चरखी दादरी: जिला के किसानों को धान खरीद केंद्र खुलने पर खुशी जरूर हुई लेकिन धान केंद्र खुलने के बाद भी किसान अपना धान नहीं बेच पा रहे हैं. जिस गुणवत्ता के पीआर धान की खरीद के लिए सरकार ने ये केंद्र खोले हैं, लेकिन इस क्षेत्र में उस न की पैदावार ही नहीं होती है.
किसानों को हो रही परेशानी
ऐसे में किसानों को अपना धान औने-पौने दामों पर बेचकर नुकसान उठाना पड़ रहा है. वहीं मार्केट कमेटी अधिकारियों ने सरकार के नियमों का हवाला देते हुए अपना पल्ला झाड़ लिया है.
किसानों को नहीं मिल रहा उचित दाम
बता दें कि प्रदेश सरकार द्वारा चरखी दादरी में धान खरीद केंद्र शुरू किया गया है. सरकार द्वारा निर्धारित नियमों के अनुसार नीचले स्तर की पीआर गुणवत्ता का ही धान 1835 प्रति क्विंटल के सरकारी रेट पर खरीद की जाएगी, लेकिन इस क्षेत्र में पीआर की बजाए बासमति या अन्य धान की किस्म की पैदावार होती है. ऐसे में किसानों को दादरी की बजाए अन्य शहरों में अपना धान बेचने जाना पड़ेगा.
मंडी में धान खरीद को लेकर परेशान, देखें वीडियो औने-पौने दामों में धान बेचने को मजबूर किसान
मंडी में पीआर धान नहीं आने से खाद्य आपूर्ति विभाग द्वारा अब तक धान खरीदा ही नहीं गया है. हालांकि किसान अपना धान लेकर मंडी में पहुंच रहे हैं लेकिन खरीद नहीं होने से मंडी से बाहर औने-पौने में दामों में बेचकर जाना पड़ रहा है.
मंडी में परेशान किसान
उधर अनाजमंडी प्रधान रामकुमार रिटोलिया ने बताया कि सरकार ने जो धान की किस्म को सरकारी रेट पर खरीदने के लिए धान केंद्र खोला है, लेकिन पीआर से अच्छी गुणवत्ता का धान पैदा करने वाले किसानों को अपनी फसल बेचने के लिए काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.
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पीआर धान न आने से मंडी में परेशानी
मार्केट कमेटी के डीएमईओ श्याम सुंदर ने बताया कि सरकार की तरफ से दादरी और भिवानी मंडी में धान की खरीद शुरू की गई है. दोनों खरीद केंद्रों पर सिर्फ पीआर धान की खरीदा जा रहा है. लेकिन पीआर धान नहीं आने से अब तक धान की खरीद नहीं की गई है.
व्यापारियों की बल्ले-बल्ले!
गौरतलब है कि चरखी दादरी की अनाज मंडी में हरियाणा सरकार द्वारा किसानों की धान की खरीद न होने से व्यापारी मनमर्जी तरीके से ओने-पोने दामो में किसान की धान और कपास की फसल को खरीद रहे है. सरकार के इस कदम से एक ओर जहां व्यापारियों की बल्ले-बल्ले हो रही है तो वहीं धरतीपुत्रों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है क्योंकि उन्हें उनकी मेहनत से उगाई गई फसल को व्यापारी के मन मुताबिक दामों में बेचना पड़ रहा है.