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हरियाणा का 182 साल पुराना कब्रिस्तान, जहां दफन हैं ब्रिटिश साम्राज्य के सैनिक, अनदेखी से इतिहासकार नाराज

करनाल में ब्रिटिश साम्राज्य के समय का (British cemetery of Karnal) कब्रिस्तान मौजूद है. जो उस दौर में फैली महामारी की याद दिलाता है. जब मलेरिया और हैजा के कारण कई अंग्रेज सैनिकों की मौत हो गई थी. यह ​कब्रिस्तान गोथिक वास्तुकला से बना हुआ है लेकिन अब एएसआई की अनदेखी और उपेक्षा के कारण जर्जर हो रहा है. जिससे ​​इतिहासकार नाराज हैं.

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करनाल का 182 साल पुराना कब्रिस्तान, जहां दफन हैं ब्रिटिश साम्राज्य के सैनिक

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Published : Feb 18, 2023, 9:17 PM IST

करनाल का 182 साल पुराना कब्रिस्तान, जहां दफन हैं ब्रिटिश साम्राज्य के सैनिक

करनाल:करनाल में ओल्ड जीटी रोड पर राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (एनडीआरआई) के सामने स्थित है, ब्रिटिश काल के समय का कब्रिस्तान. इस कब्रिस्तान में यूरोपीय सैनिकों को दफनाया गया था. इसके साथ एक चर्च टॉवर भी बनाया गया था. करीब 8 हजार 172 वर्ग मीटर के कब्रिस्तान में यूरोपीय सैनिकों और उनके परिवार के सदस्यों की 500 से अधिक कब्रें हैं. यह सभी उस समय फैली मलेरिया और हैजा की महामारी के चपेट में आ गए थे. यह मकबरा समृद्ध औपनिवेशिक गोथिक वास्तुकला को दर्शाता है. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) इसे बनाए रखने का दावा करता है.

कब्रिस्तान की स्थिति से पता चलता है कि यह लंबे समय तक उपेक्षित रहा है. कब्रों और रास्तों के किनारे घनी झाड़ियां देखी जा सकती हैं. इतिहासकार इसे एएसआई की ओर से एक भारी कमी मानते हैं. करनाल का इतिहास बताते हुए इतिहासकार रामजीलाल का कहना है कि 1947 में जब अंग्रेजों ने देश छोड़ा तो भारतीयों और उनके बीच सौहार्दपूर्ण वातावरण था. भारतीय परंपराओं की सच्ची भावना में कब्रिस्तान को ठीक से बनाए रखा जाना चाहिए. कब्रिस्तान जहरीले सांपों का अड्डा बन गया है. हालांकि अब कुछ काम होना जरूर शरू हुआ है.

करनाल का यह कब्रिस्तान ब्रिटिश साम्राज्य के समय का है.

जब महामारी के कारण अंग्रेजों ने छोड़ा करनाल:इतिहासकारों के मुताबिक करनाल 1806 में ब्रिटिश हुकूमत के दौरान एक छावनी बन गया था. 1842 तक अधिकांश दफन यूरोपियन सैनिकों की मलेरिया और हैजा से मृत्यु हो गई थी. बाद में सेना की छावनी को 1843 में अंबाला में स्थानांतरित कर दिया गया. इतिहास के सेवानिवृत्त प्राध्यापक और हरियाणा इतिहास एवं संस्कृति अकादमी के निदेशक प्रोफेसर रामजीलाल का कहना है कि क्षेत्र में मलेरिया के प्रकोप के पीछे पश्चिमी जमुना (यमुना) नहर प्रमुख कारण था. यह नहर ब्रिटिश अधिकारियों की कॉलोनी (अब मॉल रोड) के पास से बहती थी. इसमें रिसाव के कारण मलेरिया महामारी बन गया था, जिससे उन्हें करनाल छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा.

महामारी से डर कर अंबाला चले गए अंग्रेज: इतिहासकारों की माने तो सेना छावनी को अंबाला स्थानांतरित करने का पहला कारण मलेरिया था. दूसरा कारण अंग्रेजों को पंजाब पर नियंत्रण करना था और अंबाला इस उद्देश्य के लिए एक आदर्श स्थान था. अंग्रेज पंजाब पर नजर गड़ाए हुए थे, लेकिन जब तक महाराजा रणजीत सिंह जीवित थे, तब तक वे उसे हासिल नहीं कर सके. क्योंकि उनके सामने सतलुज एक बड़ी चुनौती थी. 1839 में उनकी मृत्यु के बाद, ​अंग्रेजों ने पंजाब को नियंत्रित करने के लिए सेना छावनी को अंबाला में स्थानांतरित कर दिया.

इस कब्रिस्तान में अंग्रेजों के पूर्वज दफन हैं.

अंग्रेजों ने करनाल को बनाया नियोजित शहर: रामजीलाल का कहना है कि करनाल यूरोपीय तर्ज पर नियोजित पहला आधुनिक शहर होने का गौरव हासिल कर सकता है. 1806 में अंग्रेजों ने यहां एक सैनिक छावनी की स्थापना की थी. आधुनिक घरों, बैरकों और शॉपिंग सेंटरों का निर्माण किया. मलेरिया के प्रकोप के कारण, वे 1841 में अंबाला में स्थानांतरित होने लगे. 1843 में अंबाला में एक छावनी बन गई. वे बताते हैं कि यूरोपीय सैनिकों और उनके परिवार के सदस्यों की 500 के लगभग कब्रें 1806 से 1843 के बीच की अवधि की थी. उन्होंने कहा कि सैनिकों के नाम उनके पदनामों के साथ कब्रों पर उकेरे गए थे.

यहां है जनरल एनसन की कब्र: करनाल में ब्रिटिश काल का कब्रिस्तान में स्थित क्रबों में से एक ब्रिटिश शासनकाल के दौरान भारतीय सेना के कमांडर-इन-चीफ जनरल एनसन की थी, जिनकी 27 मई, 1857 को हैजे से मृत्यु हो गई थी. बाद में, उनके परिवार के सदस्यों ने उनके शरीर को खोदकर निकाला और इंग्लैंड ले गए. रामजी लाल का कहना है कि जनरल एनसन की कब्र के अवशेष अभी भी यहां मौजूद हैं. जनरल एंसन की मृत्यु तब हुई जब वह दिल्ली पर मार्च करने के लिए सेना की व्यवस्था कर रहे थे.

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