करनाल: हिंदू धर्म में त्योहारों का काफी महत्व है. इसी के चलते मंगलवार को जानकी जयंती मनाई जा रही है. जानकी जयंती फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन के साथ मनाई जाती है. आप सभी को मालूम होगा कि माता सीता का एक नाम जानकी भी रहा है. सीता जी के जन्मोत्सव के बारे मे कुछ मत प्राप्त होते हैं, जिसके अनुसार फाल्गुन मास की अष्टमी तिथि को उनके जन्मोत्सव के रुप में मनाया जाता रहा है. इस दिन को सीता जयंती, सीता अष्टमी, जानकी जयंती आदि नामों से जाना जाता रहा है. धर्म ग्रंथों के अनुसार जानकी जयंती के पर्व का उल्लेख फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के रूप में भी प्राप्त होता है. इस दिन को सीता अष्टमी के रुप में मनाया जाता है. सीता माता की विशेष तौर पर पूजा की जाती है.
जानकी जयंती पूजन मुहूर्त का समय: हिंदू पंचांग के अनुसार जानकी जयन्ती का पर्व 14 फरवरी को मंगलवार के दिन मनाया जाएगा. अष्टमी तिथि का आरंभ 13 फरवरी को सुबह 09:45 पर होगा तथा अष्टमी तिथि की समाप्ति 14 फरवरी को 09:04 पर होगी.
पूजन एवं व्रत विधि: जानकी जयंती के दिन सबसे पहले सुबह उठकर स्नान करें. उसके बाद पूजा स्थान को गंगाजल से शुद्ध करें और दीप प्रज्वलित करें. इसके बाद माता सीता और श्री राम की पूजा करके व्रत का संकल्प लें. पूरे दिन व्रत का पालन करें और शाम में विशेष पूजन की तैयारी करें. श्री राम को पीले और माता सीता को लाल वस्त्र पहनाएं. इस दिन दोनों की संयुक्त रूप से ही पूजा करें. पूजा के समय आरती के बाद माता जानकी की कथा पढ़ें. इसके बाद जानकी जयंती मंत्रों का जाप करें और गुड़ से बने भोग को भगवान पर चढ़ाएं. बाद में इसी भोग से अपना व्रत भी पारण करें. इससे आपके जीवन में काफी सुख समृद्धि आएगी और आपके परिवार कुशल बना रहेगा.
पौराणिका कथाओं में सीता माता का वर्णन: बता दें कि हिंदू धर्म में माता सीता को श्री लक्ष्मी का स्वरूप माना गया है. देवी सीता संपूर्ण लोकों की स्वामिनी हैं और जगत के कल्याण के लिए वह हर कल्प में अवतरित होकर सृष्टि के संचालन को गति प्रदान करती हैं. इतना ही नहीं उपनिषदों में सीता उपनिषद में देवी सीता को शक्ति रूप में दर्शाया गया है. देवी सीता को प्रकृति की शक्ति एवं योगमाया का स्थान भी प्राप्त है. उनकी महिमा का उल्लेख रामायण ग्रंथ में विस्तार स्वरूप प्राप्त होता है और उपनिषदों में भी माता सीता के स्वरूप को बहुत ही सुंदर रूप से वर्णित किया गया है.
माता जानकी के जन्म को लेकर प्रचलित कथा: ऋषि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण के अनुसार एक बार मिथिला राज्य में भयंकर सूखा पड़ा और राजा जनक ने परेशान होकर इस समस्या के लिए एक यज्ञ का आयोजन किया. ऋषि ने यज्ञ संपन्न किया और धरती पर हल चलवाया. राजा जनक के हाथों धरती पर हल चलते ही धरती के भीतर उन्हें एक खुबसूरत संदूक मिला, जिसके अंदर एक सुंदर कन्या थी. राजा जनक की तब कोई संतान नहीं थी और उस कन्या को हाथ में लेते ही उन्हें पितृप्रेम की अनुभूति हुई. राजा जनक ने उस कन्या को अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार किया और कन्या का नाम सीता रखा.
जानकी जयंती का महत्व: हिंदू ग्रंथों के अनुसार इसी तिथि को माता सीता धरती पर अवतरित हुई थीं. इसलिए इसे उनकी जयंती या जन्मोत्सव की तरह मनाया जाता है. इस दिन विवाहित महिलाएं दांपत्य जीवन में सुख और घर की शान्ति के लिए व्रत रखती हैं. इसके साथ ही कुंवारी लड़कियां भी मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जैसे वर की प्राप्ति के लिए उपवास रखती हैं. मान्यता है कि जो भक्त इस दिन माता सीता और भगवान राम की पूरी श्रद्धा से आराधना करते हैं उन्हें सोलह महादान और पृथ्वी दान का फल प्राप्त होता है. इसलिए हिंदू धर्म में इसका काफी महत्व है.
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