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Published : Oct 27, 2021, 4:36 PM IST

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बाजार में घटी मिट्टी बने दीयों की डिमांड, आर्थिक संकट की मार झेल रहे कुम्हार

लॉकडाउन के बाद से कुम्हार आर्थिक तंगी (potter in financial crisis) से जूझ रहे हैं. उम्मीद थी कि इस दिवाली उनका रोजगार चल निकलेगा, लेकिन मार्केट में मिट्टी के दीयों की खरीद (earthen lamps demand Decrease) ना के बराबर हो रही है.

Diyas made from clay demand reduced
Diyas made from clay demand reduced

फरीदाबाद: कोरोना महामारी और लॉकडाउन के बाद से कुम्हार आर्थिक तंगी (potter in financial crisis) से जूझ रहे हैं. उम्मीद थी कि इस दिवाली उनका रोजगार चल निकलेगा, लेकिन मार्केट में मिट्टी के दीयों की खरीद (earthen lamps demand Decrease) ना के बराबर हो रही है. जिसके चलते दीये बनाने वालों से लेकर, दिये बेचने वाले तक आर्थिक तंगी की चपेट में हैं. मिट्टी के दीये, मटके समेत अन्य सामान बनाने वाला कुम्हार तबका कोरोना की शुरुआत से ही आर्थिक तंगी की चपेट में हैं.

इन लोगों को दीपावली जैसे त्योहार के समय अच्छी खरीदारी की उम्मीद रहती है, लेकिन अब हालात उलट नजर आ रहे हैं. पहले समय में दीपावली पर घरों में रोशनी करने के लिए सिर्फ मिट्टी से बने दिये का प्रयोग किया जाता था, लेकिन आज दिये की जगह पर दूसरे कई आइटम बाजार में उपलब्ध हैं और इन्हीं आइटम होने मिट्टी से बने इन दियों के चलन को धीरे-धीरे खत्म कर दिया है. अब केवल नाममात्र के लिए ही इन दियो की लोग खरीदारी कर रहे हैं. इस व्यवसाय से जुड़े लोगों के सामने चिंता की बात ये है कि अब वो क्या करें.

बाजार में घटी मिट्टी बने दीयों की डिमांड, आर्थिक संकट की मार झेल रहे कुम्हार

फरीदाबाद में मेवात में पलवल जिले से मिट्टी का सामान बन कर बिक्री के लिए आता है, लेकिन इस बार कुम्हारों को उनके सामान की कीमत निकालना भी बेहद भारी पड़ रहा है. कुम्हारों ने बताया कि लॉक डाउन होने से पहले दीपावली पर हर बार लोग जमकर खरीदारी करते थे और सामान्य दिनों में भी दूर से सामान की खरीदारी होती थी.

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पिछली दीवाली भी उनकी बिल्कुल खाली रह गई और इस बार की दिवाली पर भी उनको नहीं लग रहा कि उनकी लगाई हुई कीमत भी निकल पाएगी, क्योंकि दीपावली के आने से पहले ही लोग मिट्टी का सामान खरीदना शुरू कर देते थे, लेकिन इस बार इस तरह का कोई खरीदारी करता हुआ नजर नहीं आ रहा है. पहले भारी संख्या में मिट्टी के सामान की खरीदारी होती थी लेकिन अब केवल बेहद कम मात्रा में सामान खरीदा जा रहा है. जिसका सीधा असर उनकी आर्थिक हालात पर पड़ रहा है.

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