चरखी दादरी:जब भी देश की सरहदें खतरे में पड़ीं तो हमारे जांबाजों ने अपना सब कुछ लुटा दिया ताकि देश पर कोई आंच ना आए और उनकी वजह से ही आज हम खुली हवा में सांस ले रहे हैं. ऐसा ही शौर्य मां भारती के वीर सपूतों में करगिल में भी दिखाया था. करगिल युद्ध में दुश्मनों को खदेड़ने वाले भारत के 527 से ज्यादा शूरवीर शहीद और 1300 से ज्यादा घायल हो गए थे. शहीद होने वाले जवानों में चरखी दादरी जिले के भी पांच जवान अपना लोहा मनवाते हुए दुश्मनों के छक्के उड़ाकर शहीद हुए थे.
करगिल युद्ध में शहीद हुए जवानों के परिवारों को सरकार ने आर्थिक सहायता, रोजगार आदि दिया था. ये तो है करगिल युद्ध की मुख्य कहानी, लेकिन इसका एक दूसरा पहलू भी है. भले ही करगिल युद्ध के शहीदों के आश्रितों को केंद्र व राज्य सरकारों, विभिन्न निजी प्रतिष्ठानों ने पर्याप्त मान सम्मान, आर्थिक सहायता, रोजगार के साधन मुहैया करवाएं हों, लेकिन आज भी इस युद्ध में मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुतियां देने वाले जवानों के परिवार इंसाफ के लिए दर-दर भटक रहे हैं.
शहीद आश्रितों का कहना है कि जो मान-सम्मान मिलना चाहिए वह नहीं मिला. सिर्फ शहीदी दिवस या अन्य शहीदों को लेकर होने वाले कार्यक्रमों में बुलाते हैं और भीड़ दिखाकर सहयोग देने का आश्वासन देकर भूल जाते हैं. वहीं शहीद हुए जवानों की पत्नियों को तो कुछ मिल गया, लेकिन माता-पिता को कुछ नहीं मिला. बेटों के गम में तो चरखी दादरी के शहीद जवानों की दो माताएं भी दुनिया छोड़कर चली गई.
करगिल के दौरान दादरी क्षेत्र के पांच जवान अपना लोहा मनवाते हुए दुश्मनों के छक्के उड़ाकर शहीद हुए थे. करगिल में शहीद होने वाले जवानों में गांव बलकरा निवास वीर चक्र विजेता रणधीर सिंह, मौड़ी निवासी हवलदार राजबीर सिंह, रावलधी निवासी हवलदार राजकुमार, चरखी से सिपाही सुरेश कुमार, महराना से फौजी कुलदीप सिंह शामिल हैं. इन जवानों ने करगिल युद्ध के दौरान अपना लोहा मनवाया और देश के लिए शहीद हुए.
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