हरियाणा

haryana

ETV Bharat / state

भीख मांगने वाले बच्चों को पढ़ाने के लिए छोड़ी मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी, 600 बच्चों की बदली जिंदगी - हिसार गरीब बच्चों की मुफ्त पढ़ाई

अपने लिए तो हर कोई जीता है, जिंदगी जीने का मजा तब है जब इसे दूसरों के लिए जिया जाए. ये लाइनें हिसार की रहने वाली अनु चिनिया पर सटीक बैठती हैं. अनु ने भीख मांगने वाले बच्चों को पढ़ाने के लिए अपनी मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी तक ठुकरा दी.

hisar social activist anu chinya
hisar social activist anu chinya

By

Published : Apr 9, 2022, 8:34 PM IST

हिसार:अक्सर आपने बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन पर या फिर बाजारों में छोटे-छोटे बच्चों को भीख मांगते, कबाड़ चुनते हुए देखा होगा. अक्सर लोग उन बच्चों को पैसे या फिर खाने की वस्तुएं देकर आगे बढ़ जाते हैं, लेकिन ये कोई नहीं सोचता कि खेलने-कूदने और पढ़ने की उम्र में आखिरकर ये बच्चे क्यों भीख मांग रहे हैं. इस उम्र में अगर ये भीख मांगते रहे तो फिर भविष्य में भी कुछ नहीं कर पाएंगे, और ऐसे सैकड़ों हजारों बच्चे पूरी जिंदगी यूं ही भीख मांगते रहेंगे, लेकिन हरियाणा के हिसार में एक ऐसी भी लड़की है जिसने ऐसे बच्चों को लेकर अपना पूरा कैरियर समर्पित कर दिया है.

हिसार की रहने वाली अनु चिनिया ने अपनी जिंदगी के सारे सपने भूलाकर 600 से ज्यादा बच्चों को एक नई जिंदगी दी है. अनु पिछले कई सालों से भीख मांगने, नशा करने वाले व झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिए काम कर रही हैं. ऐसे कई बच्चे उदाहरण हैं जो अनु व इस संस्था के प्रयास से भीख मांगना व नशा छोड़ कर आज स्कूल जा रहे हैं. अनु ने जूनियर इंजीनियर का डिप्लोमा कर जॉब शुरू की थी और इसके बाद उन्हें कई मल्टीनेशनल कंपनी चंडीगढ़, मोहाली आदि से नौकरी भी मिली थी, लेकिन उन्होंने इन सबको ठुकरा कर अपना जीवन सुधारने की बजाय ऐसे बच्चों का जीवन सुधारने के लिए खुद को समर्पित कर दिया.

भीख मांगने वाले बच्चों को पढ़ाने के लिए छोड़ी मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी

कैसे हुई शुरुआत- अनु ने बताया कि उनका गांव हिसार शहर से कुछ ही दूरी पर स्थित है. 2013-14 में रोजाना उनका हिसार आना जाना होता था. उस समय बस स्टैंड पर उन्हें हर रोज 5 छोटे बच्चे भीख मांगते हुए मिलते थे. धीरे-धीरे वह उनसे बात करने लगी और लगाव सा हो गया. फिर एक दिन उसने सोचा कि क्यों न इन बच्चों को सही रास्ते पर लाया जाए. वह अपने भाई को लेकर इन बच्चों के घर पहुंची तो घर में हालत देखी कि बच्चों का पिता चारपाई पर है और यह सब एक झोपड़ी में रह रहे हैं. अनु ने बच्चों की मां को बहुत समझाया कि उन्हें इन बच्चों से भीख मंगवाने की जगह स्कूल में पढ़ाना चाहिए, लेकिन बच्चों की मां ने कहा कि अगर वह भीख में नहीं मांगेंगे तो शाम को उनके घर में खाना नहीं बनेगा, सबको भूखा सोना पड़ेगा.

अनु साथ उनके और भी कई सहयोगी बच्चों को पढ़ाते हैं

जैसे तैसे उन 5 बच्चों में से 1 बच्चे को पढ़ाने के लिए उनकी मां ने अनु का सहयोग किया और स्कूल भेजने लगी. जब वह लड़की स्कूल में अच्छा पढ़ने लिखने लगी तो बाकी बच्चों ने भी कहा कि उन्हें भी स्कूल जाना है. ऐसा करते-करते अनु ने उन सब बच्चों को स्कूल में दाखिल करवाया, साथ में पढ़ाई लिखाई में उनकी मदद की. उसके बाद वह शहर के अन्य इलाकों में भी ऐसे बच्चों की तलाश में घूमने लगी. धीरे-धीरे उनके साथ कई और वालंटियर भी जुड़ गए. अगले 1 साल में उन्हें शहर के हर गली, सेक्टर में ऐसे बच्चों का पता चल गया. अनु और उनके सहयोगी हर रोज जाकर उन बच्चों को पढ़ाते और उनके माता-पिता से बात कर उन्हें समझाकर स्कूल में भेजने के लिए तैयार करते.

ये भी पढ़ें-पानीपत में बाल मजदूरी से मुक्त कर बच्चों को स्कूल भेज रही सुधा झा, प्रेरणादायक है इनकी कहानी

ऐसा करते-करते अनु के साथ बहुत से लोग जुड़ गए और फिर उन्होंने इस अभियान को "भीख नहीं किताब दो" नाम दिया. बच्चों को पढ़ाने और स्कूल भेजने में कई बार दिक्कतें आई, लेकिन सब चुनौतियों को पार करते हुए अनु ने अपना काम जारी रखा. इस संस्था के काम से प्रभावित होकर बड़े सामाजिक लोग से जुड़ते गए और हिसार के पास लगते एक गांव तलवंडी राणा के सरपंच ने गांव में ही बनी धर्मशाला की बिल्डिंग संस्था को पढ़ाई के लिए दे दी.

