हरियाणा

haryana

ETV Bharat / state

कैथल: लॉकडाउन के चलते फीकी हुई पूंडरी की मशहूर फिरनी की मिठास - पूंडरी की मशहूर फिरनी कैथल ताजा समाचार

पूंडरी की मशहूर फिरनी. यही वो स्लोगन है जिसको लगाकर हरियाणा के शहरों में दुकानदार इस मिठाई को बेचते हैं. ये फिरनी इतनी लजीज हैं कि नाम लेने भर से ही इनका स्वाद याद आ जाता है.

pundri famous Firni sales have been affected by lockdown
लॉकडाउन के चलते फीकी हुई पूंडरी की मशहूर फिरनी की मिठास

By

Published : Jul 12, 2020, 2:24 PM IST

कैथल: सावन के महीने में मिठाईयों की महक दोगुनी हो जाती है. मिठाई में घेवर और फिरनी हो जाए, तो कहने क्या. नाम सुनकर तो आपके मुंह में भी पानी आ गया होगा. इन मिठाइयों का लोग सालभर बेसब्री से इंतजार करते हैं. अगर आप भी मीठे के शौकिन हैं. तो कैथल की पूंडरी विधानसभा में एक बार जरूर जाएं. अपने लजीज जायके की वजह से पूंडरी की फिरनी देशभर में मशहूर है. इस फिरनी की मांग इतनी है कि एक दिन में यहां करीब 40 क्विंटल फिरनी बनाई जाती है.

पूंडरी की मशहूर फिरनी. यही वो स्लोगन है जिसको लगाकर हरियाणा के शहरों में दुकानदार इस मिठाई को बेचते हैं. ये फिरनी इतनी लजीज हैं कि नाम लेने भर से ही इनका स्वाद याद आ जाता है. ये मैदे और घी से बनी एक ऐसी मिठाई है जो सिर्फ पूंडरी में ही बनती है. सिर्फ सावन महीने में ही इसे बनाया जाता है.

लॉकडाउन के चलते फीकी हुई पूंडरी की मशहूर फिरनी की मिठास

पूंडरी एक ऐसा इलाका है. जिसके पानी में सौरा (नमकीन, खारा) नहीं होता. इसलिए यहां की फिरनी का स्वाद लजीज होता है. पूंडरी क्षेत्र के 4 से 5 किलोमीटर दायरे के बाहर पानी में सौरा की मात्रा ज्यादा होती है. जिसकी वजह से इसे कहीं और इतना लजीज नहीं बनाया जा सकता. यही कारण है कि पुंडरी में बनाई गई फिरनी ही पूरे भारत में मशहूर है. फिरनी बनाने का पूरा काम कारीगरों के जरिए होता है.

1936 से शुरू हुआ था फिरनी का सफर

औसतन एक फिरनी बनाने के लिए 9 कारिगर की जरूरत होती है. तब जाकर दसवां आदमी उस फिरनी को खाता है. इस फिरनी की सबसे बड़ी खासियत ये भी है कि ये एक महीने तक खराब नहीं होती. साल 1936 में यहां फिरनी बनाने की शुरूआत हुई थी. अब करीब 100 से ज्यादा दुकानें फिरनी बनाने का काम करती है. साल 1936 में फतेहपुर से फइरनी बनाने की शुरुआत स्वर्गीय हरिकिशन व्यास ने की थी.

उनके पौत्र ने ईटीवी भारत हरियाणा से बातचीत में बताया कि उनके दादा हरिकिशन जब पाकिस्तान से भारत आए थे. तब से उन्होंने यहां फिरनी बनाने का काम शुरू किया. धीरे-धीरे लोगों में फिरनी की डिमांड बढ़ती चलगी गई. ये मिठाई इतनी लजीज है कि आजादी से पहले अंग्रेज अफसर भी यहां फिरनी खाने के लिए आते थे. समय के साथ डिमांड के मुताबिक फिरनी को बनाया जाने लगा. आज इस फिरनी की देश में अलग पहचान है.

ये भी पढ़ें- गुरबत भरी जिंदगी जीने को मजबूर 'गोल्डन गर्ल', मनरेगा में मजदूरी कर रही वुशु खिलाड़ी

फिरनी बनाने वाले हलवाई ने बताया कि सावन के एक महीने पहले से ही फीकी फिरनी बनाने का काम शुरू हो जाता है. जैसे-जैसे उन्हें थोक में ऑर्डर मिलते हैं. वैसे-वैसे फीकी फिरनी पर मीठा चढ़ा कर बेचा जाता है.

इस बार लॉकडाउन का असर फिरनी पर पड़ा है. सरकार की गाइडलाइन के मुताबिक अब 50 प्रतिशत कारीगर फिरनी बनाने का काम कर रहे हैं. जिसकी वजह से पहले के मुकाबले कम फिरनी बनाई जा रही हैं. लोग भी कोरोना संक्रमण के डर की वजह से दुकान पर कम आ रहे हैं. बाजार में ये फिरनी 130 से 150 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिकती हैं. जब भी सावन का महीना आता है तो अक्सर लोगों को ये कहते सुना जाता है कि उन्हें सिर्फ पूंडरी की ही फिरनी चाहिए.

ABOUT THE AUTHOR

...view details