करनाल:मौसम में बदलाव के साथ ही सरसों के बाद अब तेला व चेपा रोग गेहूं की फसल को भी चपेट (chepa disease in wheat crop) में ले रहा है. कृषि विशेषज्ञों की मानें तो यह रोग उन फसलों में अधिक आता है, जो काले रंग में एकदम कच्ची हो तथा दूसरा जो फसल देती हो. जिले के किसानों को इस रोग के कारण उनकी पैदावार घटने का भय सता रहा है. जो फसलें इस समय बालियां निकाल रही हैं, उन गेहूं की फसल में काले रंग का चिपचिपा सा रोग आया हुआ है. तेला व चेपा रोग फसलों का रस चूसने में लगा हुआ है जिसका प्रभाव फसल की बढ़ोतरी पर पड़ रहा है.
ऐसे में फसलों को इस रोग से बचाने के लिए क्या उपाय करने चाहिए. इसके लिए ईटीवी भारत की ने कृषि विशेषज्ञ डॉ. बलबीर भान सिंह से बात कर एक रिपोर्ट तैयार की है. जिसमें गेहूं की फसल में पड़ने वाले चेपा रोग की रोकथाम और बचाव के उपाय को विस्तार से समझाया (chepa disease prevention) गया है. साथ ही इस रोग के लक्षणों के बारे में भी बताया है. जिससे किसान अपनी फसल को इस रोग से बचाने में कारगर साबित हो और फसल की पैदावार पर कोई प्रभाव नहीं पड़े.
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तेला व चेपा रोग से कैसे करें रोकथाम: कृषि विशेषज्ञ डॉ. बलबीर भान सिंह ने बताया कि इस रोग से बचाव के लिए किसानों को 60 दिन से बड़ी फसल में यूरिया नहीं डालनी चाहिए. डॉ. बलबीर भान ने बताया कि गर्म दिन आते ही फरवरी तथा मार्च के आरंभ में यह रोग आता है. उन्होंने कहा कि ऐसे मौसम में फसलों में थोड़ा पीला पन रखकर ही फसल को इस रोग से बचाया जा सकता है. रोग होने पर उपाय के लिए डॉक्टर ने बताया कि यह अधिक घातक रोग नहीं है. अगर समय पर दवा का छिड़काव कर दिया जाए, तो इस पर काबू पाया जा सकता है.