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Published : Sep 29, 2019, 4:43 PM IST

Updated : Sep 29, 2019, 7:00 PM IST

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पूंडरी विधानसभा सीट: निर्दलीय के सामने यहां नहीं चलता किसी का भी जोर, क्या इस बार होगा बदलाव?

हरियाणा में विधानसभा चुनाव के शंखनाद हो चुका है. 21 अक्टूबर को मतदान होगा और 24 अक्टूबर को परिणाम आएगा. उससे पहले ईटीवी भारत के इस खास कार्यक्रम 'चौधर की जंग' में हम आपको हर विधानसभा सीट का लेखा जोखा बता रहे हैं. इस बार हम बात करेंगे पूंडरी विधानसभा सीट की.

Pundri assembly constituency

कैथल: पूंडरी विधानसभा क्षेत्र को राजनीतिक दल पसंद नहीं है. ये सीट निर्दलीय उम्मीदवारों के लिए लकी साबित हुई है. पिछले 23 सालों में पांच बार हुए चुनाव में यहां से लगातार निर्दलीय उम्मीदवार जीत रहे हैं. हरियाणा के गठन से लेकर अब तक यहां 12 चुनाव हुए हैं. इनमें 6 बार निर्दलीय उम्मीदवारों ने राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों को करारी हार दी है.

पूंडरी का राजनीतिक इतिहास
कैथल जिले की विधानसभा पूंडरी से निर्दलीय उम्मीदवारों के जीतने की शुरुआत 1968 में हुई. उस दौरान चौधरी ईश्वर सिंह को इलाके की जनता ने अपना विधायक चुनकर विधानसभा में भेजा. उसके बाद 1972 से 1991 के बीच हुए विधानसभा चुनाव में तीन बार कांग्रेस और एक-एक बार जेएनपी व लोकदल उम्मीदवार को जीत हासिल हुई लेकिन 1996 से लेकर साल 2014 में हुए विधानसभा चुनाव तक केवल आजाद उम्मीदवारों को ही पूंडरी की जनता ने विधानसभा में भेजा.

चुनावी इतिहास पर नजर डालें तो पूंडरी में हरियाणा के गठन के बाद 1967 में रामपाल सिंह ने कांग्रेस की सीट पर चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की. साल 1968 में चौ. ईश्वर सिंह ने चुनाव लड़ा और आजाद जीत दर्ज की. साल 1972 में ईश्वर सिंह ने फिर कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की. साल 1977 में जनता दल से स्वामी अग्निवेश ने चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की.

चौ. ईश्वर सिंह के नाम पर जिले में कई स्कूल और कॉलेज बने हैं.


1996 से 2014 तक रहा आजाद उम्मीदवार का राज
साल 1982 में चौ. ईश्वर सिंह ने कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की. 1984 में ईश्वर सिंह विधानसभा के अध्यक्ष भी रहें. साल 1987 में लोकदल से मक्खन सिंह यहां से विधायक बने. वर्ष 1991 में कांग्रेस की टिकट पर एक बार फिर ईश्वर सिंह विधायक बनें. लेकिन साल 1996 के बाद से लेकर 2014 तक यहां से लगातार आजाद उम्मीदवार ही जीत दर्ज करता आया है.

1996 में नरेंद्र शर्मा से विधायक बनें, साल 2000 में चौ. तेजबीर सिंह आजाद विधायक बनें, साल 2005 में दिनेश कौशिक ने आजाद उम्मीदवार के तौर पर जीत दर्ज की. उसके बाद 2009 में सुल्तान सिंह जडौला ने जीत दर्ज की. साल 2014 में एक बार फिर दिनेश कौशिक ने आजाद उम्मीदवार के रूप में जीत दर्ज करके विधायक की शपथ ली.

दिनेश कौशिक.


विधायक दिनेश कौशिक निर्दलीय जीते, फिर बीजेपी में गए
मौजूदा विधायक दिनेश कौशिक की बात करें तो उन्होंने यहां से 3 बार निर्दलीय चुनाव लड़ा और एक बार कांग्रेस की टिकट पर. वे यहां से निर्दलीय लड़कर ही चुनाव जीते हैं और जैसे ही किसी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा तो उन्हें हार मिली. उन्होंने साल 2005 में आजाद उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा तो जीत दर्ज की लेकिन 2009 में कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ा तो उनकी हार हुई. उन्होंने 2014 में आजाद उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ने पर फिर से जीत हासिल हुई. हालांकि कुछ समय बाद वे भाजपा में शामिल हो गए थे.

दिनेश कौशिक चुनाव जीतने के बाद बीजेपी में शामिल हो गए थे.


पूंडरी का जातिगत समीकरण
यहां के जातिगत समीकरण की बात करें तो यहां सबसे ज्यादा वोटर रोड़ जाति के हैं. यहां ब्राह्मण भी अच्छी खासी संख्या में है. यही कारण है कि यहां से ज्यादातर विधायक रोड़ या ब्राह्मण जाति से ही बनते आ रहे हैं. वहीं एक दो गांवों में जाट वोटर भी निर्णायक संख्या में हैं. इस सीट पर सबसे ज्यादा बार पूर्व स्पीकर ईश्वर सिंह विधायक रहे है. ईश्वर सिंह यहां से 1968, 72, 82, 91 में विधायक रहे हैं. इतिहास को देखते हुए इस सीट पर निर्दलीय चुनाव जीतने का आलम ये रहा है की कोई भी उम्मीदवार यहां पार्टी की टिकट पर चुनाव लड़ना पसन्द नहीं करता है. निर्दलीयों के लिए पूंडरी कितनी सेफ सीट है आप इस बात का अंदाज़ा इस बात से लगा सकते हैं कि 2014 में सबसे ज्यादा वोट पाने वाले टॉप के 6 उम्मीदवारों में से 4 निर्दलीय थे.

