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सुराही और मटका की घटी डिमांड, 'माटी के कलाकारों' की बढ़ी परेशानी - कुम्हार

गर्मी में पीने के पानी के लिए लोग फ्रिज का प्रयोग करने लगे हैं. लोग धीर-धीरे देशी मटके और सुराही भूल रहे हैं. इससे देश के एक बड़े तबके के रोजगार पर गहरा असर पड़ रहा है.

मिट्टी के बर्तन

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Published : Mar 27, 2019, 2:49 AM IST

Updated : Mar 27, 2019, 4:53 AM IST

झज्जर: गर्मी का सीजन आते ही झज्जर के छावनी मौहल्ले में कुम्हारों के घरों की रौनक बढ़ जाती थी. यहां हर घर में चाक पर माटी से खेलकर मनचाही शक्ल माटी को देने वाले लोगों को आसानी से देखा जा सकता था, मगर अब तस्वीर जुदा है.

बदलते परिवेश में लोग मटके और सुराही के पानी को नजरअंदाज करते हैं. फ्रिज और बाजारों में आसानी से उपलब्ध कैंपरों के पानी ने उनकी रोजी रोटी को लात मारने का काम किया है. बेशक यह पानी स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करने वाला है बावजूद इसके लोग इसी पानी से गला तर करने को प्राथमिकताा देने लगे हैं.

छावनी मौहल्ले की विजयमति का कहना है किगर्मी शुरू हो चुकी है. मगर उनके काम की डिमांड पहले की तुलना में बेहद कम है. वे कहती हैं कि अब लोग फ्रिज के पानी को पीना पसंद करते हैं. जिससे उनकी सेहत लगातार खराब हो रही है.

मिट्टी के बर्तन

उन्होंने कहा की सुराही और मटके के पानी को माटी में मौजूद कण साफ और सेहतमंद करते हैं. विजयमति ने बताया कि पहले उनके माल की अहमदाबाद, मुंबई, जयपुर, चंडीगढ़ और गुड़गांव में जबरदस्त मांग थी. लेकिन अब पहले वाली बात नहीं रही है. हालांकि डिमांड अब भी बनती है मगर उन्हें इसके लिए जरूरत योग्य कच्चा माल नहीं मिल पाता है. पहले सीजन के दौरान उनके माल की गाडि़यां भरकर महानगरों में जाती थी.

मिट्टी के बर्तन बना रही महिला

छावनी निवासी मांगेराम बताते हैं कि लोगों की मांग अब भी आती है मगर इसके लिए अच्छी माटी और बुरादा का आसानी से न मिल पाना भी उनके लिए नुक्सानदायक बना हुआ है. वे कहते हैं की उनके बच्चे भी अब इस काम को नहीं सीख रहे हैं. जबकि वे पुश्तों से इसी काम को करते आए हैं. मांगेराम ने बताया की पहले जहां उनका माल 100 गाडि़यों में जाता था अब दस गाड़ी माल ही बाहर बिकने को जा पाता है.

Last Updated : Mar 27, 2019, 4:53 AM IST

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