हिसार:चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों की एक टीम ने नरमा कपास की फसल में इन दिनों आई समस्या को ध्यान में रखते हुए प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों का दौरा किया. इस दौरान फसल में आई समस्या के कारणों का पता लगाते हुए कृषि वैज्ञानिकों ने पाया कि हल्की जमीन जहां समय पर पर्याप्त वर्षा नहीं हुई, पौषण प्रबधंन का अभाव, सफेद मक्खी के लिए अनुकूल वातावरण एवं फसलों में बिना सिफारिश के कीटनाशकों व फफूंदनाशकों का मिश्रित प्रयोग जैसी वजह सामने आई है.
इसके अलावा फसल का प्रभावित करने वाले कई अन्य कारण भी शामिल हैं. कृषि वैज्ञानिकों की टीम में डॉ. ओमेंद्र सांगवान, डॉ. करमल मलिक, डॉ. कृष्णा रोलनिया, डॉ. अनिल कुमार, डॉ. मनमोहन व डॉ. संदीप कुमार शामिल थे. इन वैज्ञानिकों की टीम ने हिसार के खरकड़ा, हसनगढ़, न्यौली कलां, भेरियां, बहबलपुर, बरवाला एवं कुंभाखेड़ा, भिवानी जिले के गांव बक्खतावरपुरा, मंढोली कलां, ईशरवाल, सरल, खरखड़ी-माखवान, गारणपुरा खुर्द, मिरान, खावा, थिलोड़, मंढाण, झावरी एवं कालौद, जींद जिले के गांव करसिंधु, पालवां, उचाना कलां, दुर्जनपुर, कापड़ो एव खेड़ी मसानियां का सर्वे किया.
हल्की जमीन वाले क्षेत्रों में ज्यादा समस्या
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार सर्वे में यह बात निकलकर सामने आई कि जिन इलाकों में हल्की जमीन है, उन खेतों में यह समस्या ज्यादा पाई गई है. हिसार के कुछ क्षेत्र तथा भिवानी के तोशाम के आस-पास के क्षेत्रों में पौधों के झुलसने व नीचे से पत्तियों के सूखने की समस्या अधिक पाई गई है. इसके अलावा जहां बारिश देरी से हुई उन क्षेत्रों में पौधों की पत्तियों के झुलसने की समस्या एकसाथ उत्पन्न हुई है. वर्षा का समय से न होना या बारिश का एक समान न होना भी इस समस्या का प्रमुख कारण है. इसके अलावा कपास की फसल में इस समय टिण्डे बन चुके हैं और पौधों को अच्छी खुराक व नमी की आवश्यकता है.
कपास के हाईब्रिड जड़ों का विकास हुआ कम
रेतीली मिट्टी में जमीन में उपलब्ध पोषक तत्वों की उपलब्धता अच्छी बारिश होने पर या अच्छी सिंचाई करने पर इस अवस्था में कम हो जाती हैं. इसलिए पोषक तत्वों का पत्तों पर छिडक़ाव मददगार साबित हो सकता है. इसके अलावा कपास की संकर किस्मों (हाइब्रिड) की जड़ों का विकास भी कम पाया गया. कई खेतों में सूती मोल्ड, पैराविल्ट एवं जडग़लन बीमारी के लक्षण भी दिखाई दिए हैं. इस साल सफेद मक्खी की संख्या बाकी वर्षों के मुकाबले ज्यादा है, किंतु प्रभावित एवं अच्छी फसल वाले इलाकों में सफेद मक्खी की संख्या एवं प्रकोप में ज्यादा अंतर नहीं मिला है. रेतीली जमीन में नमी एवं पोषक तत्वों पर खास ध्यान देने की आवश्यकता है. इसके अलावा किसानों द्वारा बिना कृषि वैज्ञानिकों की सिफारिश की फसल पर कीटनाशकों के मिश्रणों का प्रयोग किया गया है, जिससे कपास की फसल में नमी एवं पौषण के चलते समस्या बढ़ी है.
करीब 75 फीसदी खेतों में सफेद मक्खी का असर
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार सर्वे के दौरान पाया गया है कि 62 से 75 प्रतिशत खेतों में सफेद मक्खी का असर पाया गया, लेकिन दोमट मिट्टी वाले खेतों में कपास की फसल के खराब होने की समस्या कम पाई गई, जबकि रेतीली मिट्टी में उगाई गई कपास में यह समस्या ज्यादा पाई गई है. कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को सलाह देते हुए कहा कि कपास की फसल में आई समस्या की केवल जांच के बाद ही सिफारिश किए गए कीटनाशक या फफूंदनाशी का प्रयोग करना चाहिए.
कपास की फसल में सफेद मक्खी की संख्या की निगरानी के लिए 20 पौधों का निरीक्षण सप्ताह में दो बार करें और कृषि वैज्ञानिकों व कृषि अधिकारियों की सलाह से ही फसल में आवश्यकतानुसार कीटनाशकों का प्रयोग करें. कीटनाशकों के मिश्रित घोल के प्रयोग से बचें क्योंकि ये सफेद मक्खी की समस्या को बढ़ावा दे सकते हैं. खासकर हल्की मिट्टी में उगाई गई कपास में खाद प्रबंधन पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है.
ऐसे करें फसल का बचाव
- कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार पत्तों पर छिडक़ाव के रूप में 2.5 किलोग्राम यूरिया प्रति 100 लीटर पानी या पोटैशियम नाइट्रेट(13-00-45) की 2.0 किलोग्राम मात्रा को 200 लीटर पानी की दर से प्रति एकड़ में आवश्यकतानुसार बारी-बारी से प्रयोग करें.
- सफेद मक्खी के लिए स्पाइरोमेसिफेन (ऑबरोन) 22.9 एस.सी. की 240 मिलीलीटर मात्रा या नीम आधारित कीटनाशक (निम्बिसीडीन/ अचूक) की 1.0 लीटर मात्रा या पाइरीप्रोक्सीफेन(डायटा)10 ई.सी. की 400 मिलीलीटर मात्रा को 200-250 लीटर पानी की दर से एक एकड़ में आवश्यकतानुसार बारी-बारी से पौधों पर निचली पत्तियों तक छिडक़ाव करें.
- कपास के पत्ते ज्यादा काले दिखाई दें तो कॉपर ऑक्सिक्लोराइड की 600 ग्राम मात्रा को 200 लीटर पानी की दर से छिडक़ाव करें.
- पेराविल्ट बीमारी के संभावित इलाकों में कोबाल्ट क्लोराइड की 2.0 ग्राम मात्रा को 200 लीटर पानी की दर से एक एकड़ में लक्षण दिखाई देने के 24 से 48 घंटों के अंदर छिडक़ाव करें.
- जहां सिंचाई या बारिश के बाद ज्यादातर पौधे मुरझा जाते हैं तो उन क्षेत्रों में इस बीमारी की संभावना होती है.
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