करनाल: कोरोना की दूसरी (Corona Second wave) लहर ने लोगों को ऐसे तोड़ा की श्मशान घाट में जलने वाली चिताओं के बाद अपनों की अस्थियों को भी ले जाने से लोग कतराने लगे हैं. करनाल के कई श्मशान घाट में अस्थियों का ढेर लगा हुआ है. जिन्हें लोग लेने अभी तक नहीं आए. बता दें कि, हिंदू धर्म के अनुसार चिता जलने के बाद अस्थियों को गंगा में प्रवाहित किया जाता है, पर कोरोना महामारी ने लोगों के अंदर ऐसा भय पैदा कर दिया है कि लोग अब अपनों की अस्थियां श्मशान घाट से लेने भी नहीं आ रहे.
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करनाल के ब्लडी बाईपास स्थित कोविड शमशान घाट में लभभग 400 कोरोना शवों का अंतिम संस्कार हो चुका है. हैरानी की बात ये है कि ज्यादातर अस्थियां अपनों का इंतजारकर रही हैं. करनाल के श्मशान घाट में अस्थिगृह पूरी तरह से भर चुके हैं. इसके बाद भी कई लोगों की अस्थियों को पॉलीथिन या बैग में भरकर दीवारों पर लटका गया है ताकि किसी का परिजन अगर अपनों की अस्थियों को लेने आये तो ले जा सके.
हरियाणा में कोरोना से मरने वालों की अस्थियां लेने नहीं आ रहे लोग अपनों का इंतजार कर रही अस्थियां
समाजसेवी सुनिल मैदान की मानें तो यहां रखी ये अस्थियां उन लोगों की हैं जिनकी कोरोना से मौत हुई है. इनमें कुछ ऐसी भी हैं जो दिल्ली, उत्तर प्रदेश, पंजाब के लोग करनाल के अस्पतालों में कोरोना संक्रमित होने पर भर्ती हुए थे और उनकी अस्पताल में ही मौत हो गई. उनका भी अंतिम संस्कार इस श्मशान घाट में किया गया, जिनकी अस्थिया यहां रखी हुई हैं.
करनाल नगर निगम (Karnal Municipal Corporation) कर्मचारी प्रदीप ने बताया कि हमारी परंपरा के अनुसार इन अस्थियों को गंगा में प्रवाहित किया जाता है पर पिछले 1 महीने से ये अस्थियां इस श्मशान घाट में ऐसे ही रखी हुई हैं. इन अस्थियों के परिवार वालों को फोन करके इन्हें ले जाने के लिए कहा जाता है तो वे लोग कोरोना, लॉकडाउन और बीमारी की बात कह देते हैं. इन अस्थियों को लेकर समाज सेवी प्रदीप अरोड़ा ने कहा कि अगर लोग इन अस्थियों को लेने नहीं आते तो वह खुद इन्हें अपने श्मशान घाट के कमेटी के लोगों के साथ मिलकर गंगा में हिंदू धर्म अनुसार प्रवाहित कर देंगे.
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कोरोना महामारी में मरने वाले कई लोगों को ना तो अपनों का कंधा नसीब हो रहा है और ना ही अपने उनकी अस्थियों को विसर्जित कर पा रहे हैं. जबकि डॉक्टर भी कई बार कह चुके है कि अस्थियों से कोरोना होने की कोई संभावना नहीं है, लेकिन फिर भी लोग डरे हुए हैं. अब इन अस्थियों को अपनों का इंतजार है कि शायद उनके अपने आएंगे और इन्हें गंगा में विसर्जित कर उन्हें मुक्ति दिलाएंगे.