हिसार: हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तरप्रदेश राज्य में बड़े स्तर पर गेंहू की खेती की जाती है. मौसम के प्रभाव की वजह से हाल ही में गेहूं की फसल में पीला रतुआ की बीमारी होने की संभावनाएं बनी हुई है. ऐसे में किसानों को सचेत रहने की जरुरत है. पीला रतुआ जिसे 'यलो रेस्ट' भी (yellow rust disease in wheat) कहा जाता है. कृषि विशेषज्ञों की मानें तो गेहूं की फसल में लगने वाला ये प्रमुख रोग है और इस बार प्रदेश में ये बीमारी ज्यादा बढ़ रही है. हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के गेहूं वैज्ञानिक डॉ. ओपी बिश्नोई से हमने बातचीत की और ऐसे समय में किसान अपनी फसल का कैसे ध्यान रखें और कैसे नुकसान से बच सकें, इसके बारे में जानकारी ली.
पीला रतुआ के लक्षण- कृषि वैज्ञानिक डॉ. ओपी बिश्नोई ने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए बताया कि (OP Bishnoi on wheat Crop) पीला रतुआ रोग से फसल को बहुत अधिक हानि होती है. रोग के लक्षण, पीले रंग की धारियों के रूप में पत्तियों पर दिखाई देते हैं. इनमें से हल्दी जैसा पीला चूरन निकलता है तथा पीला पाउडर जमीन पर भी गिरा हुआ दिखाई देता है. इसके अलावा मुख्यत: पत्तियों पर ही पीली धारियां पाई जाती हैं. उन्होंने बताया कि तापमान बढ़ने पर मार्च के अंत में पत्तियों की पीली धारियां काले रंग में बदल जाती हैं. इसका प्रकोप अधिक ठंड और नमी वाले मौसम में बहुत संक्रामक होता है.
पीला रतुआ का इलाज-गेहूं वैज्ञानिक डॉ. ओपी बिश्नोई ने बताया कि पीला रतुआ बीमारी में प्रोपिकोनीजोल दवाई 200 एमएल को 200 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करने से इस बीमारी को दूर किया जा सकता है. हालांकि यह फफूंद बीमारी है और जैसे ही तापमान बढ़ता है, यह धीरे-धीरे खत्म हो जाती है. फिर भी अगर यह फसल में ज्यादा फैल जाती है, तो पैदावार पर 20 से 25 फीसदी तक प्रभावित करती है. इसके अलावा डॉ. ओपी ने बताया कि भूरा रतुआ भी एक बीमारी है, जो हमारे देश के मध्य भाग में आती है. यह बीमारी हाई टेंपरेचर में ही सरवाइव करती है.
ये भी पढ़ें-गेहूं की भूरा रतुआ बीमारी का इलाज करेगा LR-80 जीन, 20 साल की मेहनत के बाद कृषि वैज्ञानिकों को मिली सफलता