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8 जिलों के डीसी और डीआरओ के खिलाफ कार्रवाई की मांगी गई अनुमति, जानिए क्यों ? - सुप्रीम कोर्ट के वकील रमेश दलाल

प्रदेश के आठ जिलों के डीसी और डीआरओ के खिलाफ कानूनी कार्रवाई होने वाली है. जमीन अधिग्रहण को लेकर हरियाणा स्वाभिमान आंदोलन के अध्यक्ष एवं सुप्रीम कोर्ट के वकील रमेश दलाल ने मुख्य सचिव केशनी आनंद अरोड़ा को पत्र लिखकर कानूनी कार्रवाई करने की अनुमति मांगी है.

letter for legal action

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Published : Aug 11, 2019, 2:49 PM IST

झज्जर: देश का अन्नदाता किसान अक्सर सरकारी बाबुओं और अफसरों के शिकंजे में फंसता हुआ देखा है लेकिन ये पहली बार है कि किसानों के शिकंजे में अफसर फंस गये हैं. द राइट टू फेयर कंपनसेशन एंड ट्रांसपेरेंसी इन लैंड एक्वीजीशन, रिहबलिटेशन एंड रीशैटलमैंट एक्ट 2013 के कानूनी शिकंजे में अफसरों की गर्दन आ गई है. एक्ट की धारा 84, 85 और 87 के तहत आठ जिलों के 10 जिला उपायुक्त दोषी बताये गये हैं.

8 जिलों को डीसी और डीआरओ के खिलाफ कार्रवाई की मांगी गई अनुमति.

क्या है पूरा मामला ?
दरअसल ये मामला महेन्द्रगढ़, रोहतक, कुरूक्षेत्र, कैथल, जींद, सोनीपत, दादरी और झज्जर जिले से जुड़ा हुआ है. इन आठ जिलों में नेशनल हाईवे नम्बर 154 डी, 352 ए और 334 बी के लिये हजारों किसानों की जमीन का अधिग्रहण किया गया था. जमीन केन्द्र सरकार के लिये अधिग्रहित की गई लेकिन किसानों को मुआवजा हरियाणा सरकार के फैक्टर के हिसाब से दे दिया.

हरियाणा सरकार ने सेक्शन 87 ए के तहत ये जरूरी कर दिया है कि अगर उसके किसी अधिकारी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करनी है तो पहले सरकार से मंजूरी लेनी होगी. इसीलिये हरियाणा स्वाभिमान आन्दोलन के अध्यक्ष और सुप्रीम कोर्ट के वकील रमेश दलाल ने 6 अगस्त को मुख्य सचिव को पत्र लिखकर अनुमति मांगी थी. रमेश दलाल ने पत्र में 8 जिलों के जिला उपायुक्त समेत इन जिलों के डीआरओ के खिलाफ कानूनी कार्रवाई के लिये लिखा.

जिला उपायुक्तों पर लगाए ये आरोप
झज्जर की जिला उपायुक्त सोनल गोयल पर आरोप है कि उन्होंने गिरावड़ गांव का मुआवजा जो 40 लाख प्रति एकड़ कलैक्टर रेट के हिसाब से बनता था वो मुआवजा 25 लाख रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से बनवाया. वर्तमान जिला उपायुक्त संजय जून ने भी इसको ठीक नहीं किया जबकि प्रशासन की एक कमेटी अपनी जांच में ये मान चुकी है कि किसानों के साथ मुआवजा निर्धारण में गलती की गई. जींद के डीसी रहे आदित्य दहिया, दादरी के डीसी रहे अजय तोमर और मुकेश आहूजा भी कानूनी शिकंजे में हैं. जमीन अधिग्रहण के लिये मुआवजा निर्धारण से लेकर मुआवजा देने के दौरान इन आठ जिलों में रहे जिला उपायुक्त दोषी की केटेगरी में रखे गये हैं.

क्या कहता है कानून ?
दरअसल द राइट टू फेयर कंपनसेशन एंड ट्रांसपेरेंसी इन लैंड एक्वीजीशन, रिहबलिटेशन एंड रीशैटलमैंट एक्ट 2013 के तहत ग्रामीण क्षेत्र में जमीन अधिग्रहण होने की सूरत में मार्केट रेट या कलेक्टर रेट का दोगुना मुआवजा देना होता है और उसमें सोलेटियम भी जोड़ना होता है लेकिन हरियाणा सरकार ने साल 2018 में कानून के सुधार कर हरियाणा सरकार के लिये अधिग्रहण होने की सूरत में मुआवजे सम्बंधी गुणांक फैक्टर में बदलाव कर दिया.

अब अगर हरियाणा में हरियाणा सरकार के लिये भूमि अधिग्रहण होगा तो दूरी के हिसाब से 1.25 से लेकर 2 गुना तक मुआवजे की गणना होगी लेकिन ये गुणांक फैक्टर केन्द्र के अधिग्रहण के लिये लागू नहीं हो सकता है. नेशनल हाईवे के लिये जमीन अधिग्रहण केन्द्र सरकार के लिये किया गया लेकिन किसानों को मुआवजा हरियाणा फैक्टर के हिसाब से दिया गया और इसी अपराध में फंस गये हैं 8 डीआरओ और 10 जिला उपायुक्त.

देखना होगा कि हरियाणा की मुख्य सचिव इन अधिकारियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की अनुमति देती हैं या नहीं. अगर अनुमति मिली तो इन अधिकारियों को 6 महीने तक की सजा या फिर जुर्माना हो सकता है. बता दें कि उचित मुआवजे की मांग को लेकर ही इन जिलों में किसान पिछले 6 महीने से धरने दे रहे हैं.

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