गुरुग्राम: लोकतंत्र में वोट की चोट सबसे बड़ी होती है जिसका दर्द पूरे पांच साल रहता है. इसी वोट के सहारे शायद किसान अब सरकार तक अपनी फरियाद दबाव के साथ पहंचाना चाहते हैं. जिसका ट्रेलर पंजाब के निकाय चुनावों को माना जा रहा है. पंजाब में कांग्रेस ने बड़ी जीत दर्ज करते हुए 2302 वार्डों में से कांग्रेस ने 1480 वार्डों में जीत दर्ज की है. जिससे हरियाणा कांग्रेस फूले नहीं समा रही है और आने वाले पंचायत चुनाव की चौसर पर चाल चलने से पहले ही विजय पताका का एहसास कर रही है.
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कांग्रेस नेता जितेंद्र भारद्वाज ने कहा कि जेजेपी को जनता ने इसलिए वोट दिया था ताकि बीजेपी सत्ता में ना आए, लेकिन जेजेपी ने लोगों का भरोसा वहीं तोड़ दिया था और अब किसान आंदोलन में किसानों का समर्थन नहीं करने से जेजेपी को आगामी चुनाव में हार का सामना करना पड़ेगा.
पंजाब निकाय चुनाव में बीजेपी की करारी हार कांग्रेस के इस दावे में कितना दम है ये जानने के लिए हमने राजनीतिक विश्लेषक डॉ शालिनी यादव से संपर्क साधा, उन्होंने कहा कि बीजेपी को किसान आंदोलन से नुकसान तो होगा लेकिन फायदा किसे होगा ये कहना अभी आसान नहीं. दरअसल किसान आंदोलन का असर पंजाब के बाद सबसे ज्यादा हरियाणा में ही है. और पंचायत चुनाव सीधे गांव से जुड़ा है, जहां किसान सबसे ज्यादा रहते हैं. लेकिन बीजेपी ऐसा नहीं मानती, उन्हें लगता है कि जो पंजाब में हुआ वो हरियाणा में नहीं होगा.
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बीजेपी प्रवक्ता कुछ भी कहें लेकिन किसान आंदोलन का असर कितना पड़ा है ये आंकड़े बता रहे हैं. पंजाब निकाय चुनाव में कांग्रेस को 68.3 प्रतिशत वोट मिले हैं, और दूसरे नंबर की पार्टी रही है अकाली दल जिसे 14.8 प्रतिशत वोट मिले हैं. पहले और दूसरे नंबर की पार्टी के बीच का अंतर देख लीजिए. जबकि बीजेपी तो चौथे नंबर पर रही है उसे आम आदमी पार्टी से भी कम मात्र 2.67 फीसदी वोट मिला है. इन चुनावों में बीजेपी की बेबसी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सन्नी देओल के संसदीय क्षेत्र में उसे एक भी वार्ड में जीत नहीं मिली. और अब किसान नेता भी कह रहे हैं कि उसे हरियाणा में भी खामियाजा भुगतना पड़ेगा.
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लेकिन बीजेपी से भी ज्यादा अगर इन नतीजों से कोई परेशान है तो वो है जेजेपी, क्योंकि किसान उनका कोर वोटर है और उसमें पूरी सेंध लगती नजर आ रही है. इन सबके बीच हरियाणा में एक और प्लेयर है जो मैदान बदलकर सियासी जमीन तलाश रहा है. नाम है अभय चौटाला, विधायकी से इस्तीफा दे दिया है और पूरे हरियाणा में घूम-घूम कर कह रहे हैं कि सरकार डर की वजह से पंचायत चुनाव नहीं करवा रही है. अब डर हो या ना हो लेकिन सच ये है कि पंजाब में बीजेपी को बुरी हार का सामना करना पड़ा है और हरियाणा में भी किसान आंदोलन का जबरदस्त असर है. तो क्या ऐसे में हरियाणा सरकार पंचायत चुनाव में जाने का रिस्क लेगी या यूं ही ठंडा बस्ता बगल में दबाए रखेगी.