकी आत्मा की शांति के लिए पूजा अर्चना करते हैं. अमावस्या के दिन उन पितरों का सबसे पहले श्राद्ध किया जाता है, जिनकी मौत अमावस्या के दिन होती है. उसके बाद 16 श्राद्धों के अनुसार हर श्रद्धा के नाम का खाना निकाला जाता है. सबसे बड़ी बात यह है कि जिस इंसान को अपने पितरों के मृत्यु के बारे में जानकारी नहीं है वह अमावस्या के दिन बिना किसी तिथि के ही उनका श्राद्ध और पिंडदान कर सकते हैं. अमावस्या के दिन किसी पवित्र नदी कुंड या तालाब में स्नान करने के बाद दान करने का महत्व है.