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फरीदाबाद सूरजकुंड मेले का अद्भुत नजारा, लोगों को लुभा रही असम की 500 साल पुरानी मुखौटा कला - फरीदाबाद सूरजकुंड मेला

फरीदाबाद सूरजकुंड मेला लोगों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. यहां पर असम की मुखौटा कला का अद्भुत नजारा लोगों को खूब दीवाना बना रहा है. इस मेले में दूर-दूर से आये लोगों ने इस कला की काफी सराहना की है.

mask art of Assam in Faridabad Surajkund
फरीदाबाद सूरजकुंड मेला

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Published : Feb 13, 2023, 6:01 PM IST

Updated : Feb 13, 2023, 8:06 PM IST

सूरजकुंड मेले में असम के मुखौटा कलाकार

फरीदाबाद:हरियाणा के फरीदाबाद में इन दिनों सूरजकुंड मेले में खूब शानदार दृश्यों के लोग दिवाने होते जा रहे हैं. यहां पर शानदार कलाकृतियां लोगों को इस कदर लुभा रही हैं, कि दूर-दूर से लोग यहां आ रहे हैं. 36वां अंतरराष्ट्रीय हस्तशिल्प सूरजकुंड मेला 2023 तीन फरवरी से शुरू हुआ था, तभी से यहां पर लोगों की काफी ज्यादा भीड़ जुटनी शुरू हो गई थी. यहां पर हर रोज भीड़ बढ़ती ही जा रही है. बता दें कि फरीदाबाद सूरजकुंड मेला 19 फरवरी तक चलेगा.

असम की इस कला के दिवाने लोग: वहीं, 36 वें अंतरराष्ट्रीय सूरजकुंड मेले में इस बार थीम स्टेट पूर्वोत्तर राज्यों में से एक असम की 500 साल पुरानी मुखौटा कला का अद्भुत नजारा यहां देखने को मिल रहा है. मुखौटा कला में माहिर असम से आए क्राफ्ट मैन धीरेंद्र की स्टॉल पर विभिन्न प्रकार के छोटे और बड़े मुखौटों की प्रदर्शनी लगाई गई है. वहीं, इन लोगों द्वारा बांस की लकड़ी, गाय का गोबर और मिट्टी तथा कपड़े के इस्तेमाल से मुखौटे बनाए भी जा रहे हैं. जिन्हें देखकर दर्शक हैरान हो रहे हैं.

शिल्पकारों ने बनाये अद्भुट मुखौटे

धीरेंद्र को राष्ट्रपति से मिल चुका है सम्मान: मुखौटा कला लेकर आए क्राफ्ट मैन ने बताया कि यह मुखौटे रामायण, रासलीला और नाटकों के अलावा घरों में लगाने के काम आते हैं और यह कला आज भी जीवित है. क्राफ्ट मैन धर्मेंद्र ने बताया कि उसके पिता को तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल कलाम से सम्मान में ताम्रपत्र भी मिल चुका है. 500 साल पुरानी मुखौटा कला का नमूना लेकर असम से आए क्राफ्ट मैन धीरेंद्र ने बताया कि यह उनका पुश्तैनी काम है. जिसके लिए उसके पिता को तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल कलाम के हाथों ताम्रपत्र के अलावा कई अवार्ड मिल चुके हैं.

500 सालों से असम की मुखौटा कला जिवित: उनके बाद अब वह इस कला को आगे बढ़ा रहे हैं. उन्होंने बताया कि इन मखौटों के इस्तेमाल पिछले 500 सालों से रामायण, रासलीला और नाटकों के अलावा घरों में शोपीस के तौर पर लगाने के काम आ रहा है. उन्होंने बताया कि इन मखौटों का निर्माण बांस की लकड़ी और गाय के गोबर के अलावा कपड़े के इस्तेमाल से किया जाता है और फिर इसमें रंग भरे जाते हैं.

ये मुखौटा कला है 500 साल पुरानी

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जानिए मुखौटे की कीमत:धीरेंद्र ने बताया कि उनके यहां 500 से 1 लाख रुपये तक की कीमत के मुखौटे मौजूद हैं. उन्होंने बताया कि वह पहली बार मेला अथॉरिटी के निमंत्रण पर यहां आए हैं और आगे भी वह बार-बार यहां आना चाहेंगे. उन्होंने बताया कि यहां मेला दर्शक उनके आर्ट खूब पसंद कर रहे हैं. जिनसे उनके मुखौटों की डिमांड भी बढ़ती जा रही है. लोगों ने उनकी इस कला की काफी सराहना भी की है.

मुखौटे की सराहना:वहीं, मेला दर्शक भी इस कला की तारीफ करते देखे गए. मेरठ से आई महिला सुषमा चंद्रा ने कहा कि यह कला अद्भुत है और ऐसी कला सिर्फ भारत में ही देखने को मिलती है. महिला ने कहा कि वह अपने घर के लिए एक मुखौटा जरूर लेकर जाएंगी. वहीं, दूसरी महिला किरण ने बताया कि यह बहुत ही खूबसूरत कला है जिसे बड़ी ही खूबसूरती से बनाया गया है. इस कला को यह लोग जीवित रखे हुए हैं, यही बड़ी बात है.

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Last Updated : Feb 13, 2023, 8:06 PM IST

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