अनु चिनिया

कई चुनौतियों का किया सामना- अभियान के दौरान अनु के सामने कई चुनौतियां भी आई. फिर अनू की मुलाकात एक कार्यक्रम में हिसार के तत्कालीन आईजी अनिल राव से हुई और उन्होंने मदद करते हुए शहर के टाउन पार्क के करीब में बच्चों को पढ़ाने के लिए जगह दिलवाई. अनु ने जब उन बच्चों को सरकारी स्कूलों में दाखिल करवाया तो कुछ ही दिन बाद स्कूल से शिकायत आई कि इन बच्चों का स्वभाव अलग है. यह दूसरे बच्चों के साथ मारपीट करते हैं, चोरी करते हैं, नहाते नहीं है और इनके शरीर से बदबू आती है. फिर अनु ने उन बच्चों को समाज में रहने के लिए साफ-सफाई करना सिखाया. इतना ही नहीं पार्क में लगी पानी की टंकियों उन्हें नहलाने तक का भी काम किया. फिर धीरे-धीरे इन बच्चों की लगन भी काम आई और वह स्कूल के माहौल में ढलने लगे.

अनु ने गरीब छात्रों के लिए बनाया छात्रावास

अनु ने बताया कि वह कई बच्चों को स्कूल भेजने लगी और उनसे रोजाना स्कूल से आने के बाद बातचीत करती मिलती तो सामने आया कि उनकी पढ़ाई लिखाई में परिवार सहयोग नहीं कर रहा, और वह भीख मांगने और चोरी करने नशा करने वाले उस सामाजिक वातावरण से दूर नहीं हो पा रहे हैं. फिर 2018 में उन्होंने तय किया कि जो बच्चे बेहद ही ज्यादा जरूरतमंद है और उनमें पढ़ने लिखने की प्रतिभा है उन बच्चों को वह अपने साथ रखेंगी. उन्हें पढ़ने लिखने के लिए अच्छे परिवार की तरह साफ सुथरा माहौल उपलब्ध करवाएंगे और खाने-पीने व अन्य विकास के लिए प्रयास करेंगे. वह करीब 15 बच्चों को अपने साथ रहने के लिए तलवंडी राणा स्थित छात्रावास लेकर आई. आज भी बहुत से बच्चे उनके साथ इसी छात्रावास में रहते हैं और हर रोज अनु उन्हें स्कूल भेजती हैं, पढ़ाती हैं, खिलाती हैं और एक अच्छे परिवार की तरह उनका पालन पोषण करती हैं.

ये भी पढ़ें-पीएम मोदी से प्रेरित होकर पानीपत के भाई-बहन ने बेटियों को पहचान दिलाने के शुरू की खास मुहिम, हर कोई कर रहा तारीफ

इस पूरे अभियान के दौरान उन्होंने बताया कि बहुत से ऐसे बच्चे आए जो चोरी और नशा करते थे. अनु ने उन्हें सुधारने के लिए प्रयास किए. उन्हें अपने साथ रखा और आज वह दसवीं कक्षा पास कर आगे पढ़ाई कर रहे हैं. उसके साथ-साथ जीवन यापन के लिए थोड़ा बहुत काम भी कर रहे हैं. अनु ने बताया कि एक लड़का 9 साल का उन्हें मिला था जो फ्लूड का नशा करता था और चोरी भी करता था. उस लड़के का पिता नहीं था और मां ने भी दूसरी शादी कर ली थी. उसकी हालत देखकर अनु उसे समझा-बुझाकर अपने साथ लाई और छात्रावास में रखा. सभ्य समाज में रहना उठना बैठना सिखाया उसका इलाज भी करवाया. 6 महीने बाद जब वह नशा छोड़कर पूरी तरह से ठीक हो चुका था फिर उसे स्कूल भेजना शुरू किया. आज वह लड़का नौवीं क्लास में पढ़ रहा है और अपनी मां के साथ मिलकर काम भी करता है. अन्य कई ऐसे बच्चे हैं जो भीख मांगना छोड़ कर पढ़ने लगे हैं और आज क्लास में मॉनिटर हैं व अच्छे कब्बड़ी खिलाड़ी भी हैं.

अनु अभी तक हिसार शहर की 17 स्लम एरिया में से 600 बच्चों को सरकारी स्कूलों में दाखिला दिलवाकर उनकी पढ़ाई करवा रही हैं. इतना ही नहीं समय-समय पर जाकर उन बच्चों से मिलती हैं. झुग्गी मजदूर एक-दो साल में किसी दूसरे राज्य में चले जाते हैं तो बाद में अन्नू फोन पर इन बच्चों के संपर्क में रहती हैं. इस संस्था के वालंटियर दाखिल करवाए गए बच्चों को स्कूल के बाद पढ़ाने के लिए भी स्लम बस्तियों में भी जाते हैं. कानूनी व सामाजिक नैतिकता के चलते हम आपको उन बच्चों से तो नहीं मिलवा सकते, लेकिन उनके जीवन में नई उमंग पैदा करने के लिए ऐसे अनेकों बच्चों की कहानी आप तक लेकर आए हैं, और उम्मीद करते हैं कि अनु से बाकी लोग भी प्रेरित होकर ऐसा काम करेंगे.

हरियाणा की विश्वसनीय खबरों को पढ़ने के लिए गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड करें Etv Bharat APP

ABOUT THE AUTHOR

...view details