फरीदाबाद: हिंदू धर्म में शादी में कई तरह के रीति रिवाज देखने को मिलते हैं. अक्सर आपने देखा होगा कि शादियों में कई तरह के विधि-विधान होते हैं. कन्यादान से लेकर तरह-तरह के रीति रिवाज शादियों में आपको देखने को मिलता है. इन विधि विधान में एक विधि सबसे खास मानी जाती है और वह है शादी में सात फेरे. आपने देखा होगा कि किस तरह से शादियों में अग्नि के सात फेरे लिए जाते हैं और पंडित मंत्र उच्चारण करते हैं. वर-वधु अग्नि के चारों तरफ घूमते हुए सात फेरे लेते हैं, लेकिन इसके पीछे वजह क्या है. आज आपको बताने जा रहे हैं कि सात फेरों का महत्व क्या है और अग्नि के सात फेरे क्यों लिए जाते हैं.
ईटीवी भारत से बातचीत में महंत मुनिराज बताते हैं कि यह सात फेरे नहीं बल्कि वास्तविक में सनातन धर्म पद्धति में 4 फेरे होते हैं. यह 4 फेरे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष है. आपने देखा होगा कि 4 फेरे के बाद वर और वधु को बिठा दिया जाता है. उसके बाद 3 फेरे फिर लिए जाते हैं. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि अग्नि के साथ फेरे होते हैं और यही वजह है कि वर वधु सात फेरे लेते हैं. लेकिन हमारे यहां सभी देवताओं के फेरे का विधान अलग है और निश्चित किया गया है कि किसकी कितनी फेरे लेनी चाहिए.
महंत मुनिरज बताते हैं कि सूर्य भगवान के 1 फेरे भी लेते हैं और सात फेरे भी लेते हैं. क्योंकि उनके साथ घोड़े हैं. वहीं, गणेश भगवान की तीन परिक्रमा लगाते हैं, शिवजी की आधी परिक्रमा लगती है. इसी प्रकार से शादियों में भगवान विष्णु के चार फेरे लगती है, चार फेरों में 3 फेरे में कन्या आगे रहती है और चौथे में वर को आगे किया जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि वर-वधु लक्ष्मी और विष्णु का स्वरूप होते हैं. लेकिन अग्नि के स्वरूप साथ होते हैं. इसीलिए साथ फेरे लिए जाते हैं.