अमित शाह की रैली में कर्मचारियों की ड्यूटी पर सियासी जंग चंडीगढ़: मुख्यमंत्री मनोहर लाल के गृह जिले करनाल में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की 2 नवंबर को रैली है. बीजेपी की इस रैली को लेकर विपक्ष सरकार को जमकर घेरा रहा है. विपक्ष आरोप लगा रहा है कि सरकार ने करनाल में होने वाली अमित शाह की रैली को सफल बनाने के लिए प्रदेशभर के कर्मचारियों की ड्यूटी लगाई है. यानी रैली में भीड़ जुटाने का जिम्मा सरकारी कर्मचारियों को दिया गया है.
अभय चौटाला ने बोला हमला- इस मुद्दे पर इनेलो के प्रधान महासचिव अभय चौटाला का कहना है कि सीएम के कार्यक्रमों में भी लोगों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं होता. खासतौर पर पंचायतों ने भी उनका बहिष्कार कर रखा है. ऐसे में बीजेपी के लिए अपने कार्यक्रमों में भीड़ जुटाना चुनौती बन गई है. जिसको देखते हुए भाजपा ने अब नई चाल चली है. सरकार ने अलग-अलग कार्यालय में आदेश जारी किया है कि आप अपने कर्मचारियों को 2 तारीख की रैली में शामिल करने के लिए लाएं. डिपो धारकों की भी पांच-पांच लोगों को लाने की जिम्मेदारी लगाई गई है. इसके साथ ही शिक्षा विभाग ने एचकेआरएन के तहत लगाए गए अध्यापकों को भी शामिल होने का आदेश जारी किया है.
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कांग्रेस अध्यक्ष उदयभान के निशाने पर सरकार- हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष चौधरी उदयभान का कहना है कि सरकार HKRN के तहत भर्ती हुए अध्यापकों की रैली में ड्यूटी लगाई है. जो कि बेहद शर्मनाक है. प्रदेश में कांग्रेस की बढ़ती ताकत के सामने बीजेपी के पन्ना प्रमुख फेल हो चुके हैं. जिसके चलते अब बीजेपी प्रदेशभर के कर्मचारियों का सहारा ले रही है. उनका कहना है कि करनाल में रैली के फ्लॉप होने के डर से बीजेपी ने भीड़ जुटाने के लिए कर्मचारियों और डिपो धारकों की ड्यूटी लगाई है.
विपक्ष के आरोपों पर क्या कहती है बीजेपी- विपक्ष के आरोपों पर प्रदेश सरकार के सूचना विभाग के मीडिया सचिव प्रवीण अत्रे का कहना है कि विपक्ष के आरोप बीजेपी की जन हितैषी नीतियों के प्रति लोगों के बढ़ते उत्साह का परिणाम है. कर्मचारियों की ड्यूटी भीड़ जुटाने के लिए नहीं, बल्कि अंतिम पंक्ति में बैठे उस शख्स को कार्यक्रम स्थल तक लाने की है, जिसको सरकार की योजना का लाभ मिल रहा है. क्योंकि यह कार्यक्रम उन्ही अंत्योदय परिवारों के लिए समर्पित है. विपक्ष के पास कहने के लिए कुछ बचा नही है, ये उनकी बौखलाहट का परिणाम है.
राजनीतिक रैलियों में सामान्य जनता की अब बहुत ज्यादा रुचि नहीं रह गई है. किसी भी पार्टी की रैलियों में वो लोग आते हैं जो उसके एक्टिव वर्कर होते हैं. रैलियों में भीड़ जुटाना भी एक तरह का व्यापार है. लोग लेबर मार्किट से भी लोगों की भीड़ इकट्ठा कर लेते हैं. उनकी एक दिन की दिहाड़ी हो जाती है. अगर किसी पार्टी की 10 साल से सत्ता है तो लोगों में कहीं ना कहीं एंटीकबेंसी भी होती है. लोगों में इन बातों को लेकर रुचि कम हो जाती है, इसलिए भीड़ जुटाने के लिए ये सब किया जाता है. धीरेंद्र अवस्थी, राजनीतिक मामलों के जानकार
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