करनाल: हिंदू धर्म में देवी देवताओं के साथ अपने परिवार के सदस्यों के लिए भी कई व्रत रखे जाते हैं. जिनकी हिंदू धर्म में काफी मान्यता होती है. हिंदू पंचांग के अनुसार 6 अक्टूबर को जीवित्पुत्रिका व्रत रखा जाएगा. जिसको जितिया व्रत भी कहा जाता है. हिंदू पंचांग के अनुसार ये व्रत आश्विन महीने कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है. ये व्रत महिलाएं अपने बच्चों की लंबी उम्र और संतान प्राप्ति के लिए रखती हैं.
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एकादशी की तरह इस व्रत को भी निर्जला रखा जाता है. जिसमें कुछ भी खाना-पीना नहीं होता. शास्त्रों में बताया गया है कि जो भी महिला इस व्रत को रखती है. उसकी संतान की आयु लंबी हो जाती है. जिन महिलाओं को संतान नहीं हो रही, तो संतान प्राप्ति के लिए भी इस व्रत को रखा जाता है. चलिए जानते हैं कि इस व्रत को रखने का विधि विधान क्या है. इस साल जीवित्पुत्रिका व्रत 6 अक्टूबर 2023 को रखा जाएगा.
पंडित विश्वनाथ ने बताया कि हिंदू पंचांग के अनुसार आश्विन महीने की अष्टमी तिथि 6 अक्टूबर को पड़ रही है. इस दिन ही इस व्रत को रखा जाएगा. हिंदू पंचांग के अनुसार अष्टमी तिथि 6 अक्टूबर सुबह 6:34 से शुरू होगी. जिसका समापन 7 अक्टूबर को सुबह 8 बजकर 8 मिनट पर होगा. ये व्रत 5 अक्टूबर से 7 अक्टूबर तक चलेगा. ये व्रत तीन दिन का होता है. इसलिए इस व्रत को कठिन व्रत कहा जाता है. इस व्रत को निर्जला व्रत के रूप में रखा जाता है, और इस व्रत में कई प्रकार की सावधानियां बरतनी होती है.
जीवित्पुत्रिका व्रत की पूजा की विधि: हिंदू पंचांग के अनुसार जीवित्पुत्रिका व्रत तीन दिन तक चलता है. पहले दिन व्रत रखने का प्रण लिया जाता है. दूसरे दिन व्रत रखा जाता है और तीसरे दिन व्रत का पारण किया जाता है. इस बार 5 अक्टूबर को व्रत रखने का प्रण लिया जाएगा. 6 अक्टूबर को व्रत रखा जाएगा. क्योंकि इस दिन सुबह से ही कुछ भी खाया पिया नहीं जाता. ये व्रत निर्जला व्रत होता है. 7 अक्टूबर को सुबह पूजा पाठ करके सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाएगा. उसके बाद व्रत का पारण किया जाएगा.
व्रत का महत्व: हिंदू पंचांग के अनुसार जीवित्पुत्रिका व्रत का सनातन धर्म में बहुत ही ज्यादा महत्व होता है. इस व्रत को ज्यादातर विवाहित महिलाएं रखती हैं. ये व्रत महिलाएं अपने बच्चों की लंबी आयु और उनके जीवन में सुख समृद्धि लाने के लिए रखती हैं. संतान की प्राप्ति के लिए भी इस व्रत को रखा जाता है. धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक जो महिलाएं इस व्रत को रखती हैं. उनके बच्चों पर से विपदा कट जाती है.
पंडित विश्वनाथ ने बताया कि जीवित्पुत्रिका व्रत के दिन सुबह सूर्योदय से पहले स्नान इत्यादि करके नए कपड़े धारण करने चाहिए. इस व्रत की खास बात ये है कि पूजा प्रदोष काल में की जाती है, पूजा के लिए जो स्थान बनाया गया है. वहां पर गाय के गोबर से पूजा स्थल हाथ से लीपा जाता है. उसकी सफाई की जाती है और फिर वहां पर एक छोटा सा तालाब बनाया जाता है.
व्रत के दौरान रखें ये सावधानी: शास्त्रों के अनुसार जीवित्पुत्रिका या जितिया व्रत रखने के दौरान कई प्रकार की सावधानियां रखनी होती हैं. व्रत रखने वाली महिलाओं के साथ उनके परिवार के सदस्यों को भी खाने में लहसुन, प्याज, मांस और मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए. तीनों दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए. अगर इन बातों को ध्यान में रखकर कोई महिला व्रत को पूरा करती है, तो ऐसी मान्यता है कि उनके बच्चे बहुत ही ज्यादा लायक होते हैं और उनकी लंबी आयु होती है.
जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा: पंडित विश्वनाथ ने बताया कि ये व्रत महाभारत काल से चला आ रहा है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब महाभारत के युद्ध के दौरान अश्वत्थामा के पिता की मौत हो गई थी. तब उन्होंने पिता की मौत का बदला लेने के लिए पांडवों के शिविर में घुस गए थे और उन्होंने वहां पर सो रहे पांच लोगों को द्रौपदी के पांच पुत्र समझ कर मार दिया था. इसके बाद अर्जुन ने क्रोधित होकर अश्वत्थामा को बंदी बना लिया और उसकी दिव्य मणि छीन ली थी.
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दिव्य मणि छीनने के बाद अश्वत्थामा और भी ज्यादा क्रोधित हो गया. जिसने क्रोध में आकर अभिमन्यु की पत्नी के गर्भ में पल रहे उसके बच्चे को मार दिया था. उसके बाद में कृष्ण भगवान ने उस बच्चे सभी पुण्य का फल देकर दोबारा जीवित कर दिया था और उसका नाम जीवित्पुत्रिका दिया गया था, तब से ही इस व्रत को रखने का प्रचलन शुरू हुआ जो अभी तक चलता आ रहा है.