गुरुग्राम:संकष्टी चतुर्थी जैसे कि नाम से ही जाहिर है यथा नाम तथा गुण संक का मतलब है संपूर्ण, कष्ट का मतलब है जीवन में संपूर्ण कष्ट जो आपके जीवन में आते हैं. उनके लिए भगवान गणेश जी का व्रत. मान्यता है कि संकष्टी चतुर्थी व्रत से मनुष्य के जीवन में सब दुख और कष्ट दूर हो सकते हैं, तो चलिए संकष्टी चतुर्थी व्रत का विधि विधान और कथा के बारे में जानते हैं.
इस व्रत के बारे में सातवां कायदा में साक्षात बताया गया है. ये एक पौराणिक कथा है जिसमें विष्णु और लक्ष्मी जी का विवाह हुआ था. उस विवाह में सभी देवी देवताओं को बुलाया गया, लेकिन साथ में गणेश जी को नहीं बुलाया. विशेष रूप से शिव जी को बुलाया गया था. जब विष्णु और लक्ष्मी जी के विवाह में भगवान गणेश जी का आदर सत्कार नहीं हुआ, तो उस समय शिव जी ने यह वरदान दिया कि जो भी भक्तगण भगवान गणेश जी की सर्वप्रथम पूजा करेंगे उनके जीवन में सभी कार्य संपूर्ण हो जाएंगे.
पंडित प्रमोद जी बताते हैं कि उस वरदान के बाद से ही यह संकष्टी चतुर्थी व्रत होने लगा. आज यानी 23 नवंबर को यह व्रत है और इस दिन जो भी व्रत करेगा उसके जीवन में हर प्रकार की विघ्न बाधाएं खत्म होगी और पाप भी नष्ट होंगे.
संकष्टी चतुर्थी व्रत की विधि:व्रत करने के लिये सुबह सूर्योदय के समय पर उठना है. स्नान कर खुद को पूरी तरह से पवित्र कर भगवान गणेश जी को पूजन अर्चना करते हुए आपको उन को दूर्वा चढ़ाने है और उनका जो भी निवेदेय है, मिठाई या फूल है वह चढ़ाइए. उसके अलावा रात के समय 8 बजकर 27 मिनट पर (subh muhurat Sankashti Chaturthi) चंद्रोदय का समय है. उस समय पर आप चंद्र देव को अर्घ्य देते हुए गणेश जी का पूजन अर्चन करें.