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पहले लॉकडाउन और अब पेट्रोल-डीजल के आसमान छूते दाम ने ट्रांसपोर्टर्स की उड़ाई नींद, कर्मचारियों को सैलरी देना भी हुआ मुश्किल

पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दामों ने निजी ट्रांसपोर्ट कंपनियों की नींद उड़ा रखी है. ट्रांसपोर्ट कंपनियों के पास अपने कर्मचारियों को देने के लिए सैलरी तक नहीं है जिससे बेरोजगारी भी बढ़ रही है, साथ ही बसों की संख्या भी बढ़ गई है और सवारियां बहुत कम है, ऐसे में ट्रांसपोर्टर्स ने सरकार ने मदद की गुहार लगाई है.

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पहले लॉक डाउन और अब पेट्रोल-डीजल के आसमान छूते दाम ने ट्रांसपोर्टर्स की उड़ाई नींद, कर्मचारियों को सैलरी देना भी हुआ मुश्किल

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Published : Apr 9, 2021, 5:30 PM IST

हिसार: पिछले एक साल से कोरोना महामारी ने लोगों का जीना मुश्किल तो कर ही रखा था और अब बढ़ती महंगाई ने लोगों की कमर तोड़ कर रख दी है. लगातार बढ़ते पेट्रोल-डीजल के दाम ने सबसे ज्यादा ट्रांसपोर्ट के कारोबार पर बुरी असर डाला है.

बात करें बस सर्विस की तो निजी ट्रांसपोर्ट कंपनी के मालिक डीजल के बढ़ते दाम से काफी परेशान है. उनका कहना है कि यात्रियों के लिए किराया तो वही है लेकिन डीजल के दाम बढ़ने से खर्चा ज्यादा हो गया है, जिससे बस चालक और अन्य कर्मचारियों को तनख्वाह देना मुश्किल हो रहा है और अब बेरोजगारी बढ़ रही है.

पहले लॉक डाउन और अब पेट्रोल-डीजल के आसमान छूते दाम ने ट्रांसपोर्टर्स की उड़ाई नींद, कर्मचारियों को सैलरी देना भी हुआ मुश्किल

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एक निजी बस ऑपरेटर ने हमें बताया कि पहले लॉकडाउन और अब डीजल के बढ़ते दाम की वजह से आलम ये है कि वहां अब ऑपरेटर्स आपसी सहमति से एक-एक दिन छोड़कर बसें चला रहे हैं, यानी तीन बसों की जगह पर एक बस की भी सवारियां नहीं मिल रही है, क्योंकि लॉकडाउन में लोगों के पास निजी वाहनों की संख्या भी बढ़ गयी है और रेट बढ़ने से रोजाना डीजल खर्च में औसतन 800 से 1000 रुपये की बढ़ोतरी हो गई है लेकिन कमाई में कोईन इजाफा नहीं हुआ है.

पेट्रोल-डीजल के रेट में हुआ इजाफा

पिछले एक साल में बढ़े 20 रूपये लीटर डीजल के दाम

आपको बता दें कि पिछले एक साल में औसतन डीजल के दाम 20 रुपये और पेट्रोल के दाम 17 रुपये बढ़े हैं और रेट बढ़ने से ट्रांसपोर्टरों का काम बुरी तरह प्रभावित हुआ है और अब हालात ये है कि उन कर्मचारियों की तनख्वाह देना भी मुश्किल हो रहा है.

हर रोज होती है लाखों रूपयों के तेल की खपत

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ट्रांसपोर्टर्स ने बताया कि पहले हिसार से नरवाना रूट पर रोजाना बस 4600 रुपये का डीजल लगता था अब 5600 हो गया है लेकिन सवारी की संख्या कम हुई और भाड़ा ज्यों का त्यों है. उन्होंने कहा कि अब मजबूरी में हमें बहुत से रूट पर बस टाइम मिस भी करने पड़ते हैं, जैसे बस चलाने का खर्च 3600 है लेकिन पूरे दिन में कलेक्शन 2200 रुपये की ही होती है.

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एक तरफ जहां एक ट्रांसपोर्टर के पास 5 गाड़ियां हैं तो अब वो उसकी जगह दो या तीन ही चला रहा है उसके लिए उसे 11 कर्मचारियों की जरूरत होती है लेकिन अब 4 कर्मचारियों से ही काम चलाना पड़ रहा है. निजी ट्रांसपोर्टर्स ने सरकार से मांग की है कि वो किराए में थोड़ी बढ़ोतरी करें ताकि उनकी समस्याएं कम हो सके.

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