रणधीर सिंह गोलन.


2014 विधानसभा चुनाव का परिणाम
2014 के चुनाव में पूंडरी में 1,66,549 मतदाता थे जिसमें से 1,37,929 लोगों ने मतदान किया था. पूंडरी में कुल 82 प्रतिशत मतदान हुआ था और ये उन विधानसभा सीटों में से एक थी जहां 2014 के चुनाव में 80 फीसदी से ज्यादा मतदान हुआ था. यहां निर्दलीय उम्मीदवार दिनेश कौशिक ने बीजेपी के रणधीर सिंह गोलन को हराया था. कौशिक को 38,312 वोट मिले थे और रणधीर सिंह को 33,480 वोट प्राप्त हुए थे. इनेलो के तेजवीर सिंह 16,169 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहे थे. कांग्रेस प्रत्याशी रवि मेहला को मात्र 2.55 प्रतिशत वोट मिले थे और वे सातवें नंबर पर रहे थे.

पूंडरी की मशहूर फिरनी मिठाई.


पूंडरी का इतिहास
पूंडरी का नाम ऋषि पुंडरिक के नाम पर रखा गया था. पूंडरी अपनी फिरनी के लिए भी जाना जाता है. फिरनी एक मिठाई है जो इतनी लोकप्रिय है कि अगस्त के महीने में तीज के त्योहार पर लगभग 100 क्विंटल के आसपास बेची जाती है. वहीं पूंडरी की एक और खास बात ये है कि अभी भारत में कुछ ही पनचक्की (पानी से चलने वाली आटा चक्की) मील बची हैं. उनमें से एक पनचक्की मील पूंडरी में है जो कि 129 साल पुरानी है.

पूंडरी की पनचक्की.



ये मील 1890 में बनाई गई थी. पूंडरी के गांव फरल में लगने वाला ऐतिहासिक फल्गु तीर्थ मेला भी प्रचलित है. इस तीर्थ का उल्लेख महाभारत, वामन पुराण, मत्स्य पुराण तथा नारद पुराण में स्पष्ट रूप से मिलता है. महाभारत एवं वामन पुराण में इस तीर्थ का उल्लेख देवताओं की विशेष तपोस्थली के रूप में मिलता है.



फल्गु तीर्थ.


क्या हैं 2019 के समीकरण ?
आगामी विधानसभा चुनाव की बात करें तो भाजपा के लिए अभी तक यहां बड़ा चेहरा रणधीर गोलन ही थे लेकिन मौजूदा विधायक दिनेश कौशिक के भाजपा में जाने से अब उन्हें एक और बड़ा चेहरा मिल गया है. कांग्रेस के टिकट के लिए यहां कई दावेदार सामने आ रहे हैं. एक तरफ हुड्डा सरकार में सीपीएस रहे सुल्तान जडौला हैं तो दूसरी तरफ इनेलो से कांग्रेस में आए पूर्व स्पीकर के बेटे व पूर्व विधायक तेजवीर हैं.
वहीं 2014 में अपने पहले ही चुनाव में बतौर आजाद उम्मीदवार एंट्री करने वाले सतबीर भाणा ने भी रणदीप सुरजेवाला के साथ रैली कर दम खम दिखा दिया. वहीं इनेलो से टूट के बाद पूर्व विधायक और देवीलाल के साथ जनता दल में रह चुके पूर्व विधायक मक्खन सिंह अजय चौटाला की पार्टी जेजेपी में अपने बेटे रणदीप कौल के साथ चले गए हैं. ऐसे में इनेलो को अभी भी यहां से किसी बड़े चेहरे की तलाश है. वहीं जजपा में भी टिकट की मारामारी हो सकती है. एक तरफ मक्खन सिंह और उनके बेटे रणदीप कौल हैं तौ वहीं राजू ढुल पाई भी कतार में हैं. इसके अलावा बतौर आजाद उम्मीदवार यहां कई नेता टकटकी लगाए बैठे हैं. जिनमें सज्जन सिंह ढुल, नरेंद्र शर्मा, जैसे नेता कतार में हैं.

कांसेप्ट इमेज.


2019 में मतदाता
कुल मतदाता- 1,81,635पुरुष- 97,608 महिला- 84,026ट्रांसजेंडर- 1
पूंडरी से कब कौन बना विधायक-
  • 1967 आरपी सिंह कांग्रेस
  • 1968 ईश्वर सिंह निर्दलीय
  • 1972 ईश्वर सिंह कांग्रेस
  • 1977 स्वामी अग्निवेश जेएनपी
  • 1982 ईश्वर सिंह कांग्रेस
  • 1987 मक्खन सिंह लोकदल
  • 1991 ईश्वर सिंह कांग्रेस
  • 1996 नरेंद्र शर्मा निर्दलीय
  • 2000 तेजबीर सिंह निर्दलीय
  • 2005 दिनेश कौशिक निर्दलीय
  • 2009 सुल्तान सिंह जड़ौला निर्दलीय
  • 2014 दिनेश कौशिक निर्दलीय
Last Updated : Sep 29, 2019, 7:00 PM IST

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