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करनाल: पराली जलाने को रोकने के लिए किसानों को किया जाएगा जागरुक

करनाल जिला उपायुक्त ने प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए किसानों से अपील की है. यह अपील किसानों से पराली जलाने को लेकर है.

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Published : Sep 29, 2019, 7:57 AM IST

पराली जलाने को रोकने के लिए जागरुकता अभियान

करनाल: जिला उपायुक्त विनय प्रताप सिंह ने प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए किसानों से अपील की है. यह अपील पराली को जलाने से रोकने के लिए है.

किसानों से की अपील

इसके लिए उपायुक्त ने जिलें के सभी खंड मुख्यालयों पर जाकर किसानों को पराली जलाने से रोकने के लिए अपील की है. करनाल में पराली से धन कमाने के बारे में जागरूकता और प्रचार प्रसार वैन को हरी झंडी दिखाई. उन्होंने बताया कि किसान खेतों में निकालने वाली पराली के स्ट्रा बेलन मशीन से बंडल बनाकर उसे बेच सकते हैं.

पराली जलाने को रोकने के लिए जागरुकता अभियान, देखें वीडियो

पराली जलाने से रोकने के लिए की अपील

कहा कि इसको लेकर प्रचार वाहन भी गांव-गांव जाकर किसानों को पराली ना जलाने के लिए जागरूक करेगा. उपायुक्त विनय प्रताप ने कहा कि गत 2 वर्षों के दौरान फसल अवशेष प्रबंधन के तहत किसानों द्वारा जिस तरह जिला में स्थापित कस्टम हायरिंग सेंटर के माध्यम से तथा व्यक्तिगत तौर पर भी कृषि मशीनों का प्रयोग किया गया है उससे फसल अवशेष अथवा पानी में आग लगाने के मामले में 40 से 50% तक की गिरावट आई है.

पराली जलाने से होती है भूमि की उपजाऊ शक्ति कम

आपको बता दें कि खेतों में पराली जलाने से मिट्टी की उपरी सतह जल जाती है, जिससे भूमि की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है। अगली फसल के लिए ज्यादा पानी, खाद कीटनाशक दवाइयों का इस्तेमाल करना पड़ता है। अगर किसान खेतों में पराली दबा देते हैं तो भूमि की उपजाऊ शक्ति कम नहीं होगी, यही पराली खाद का काम करेगी और जहरीली खाद नहीं डालनी पड़ेगी। ऐसी जमीन में बीजी गई अगली फसल को भी कम पानी देना पड़ेगा.

सर्दी के मौसम में जलाई जाती है पराली

आपको बता दें कि हर साल सर्दी के मौसम में पराली जलाई जाती है. फसल की कटाई के दौरान ये पराली अवशेष के रुप में खेतों में बच जाते है. किसान इन्हीं अवशेषों को जलाते है. जिससे प्रदूषण फैलता है. जिससे हरियाणा समेत दिल्ली गैस चेंबर में बदल जाती है.

इसके लिए किसानों को किया जाएगा जागरुक

उन्होंने फसलों में आग लगाने की प्रवृति को गंभीर विषय बताते हुए कहा कि इससे निपटने के लिए किसानों को लगातार जागरूक किया जा रहा है. उम्मीद है कि अगले 2 सालों में इस अभियान में और अधिक सफलता मिलेगी.

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