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कैथल में एससीबीसी समाज ने 23 फरवरी को भारत बंद का किया ऐलान - एससीबीसी समाज भारत बंद 23 फरवरी

एससीबीसी समाज ने 23 फरवरी को भारत बंद का ऐलान किया है. एसबीसी समाज का कहना है कि भारत बंद का हम समर्थन नहीं करते लेकिन धरना प्रदर्शन में शामिल होकर विरोध करके ज्ञापन जरूर देंगे.

sc decision on reservation
एससीबीसी समाज ने जताया SC के फैसले का विरोध

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Published : Feb 20, 2020, 8:39 AM IST

कैथलः प्रमोशन में आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर एससीबीसी समाज ने 23 फरवरी को भारत बंद का ऐलान किया है. एसबीसी समाज का कहना है कि भारत बंद का हम समर्थन नहीं करते लेकिन धरना प्रदर्शन में शामिल होकर विरोध करके ज्ञापन जरूर देंगे. हमारे लोगों ने इस संबंध में ये सामूहिक फैसला लिया है.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध

एससीबीसी प्रधान श्याम मांडी ने कहा कि हम चाहते हैं कि भारत खुलना चाहिए. अगर हमारे समाज के लोग भारत बंद कर रहे हैं तो वो मजबूरन हीं ये काम कर रहे हैं. प्रमोशन में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर आपत्ति जताते हुए उन्होंने कहा कि इस देश के सुप्रीम कोर्ट के जजों की मानसिकता बहुत छोटी है. वो अपनी मानसिकता के आधार पर फैसले दे रहे हैं.

एससीबीसी समाज ने जताया SC के फैसले का विरोध

RSS-BJP है संविधान के खिलाफ- श्याम मांडी

आरक्षण को लेकर आज सभी एससीबीसी और ओबीसी समाज की मीटिंग नेहरू पार्क में हुई है. एससीबीसी समाज प्रधान ने श्याम मांडी ने बताया कि इस बैठक में सभी का निर्णय है कि 23 तारीख को हम डीसी को ज्ञापन देंगे. उन्होंने कहा कि आरएसएस और बीजेपी शुरू से ही संविधान को मिटाने का काम कर रही है. ये दिन-रात यही कार्य करते हैं और संविधान को खत्म कर रहे हैं. उनका कहना है कि बीजेपी के इसी काम के चलते हमारे लोगों में भारी रोष है.

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23 फरवरी को भारत बंद का ऐलान

एससीबीसी समाज के प्रधान श्याम मांडी ने कहा कि हम 23 फरवरी को पार्क में इकट्ठे होकर लघु सचिवालय जाएंगे और जिला उपायुक्त को ज्ञापन सौंपेंगे. इस दौरान हमारा समाज भारत बंद का समर्थन करेगा. उन्होंने कहा कि ये सरकार पिछड़े वर्ग एससी, बीसी वर्ग की तरफ ध्यान नहीं दे रही. जिससे लोगों में काफी रोष है. इस रोष को जाहिर करने के लिए 23 फरवरी को भारत बंद रखा जाएगा और ज्ञापन दिया जाएगा.

क्या कहा था सुप्रीम कोर्ट ने

आरक्षण में प्रमोशन की मांग पर दायर याचिका को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कानून की नजर में इस अदालत को कोई संदेह नहीं है कि राज्य सरकार आरक्षण देने को बाध्य नहीं है. पदोन्नति में आरक्षण का दावा कोई मौलिक अधिकार नहीं है. ये पूरी तरह से राज्य सरकारों के विवेक पर निर्भर है कि उसे एससी और एसटी को आरक्षण या पदोन्नति में आरक्षण देना है या नहीं. इसलिए राज्य सरकारें इसको अनिवार्य रूप से लागू करने के लिए बाध्य नहीं हैं.

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