करनाल: आज के समय में खेती से मुनाफा लेने के लिए किसान को नई तकनीक और फसल के बारे में जानकारी होना बेहद जरूरी है. फसल के लिए सबसे पहले किसानों के उसके बीज के बारे में जानकारी लेनी चाहिए. इसी तरह से आलू की भी कई अलग अलग किस्में (Varieties of Potatoes) हैं जो जलवायु के हिसाब से उपयुक्त होती हैं. ऐसे ही बीच लगाकर किसान आलू की अच्छी पैदावार ले सकते हैं.
आलू की कितनी किस्में होती हैं- वरिष्ठ बागवानी अधिकारी डॉ सीबी सिंह ने बताया कि हरियाणा की भौगोलिक स्थित मृदा एवं जलवायु के अनुसार आलू की प्रजातियों को मुख्य रूप से दो वर्गों में बांटा गया है. पहली सब्जी वाली किस्में. जैसे कुफरी, चंद्रमुखी, कुफरी बहार, कुफरी पुखराज, कुफरी अशोक, कुफरी बादशाह, कुफरी लालिमा, कुफरी सिंदूरी, कुफरी सतलज तथा कुफरी आनंद हैं. दूसरे प्रकार की आलू की किस्में कुफरी चिप्सोना-1, कुफरी चिप्सोना-2 हैं.
आलू के लिए कौन सी मिट्टी अच्छी है- आलू की खेती (Potato Farming in Haryana) के लिए दोमट भूमि उपयुक्त मानी जाती है. भूमि में जल निकासी की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए. आलू की फसल के लिए मध्यम शीतोष्ण वाली जलवायु की आवश्यकता होती है. भारत में आलू उन क्षेत्रों में उगाया जाता है जहां पर दिन के समय तापमान 35 डिग्री सेंटीग्रेट से अधिक न हो तथा रात का तापमान 21 डिग्री सेंटीग्रेट से अधिक न हो. आलू की फसल की वृद्धि के लिए 15-25 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान उपयुक्त माना जाता है.
आलू का बीज कैसा होना चाहिए- आलू की फसल के लिए खेत में 2-3 जुताई के बाद बुवाई से पहले एक सिंचाई करके पाटा लगाकर खेत को समतल एवं भुरभुरा कर लेना चाहिए. आलू का बीज हमेशा विश्वसनीय स्रोतों विशेषकर सहकारी संस्थाओं एवं बीज उत्पादक एजेंसियों से ही लेना चाहिए. आलू की बुवाई के लिए 40-50 ग्राम वजन वाले अच्छे अंकुरित बीज का प्रयोग करें. सामान्य तौर पर आलू की एक हेक्टेयर फसल बोने के लिए 30-35 कुंतल बीज की आवश्यकता पड़ती है.
आलू में सिंचाई कितनी बार करें- बीज बोने से पहले शोधन करना अति आवाश्यक है. आलू की बुवाई से पहले बीज को 30 मिनट तक उपचारित करें. बीज कन्दी की छाया में सुखाकर ही बुवाई करनी चाहिए. आलू की फसल की बुवाई के लिए अक्टूबर का समय उचित रहता है. आलू की बुवाई में लाइन से लाइन की दूरी 60 सेंटीमीटर रखें. मेंड़ों में 8-10 सेंटीमीटर की गहरे में बुवाई करें. आलू की फसल में अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए 7-10 सिंचाइयों की आवश्यकता पड़ती है. भारी मृदा में बुवाई के 10-12 दिन बाद अंकुरण से पहले पहली सिंचाई करनी चाहिए. आलू में दूसरी सिंचाई बुवाई के 20-22 दिन बाद तथा तीसरी सिंचाई टापड्रेसिंग एवं मिटटी चढाने के तुरंत बाद कन्द बनने की प्रारम्भिक अवस्था में करें. अंतिम सिचाई खुदाई के लगभग 10 दिन पहले बंद कर देना चाहिए.
आलू में कितना उर्वरक इस्तेमाल करें- आलू की अच्छी फसल के लिए 180 किलो नाइट्रोजन, 60 किलो फास्फोरस, तथा 100 किलो पोटाश की आवश्यकता पड़ती है. यदि मृदा में जस्ता एवं लोहा जैसे सूक्ष्म तत्वों की कमी है तो 25 किलो जिंक सल्फेट और 50 किलो फेरस सल्फेट को प्रति हेक्टेयर की दर से उर्वरकों के साथ बुवाई के पहले खेत में डालना चाहिए.