झज्जर: कोरोना महामारी के चलते पूरा देश आर्थिक मंदी से गुजर रहा है. ऐसे में शायद ही कोई सेक्टर होगा जिस पर कोरोना की मार ना पड़ी हो. लॉकडाउन के बाद शुरू हुए अनलॉक में माना जा रहा था कि अब उद्योग जगत पहले की तरह पटरी पर आ जाएगा, लेकिन उद्योग जगत वहीं का वहीं खड़ा है जहां लॉकडाउन में खड़ा था. बात झज्जर जिले की करें तो यहां 20% फैक्ट्री जरूर खुल हुई हैं, लेकिन उनके हालात भी बेहद दयनीय हैं.
देश का 50% नॉन लेदर जूता बनता है बहादुरगढ़ में
जिले के बहादुरगढ़ में फुटवियर का बहुत बड़ा औद्योगिक क्षेत्र है. यहां देश का 50% नॉन लेदर जूता बनता है, जो देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी सप्लाई होता है. सालाना 20 हजार करोड़ का टर्नओवर रखने वाले बहादुरगढ़ फुटवियर उद्योग पर भी कोरोना की मार पड़ी है जिससे वो अभी तक भी नहीं उभर पाया है. फैक्ट्रियां जरूर खुल गई हैं और माल भी बनाया जाता है, लेकिन उसकी डिमांड बाहर ना के बराबर है. फैक्ट्रियों में बने माल का कोई खरीदार नहीं मिल रहा है. फैक्ट्री मालिक माल को स्टॉक करने पर मजबूर हैं. आलम ये है कि कुछ फैक्टरियां तो सिर्फ इसलिए खुली हैं कि उनकी फैक्ट्री में बचे हुए मजदूर अपने घर वापस ना चले जाएं क्योंकि फिलहाल स्थानीय लेबर और बाहर से आने वाले मजदूर भी गिने-चुने ही रह गए हैं.
बहादुरगढ़ फुटवियर एसोसिएशन के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट नरेंद्र छिक्कारा का कहना है कि बहादुरगढ़ में ना केवल फुटवियर बल्कि अन्य मल्टी इंडस्ट्री के हालात बेहद खराब हैं. कोरोना की मार ऐसी पड़ी है कि जो बहादुरगढ़ उद्योग पूरे देश में अपनी एक अलग पहचान रखता था वह आज बर्बादी की कगार पर है. बहादुरगढ़ में कुल मिलाकर 12 सौ से 13 सौ फुटवियर फैक्ट्री हैं, जिनका सालाना टर्नओवर 20 हजार करोड़ का है, लेकिन कोरोना की मार बहादुरगढ़ उद्योग पर ऐसी पड़ेगी कि वह अनलॉक होने के बावजूद भी ठीक नहीं हो पाई.
लॉकडाउन खुलने के बाद भी नहीं सुधरे हालात
उन्होंने बताया कि बहादुरगढ़ फुटवियर उद्योग की केवल 20% फैक्ट्रियां ही खुली हैं, जिनमें खर्च तो ज्यो के त्यों हैं, लेकिन इनकम ना के बराबर है. प्रत्येक फैक्ट्री में रोजाना 10 से 12 हजार जूतों के जोड़े बनाए जाते थे, लेकिन अब केवल 2 हजार जोड़े ही बन पा रहे हैं, जिनकी खरीदारी भी नहीं हो रही. यहां सैकड़ों की तादाद में कर्मचारी काम करते थे, लेकिन अब फैक्ट्रियों में ना के बराबर कर्मचारी हैं. किसी भी फैक्ट्री में सभी मशीनें नहीं चलाई गई हैं, हर कोई एक या दो मशीन चला कर ही अपना काम चला रहा है.