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जिस गांव को मधु मक्खी पालन की वजह से मिला मधु गांव का नाम वहां भी लॉकडाउन ने तोड़ दी कमर - मधुमक्खी पालन लॉकडाउन का असर

देश में अनलॉक का चौथा चरण शुरू हो गया है. लेकिन लॉकडाउन चलते ज्यादातर उद्योग घाटे में चल रहे हैं. मधुमक्खी पालन के व्यवसाय पर भी इसकी मार देखने को मिल रही है.

Effect of lockdown on bee business in Kaithal
मधुमक्खी पालन के व्यवसाय पर कोरोना की मार

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Published : Aug 30, 2020, 5:06 PM IST

कैथल: भले ही देश में अनलॉक का चौथा चरण शुरू हो गया हो. लेकिन लॉकडाउन की वजह से अभी तक कई सेक्टर उभर नहीं पाए हैं. ज्यादातर उद्योग घाटे में चल रहे हैं. मधुमक्खी पालन का व्यवसाय भी इससे अछूता नहीं है. इस व्यवसाय पर भी कोरोना की मार देखने को मिल रही है. बात करें कैथल की तो कैथल जिला मधुमक्खी पालन में काफी अग्रणी है. अकेले कैथल जिले में लगभग 4000 किसान मधुमक्खी पालन करते हैं. ये सभी किसान जिला बागवानी विभाग से पंजीकृत हैं. वहीं कुछ ऐसे भी किसान हैं जो बिना पंजीकरण के भी व्यवसाय में जुड़े हुए हैं. किसानों का कहना है कि इस बार मधुमक्खी पालन को लॉकडाउन की वजह से काफी नुकसान हुआ है.

मधुमक्खी पालन के व्यवसाय पर कोरोना की मार

लॉकडाउन से पहले मधुमक्खी पालकों के हालात

लॉकडाउन से पहले मधुमक्खी पालक एक डिब्बे से करीब 30 से 40 किलोग्राम शहद एक साल में प्राप्त करते थे. जिसे (प्रोसेसिंग ) यानी मशीन के द्वारा साफ करवाने के बाद लगभग 80-250 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेचा जाता है. जिसे सरसों, सपेदा, पहाड़ी की कटाली, और दूसरी जड़ी बूटियों से प्राप्त शहद शामिल हैं. मधुमक्खी पालक एक डिब्बे से एक साल में 10 हजार तक का शहद प्राप्त करते थे. जिसपर 4 हजार का खर्च आने के बाद उन्हें एक डिब्बे पर 6000 रुपये का मुनाफा होता था. मौजूदा समय में 50 मधुमक्खियों के डिब्बे वाले किसान को निम्न स्तर में शामिल किया गया है. लेकिन वो एक साल में 50 डिब्बों से लगभग 5 लाख रुपये तक कमा लेता था. शहद के साथ-साथ किसानों को मधुमक्खियों के डिब्बे से मोम भी प्राप्त होता है. जो अलग-अलग भाव से बिकता है.

लॉकडाउन के बाद मधुमक्खी पालकों के हालात

लॉकडाउन के बाद मधुमक्खी पालकों को काफी नुकसान का सामना करना पड़ा है. मौसम और फसल के हिसाब से मधुमक्खियों के डब्बों की इमीग्रेशन की जाती है. उन्हें एक राज्य से दूसरे राज्य तक ले जाया जाता है. ताकि मधुमक्खियों को मौसम और फसल के हिसाब से खाना मिल सके और वो ज्यादा शहद तैयार कर सकें. लेकिन लॉकडाउन के चलते इस बार मधुमक्खी पालक मधुमक्खियों के डब्बों को एक राज्य से दूसरे राज्य नहीं ले जा सके. जिसके कारण मधुमक्खियों को पर्याप्त खाना नहीं मिल सका और कुछ मधुमक्खी कमजोर हो गई तो कुछ की मौत हो गई. जिसके कारण मधुमक्खियां ज्यादा शहद तैयार नहीं कर सकी और मधुमक्खी पालकों को काफी नुकसान उठाना पड़ा है.

