फरीदाबाद: उत्तर भारत में इन दिनों प्रचंड गर्मी पड़ रही है. अप्रैल में ही जून-जुलाई की तपती गर्मी का अहसास हो रहा है. सोमवार को फरीदाबाद में 42 डिग्री तापमान दर्ज किया गया. हर दिन बढ़ते तापमान के चलते मधुमक्खी पालकों के सामने आर्थिक संकट (bee farming in haryana) खड़ा हो गया है. इस प्रचंड गर्मी की वजह से मधुमक्खियों की मौत हो रही है. गर्मी की वजह से शहद का उत्पादन नाममात्र ही रह गया है.
शहद का उत्पादन घटने से इसके दाम भी बढ़ गए हैं. जिस शहद का रेट कुछ दिनों पहले 70 रुपये प्रति किलो था. अब वो 150 रुपये प्रति किलो बिक रहा है. बढ़ती गर्मी (temperature in haryana) की वजह से मधुमक्खी पालन व्यवसाय इन दिनों आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है. इस बार अप्रैल की शुरुआत से ही तापमान 42 डिग्री तक पहुंच चुका है. जो अमूमन जून-जूलाई में होता था. इसी वजह से मधुमक्खियों की मौत हो रही है.
हरियाणा में प्रचंड गर्मी से चौपट हुआ मधुमक्खी व्यवसाय, महंगा हुआ शहद तापमान बढ़ने से मधुमक्खियों को फूलों से निकलने वाला पराग (रस) नहीं मिल रहा है, क्योंकि तेज गर्मी और गर्म हवाओं के चलते फूल सूख चुके हैं. जिसके चलते मधुमक्खियों को पराग की तलाश में दूर जाना पड़ रहा है, लेकिन तपती गर्मी में उनकी मौत हो रही है. मधुमक्खियों के लिए 30 से 32 डिग्री तापमान आदर्श माना जाता है. इतने तापमान पर करीब हजार अंडे देती है, लेकिन अब ज्यादा तापमान की वजह से मादा मधुमक्खी सिर्फ 300 के करीब ही अंडे दे रही हैं.
उन अंडों से निकलने वाले बच्चों की भी समय से पहले ही मौत हो जाती है. इसका सीधा असर आर्थिक तौर से मधुमक्खी पालकों को उठाना पड़ रहा है. मधुमक्खी पालन (bee farming in faridabad) के लिए 32 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान बेहद सही माना जाता है, लेकिन इस बार तापमान अप्रैल के महीने में ही 42 डिग्री तक पहुंच गया है. मधुमक्खी का 44 दिन का जीवन चक्र होता है. अंडे से 16 दिन बाद मधुमक्खी का जन्म होता है. वो 6 दिन बाद परागण के लिए विचरण कर देती है.
मधुमक्खी पालन के लिए 32 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान बेहद सही माना जाता है. 22 दिनों तक परागण के बाद उसकी आयु समाप्त हो जाती है. इससे पहले वो अंडे दे चुकी होती है. मधुमक्खी पालक अरसद ने बताया कि अब उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती मधुमक्खियों को जीवित रखने की है, क्योंकि अगर ऐसा ही रहा तो नवंबर महीने तक आने में भारी संख्या में मधुमक्खियों की मौत हो जाएगी. मधुमक्खियों को बचाने के लिए उन्होंने डिब्बों के अंदर ही पानी रखा हैं. रस के लिए मधुमक्खियों को चीनी का घोल दे रहे हैं. किसानों के मुताबिक वो मधुमक्खियों को उत्तराखंड से लीची के बागों से लेकर गए थे, लेकिन वहां स्प्रे (पेस्टिसाइड) का इस्तेमाल बेहद ज्यादा मात्रा में हो रहा है. जिस वजह से वहां भी मधुमक्खियों की मौत हो रही है.
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