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दो रिक्शों से शुरू किया था गायों के लिए रोटी बैंक, आज 51 रिक्शे घर-घर जाकर जुटा रहे गोवंश के लिए खाना

फरीदाबाद गोवंश को खाने की कमी को पूरा करने के लिए सचिन शर्मा पिछले आठ सालों से एक मुहिम चला रहे है. इस मुहिम के जरिए सड़कों पर खाने के लिए भटक रहे पशुओं तक रोटी (roti bank for stray cows)पहुंचाई जा रही है. एक रिक्शे से शुरु हुई ये मुहिम आज 51 रिक्शों तक पहुंच चुकी है. ये रिक्श शहर के अलग-अलग हिस्सों में घर-घर पहुंचते हैं और रोटी, चारा, सब्जियां आदि लाते हैं. जिन्हें गौशालाओं या सड़क पर घूमते गोवंश तक पहुंचाया जाता है.

Cow Roti Bank Faridabad
दोस्तों से उधार लेकर दो रिक्शों के साथ शुरू किया रोटी बैंक, अब 51 रिक्शाों के जरिए घर-घर से इकट्ठी करते हैं रोटियां

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Published : May 10, 2022, 1:10 PM IST

फरीदाबाद:हिंदू धर्म में गाय को माता का दर्जा दिया गया है. मान्यता है कि गौ माता में 33 करोड़ देवी देवताओं का वास होता है. इसलिए उनको प्रसन्न करने के लिए गौ माता की सेवा की जाती है. हमारे देश में प्राचीन समय से ही परंपरा रही है कि परिवार में बनने वाली पहली रोटी गाय के लिए निकाल दी जाती है. इसके बावजूद कई गोवंश सड़कों पर खाने के लिए घूमते दिखाई देते हैं. चारे की कमी के कारण गोवंश की मौत या फिर सड़कों पर प्लास्टिक और कचरा खाते गोवंश आपको हर शहर में दिख जाएंगे. फरीदाबाद के एक शख्स ने गोवंश तक चारा पहुंचाने के लिए 8 साल पहले ऐसी मुहिम शुरू (roti bank for stray cows) की जो आज रंग लाती दिख रही है. सचिन शर्मा नाम के शख्स की संस्था के 51 रिक्शे शहर में जगह-जगह घूमकर घरों से गोवंश के लिए खाना इकट्ठा करते हैं और फिर इन्हें निशुल्क गौशालाओं और सड़कों पर घूमती गायों तक पहुंचाया जाता है.

कैसे हुई इस मुहिम की शुरुआत- सचिन शर्मा ने बताया कि उन्होंने इस रोटी बैंक की शुरुआत साल 2014 (roti bank for stray cows in faridabad) में की थी. गायों के लिए रोटी बैंक की शुरुआत उन्होंने अपने पिता सोम प्रकाश के नाम पर एक चैरिटेबल ट्रस्ट खोलकर शुरु की. इस ट्रस्ट में आज कई लोग निस्वार्थ सेवा के लिए इससे जुड़ रहे हैं. इस मुहिम के साथ जुड़ने वाले लोग भी खाना इकट्ठा करके रिक्शा चालकों को फोन के माध्यम से बुला लेते हैं. इनका मकसद सिर्फ गोवंश को खाना पहुंचाना है. फरीदाबाद समेत देश के अधिकतर शहरों में आवारा गोवंश घूमता (stray animals in Faridabad) मिल जाएगा, जो खाने के लिए कूड़े के ढेर या प्लास्टिक पर मजबूर रहते हैं.

रंग ला रही गोवंश तक खाना पहुंचाने की मुहिम

दोस्तों से इकट्ठे किए पैसे से खरीदे गए दो रिक्शे- सचिन का कहना है कि साल 2014 में अपने दोस्तों से उधार लेकर दो रिक्शा खरीदे. दोस्तों की मदद से ही रिक्शा चलाने के लिए दो लोगों को नौकरी पर भी रखा गया. सुबह- शाम ये रिक्शे घर-घर जाकर खाना इकट्ठा करते और फिर इस खाने को गोवंश तक पहुंचाते थे. बीते करीब आठ सालों में गोवंश के लिए खाना इक्कठा करने वाले रिक्शों की संख्या 51 पहुंच चुकी है. इन रिक्शों को चलाने के लिए 51 लोगों को नौकरी पर भी रखा गया है, जो शहरभर में घूमते हुए घर-घर जाकर खाना इकट्ठा करते हैं.

मुहिम से जुड़े 25 हजार लोग- शर्मा ने बताया कि जब इस मुहिम को शुरू किया गया तो कुछ लोग ही इस मुहिम से जुड़े थे. धीरे-धीरे यह मुहिम अपना रंग दिखाने लगी. एक के बाद एक लगातार लोग इस मुहिम से जुड़ते चलते गए. जिसका नतीजा यह रहा है कि आज पूरे फरीदाबाद में 25 हजार लोग इस मुहिम के साथ सीधे जुड़े हुए हैं. लोग गोवंश के लिए रोटी, सब्जियां, चारा भी दान करते हैं और जिन्हें इकट्ठा करके गौशालाओं को निशुल्क दिया जाता है. इस तरह रोजाना सैकड़ों क्विंटल खाना अलग-अलग गौशालाओं में भेजा जाता है और सड़क पर घूमते गौवंश को भी दिया जाता है.

दान में मिले पैसों से रिक्शा चालकों को वेतन- इस खाने की मदद से गौशाला में पलने वाले गोवंश को खाने की कोई कमी नहीं रहती. जिससे सड़कों पर घूमने वाले गोवंश को भी आराम से भोजन मुहैया हो पाता है. रोटी या चारा देने के साथ-साथ लोग पैसे भी दान देते हैं, लोग एक रुपये से लेकर श्रद्धा से जितना चाहे दान कर सकते हैं. दान में मिले इन्ही रुपयों से रिक्शा चालकों को वेतिन दिया जाता है.

चारा चाहिए, नारा नहीं-ये इस संस्था का नारा है जो आजकल के उन सियासतदानों पर तंज भी है और सीख भी जो गोवंश के नाम पर सियासत तो करते हैं लेकिन उनके हित के लिए कुछ नहीं करते. सचिन शर्मा ने बताया कि जब उन्होंने इस मुहिम को शुरू किया था तो उनको लगा था कि काफी दिक्कतें होंगी लेकिन जब आप कोई अच्छा कार्य कर रहे होते हैं तो लोग आपके साथ बिना किसी स्वार्थ के जुड़ना शुरु हो जाते हैं. आज उनके साथ इस मुहिम में फरीदाबाद के हजारों की तादाद में लोग जुड़े हुए हैं. इसमें लगभग साठ प्रतिशत महिलाएं उनकी इस मुहिम का हिस्सा हैं जो घर में बचा हुआ खाना, सब्जियां, चारा आदि गायों के लिए देती हैं.

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