रानी मक्खी पर भी दिखा लॉकडाउन का असर

बता दें कि एक डब्बे में एक रानी मक्खी होती है जो सीजन के दिनों में 1 दिन में करीब 2000 तक अंडे देती है. जिसके कारण हर साल मधुमक्खियों की संख्या में इजाफा होता रहता है. लेकिन इस बार लॉकडाउन के चलते किसान मधुमक्खियों के डिब्बों को एक राज्य से दूसरे राज्य तक नहीं ले जा सके और मधुमक्खियों को मौसम के हिसाब से खाना नहीं मिल सका.जिसके चलते एक रानी मक्खी ने 1 दिन में केवल 250 से 300 तक ही अंडे दिए. जिसके कारण किसानों की मधुमक्खियों की संख्या काफी कम हो गई.

मधु ग्राम के किसानों को प्रधानमंत्री कर चुके सम्मानित

जिले में एक गांव ऐसा भी है जिसको सरकार ने मधु ग्राम की संज्ञा दी हुई है. इस गांव का नाम है गौहरां गांव. ये गांव कैथल से लगभग 15 किलोमीटर दूरी पर है. जिसकी आबादी लगभग साढ़े चार हजार है. वैज्ञानिकों और एक्सपर्ट का मानना है कि इस गांव में ऐसा कोई घर नहीं जो मधुमक्खी पालन नहीं करता हो. इस गांव में 5 डिब्बों से लेकर 1000 डिब्बो रखने वाले किसान आपको मिल जाएंगे. इस गांव के कुछ किसानों को मधुमक्खी पालन के क्षेत्र में 2019 में प्रधानमंत्री द्वारा भी पुरस्कार मिल चुका है. बताया जा रहा है कि गांव में मधुमक्खी पालन का व्यवसाय ज्यादा होने के कारण शहद की प्रोसेसिंग के लिए यहां एक प्रोसेसिंग यूनिट लगाई जाएगी. जिसका लाभ इस गांव के साथ-साथ आसपास गांव के किसान उठा सकेंगे.

गौहरां गांव घर- घर की जाती है मधुमक्खी पालन

गौहरां गांव के मधुमक्खी पालक ताराचंद बताते हैं कि उन्होंने वर्ष 2004 में मधुमक्खी पालन का कार्य 10 डिब्बों के साथ शुरू किया था और अब 60 डिब्बे उसके पास हैं. वहीं मधुमक्खी पालक बाबूराम बताते है कि उन्होंने वर्ष 1994 में मधुमक्खी पालन का कार्य 10 डिब्बों के साथ शुरू किया था और आज उसके पास 550 मधुमक्खियों के डिब्बे हैं. जिससे वो अच्छा खासा कमा लेते हैं. गौहरां गांव में 50 ऐसे भी किसान हैं जो मधुमक्खी पालन में पूरे देश में प्रसिद्ध हैं. इस गांव के हर घर में मधुमक्खी पालन का काम किया जाता है. गांव में लगभग 5000 से ज्यादा डिब्बों में मधुमक्खी पालन किया जाता है. इस गांव में कोरोना ने बड़ा असर डाला है अब यहां के लोगों को आधी कमाई भी नहीं हो रही है. मधु मक्खी पालक उम्मीद कर रहे हैं कि अनलॉक के बाद अब कुछ हालात सुधरेंगे.

कैसे शुरू करें मधुमक्खी पालन का व्यवसाय

मधुमक्खी पालन के लिए सरकार लगातार किसानों को प्रोत्साहित कर रही है. इसके लिए सरकार किसानों को कुछ शर्तों पर 85 प्रतिशत तक का अनुदान देती है. अगर कोई किसान मधुमक्खी पालन करना चाहता है तो उसे जिला बागवानी विभाग की तरफ से 15 दिनों की फ्री ट्रेनिंग भी दी जाती है. इस दौरान किसान को मुधमक्खी पालन से संबंधित सारी चीजे प्रक्टीकल के द्वारा समझाई जाती है. और ट्रेनिंग खत्म होने के बाद किसान को मधुमक्खी पालन के लिए कीट दी जाती है. जिसके बाद आप मधुमक्खी पालन का व्यवसाय शुरू कर सकते हैं.

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