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कैथल में रैन बसेरों का बुरा हाल, कोरोना काल में भी लोगों को नहीं मिल पा रही सुविधाएं - कैथल रैन बसेरे खस्ता हाल

कैथल प्रशासन और नगर निगम हर साल रैन बसेरों को लेकर बड़े-बड़े दावे करता है. इन्हीं दावों की जमीनी हकीकत जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम ने कैथल के रैन बसेरे की सच्चाई तलाशने वहां पहुंची. बसेरे से मिली सभी तस्वीरे दावों के उलट मिली.

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Published : Nov 30, 2020, 2:39 PM IST

कैथल: सर्दी का मौसम शुरू हो चुका है. कैथल के तापमान में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है. तापमान नीचे गिरने के साथ ही ठिठुरन भी बढ़ गई है और कोरोना महामारी भी फैली हुई है. इसके बाद कई लोग खुले आसमान के नीचे सोने को मजबूर है. इस ठंड के मौसम में बेसहारा लोगों को सहारा देने के लिए सरकार द्वारा रैन बसेरों का प्रबंध किया जाता है.

कैथल के रैन बसेरे खस्ता हाल में

रैन बसेरे इसलिए ताकि वे अपनी रात आराम से बीता सके और सर्दियों से बच सकें. कैथल में रैन बसेरों के हालात कैसे है ईटीवी भारत की ने इसका जायजा लिया. जब ईटीवी भारत की टीम अंदर गई तो वहां कोई भी कर्मचारी नहीं मिला है. अधिकारी के कैबिन में ताला लटका मिला. रैन बसेरे के अंदर सिर्फ दो ही लोग थे, जो सरकारी व्यवस्था से खुश नहीं थे.

न अंदर कर्मचारी और ना ही कोई साइन बोर्ड, ऐसे हालात है कैथल के रैन बसेरे का

दावों के उलट मिली तस्वीरें

इतना ही नहीं रैन बसेरे के बाहर किसी भी तरह का कोई भी साइन बोर्ड नहीं लगा हुआ मिला, जिससे ढूंढने वाले व्यक्ति को ये पता चल सके कि वहां रैन बसेरे है या नहीं. जिला प्रशासन और नगर निगम हर साल रैन बसेरों को लेकर बड़े-बड़े दावे करता है, लेकिन हकिकत में तस्वीरे कुछ और निकली.

अधिकारी ने कही व्यवस्था को दुरुस्त करने की बात

वहीं कैमरे के सामने आते ही प्रशासनिक अधिकारी सीटीएम सुरेश राविश ने इस पर सफाई दी. उन्होंने कहा कि हमने नगर पालिका के अधिकारियों को लिखित में भेज दिया है कि जिले के सभी रैन बसेरों की हालत सही किया जाए. वहां पर लोगों के ठहरने का प्रबंध करें और उसको सैनिटाइजर भी उपलब्ध कराएं जाए ताकि कोरोना से भी बचा जा सके.

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ऐसे आदेश पहले भी दिए गए थे, लेकिन शायद इन अधिकारियों की बात कर्मचारी नहीं सुनते जो मौके पर तैनात ही नहीं थे. अभी तो रैन बसेरे के अंदर इस कड़ाके की सर्दी में पतला गद्दा ही है, जो ठंड से बचाव के लिए काफी नहीं था. गौरतलब है कि इसके लिए लाखों रुपये का बजट सरकार तय करती है, बावजूद इसके हालात ऐसे हैं.

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