चरखी दादरी: हरियाणा में लंपी वायरस को लेकर सरकार एक्टिव मोड में आ गई है. कृषि एवं पशुपालन मंत्री जेपी दलाल ने कहा है कि पशुओं में चल रही लंपी वायरस की बीमारी से उनको बचाने के लिए पूरे हरियाणा में वैक्सीनेशन (lumpy vaccination in haryana) शुरू कर दिया गया है. इसके लिए केंद्र सरकार के सहयोग से हरियाणा सरकार द्वारा अभियान चलाया जा रहा है. उन्होंने कहा कि हरियाणा में कुछ हजार पशुओं को ही लंपी स्किन की बीमारी है. विभाग के कर्मचारी व विशेषज्ञों की टीम को फील्ड में उतारा जा चुका है. जल्द ही सरकार द्वारा विशेष अभियान चलाकर इस बीमारी पर काबू पा लिया जाएगा.
मंत्री जेपी दलाल चरखी दादरी के बाढड़ा कस्बे में कार्यकर्ताओं से मिलने पहुंचे थे. उन्होंने महाराणा प्रताप बागवानी विश्वविद्यालय करनाल के लोहारू के गांव खरकड़ी-ढिगावा में बनने वाले बागवानी अनुसंधान केंद्र के शुभारंभ पर पहुंचने का न्यौता दिया. उन्होंने कहा कि 21 अगस्त को मुख्यमंत्री अनुसंधान केंद्र का शुभारंभ करेंगे और यह किसानों की खुशहाली में मील का पत्थर साबित होगा. मंत्री ने कहा कि क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र, खरकड़ी में बागवानी उत्पादन से संबंधित सभी विषयों पर अनुसंधान कार्य होगा. इसमें देश व विदेश की सभी जगहों पर उपलब्ध फलों, सब्जियों, औषधीय और सुगंधित पौधों, मसालों आदि की किस्मों का संग्रह भी शामिल होगा.
पशुपालन मंत्री जेपी दलाल ने बोले, पशुओं को लंपी वायरस से बचाने के लिए नहीं आने दी जायेगी वैक्सीन की कमी इस दौरान मीडिया से बात करते हुए कृषि एवं पशुपालन मंत्री जेपी दलाल ने माना कि हरियाणा में कुछ हजार पशु लंपी बीमारी की चपेट में आए हैं. समय रहते सरकार द्वारा बीमारी पर काबू पा लिया जाएगा. इसके लिए केंद्र सरकार के सहयोग से हरियाणा सरकार द्वारा वैक्सीनेशन के लिए अभियान शुरू कर दिया है. उन्होंने कहा कि वैक्सीन की कमी नहीं होने दी जाएगी. पूरे प्रदेश में पशुओं का वैक्सीनेशन किया जायेगा.
इससे पहले शुक्रवार को चंडीगढ़ में हुई इस बैठक में मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने लंपी स्किन बीमारी को लेकर मुख्य सचिव को हर दिन मॉनिटरिंग करने के निर्देश दिए थे. उन्होंने कहा कि मुख्य सचिव तत्काल सभी जिला उपायुक्तों, पुलिस अधीक्षकों, पशुपालन विभाग के सभी अधिकारियों की बैठक लें. मुख्यमंत्री ने पशुपालन विभाग को रणनीति के तहत काम करने के निर्देश दिए. सीएम ने कहा कि कोरोना महामारी की तरह हमें इस बीमारी से लड़ने के लिए मिशन मोड में काम करना है. बाजार में लंपी वायरस की वैक्सीन जितनी उपलब्ध है, उसे तत्काल खरीदा जाए.
दरअसल हरियाणा में लंपी वायरस का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा है. सबसे ज्यादा इसका प्रकोप यमुनानगर जिले में देखा जा रहा है. यमुनानगर का कोई भी ऐसा गांव नहीं है जहां लंपी वायरस से पशु बीमार ना हो. पशुपालन विभाग का कहना है कि गोट पॉक्स की वैक्सीन मंगाई गई है लेकिन लगाने के लिए अभी अधिकारियों के आदेश का इंतजार कर रहे हैं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक यमुनानगर में अब तक करीब 9 हजार पशु लंपी वायरस की चपेट में आ चुके हैं. जिले का कोई भी गांव इस वायरस से अछूता नहीं है. केवल यमुनानगर में लंपी वायरस से मौत(Lumpy virus death in Yamunanagar)का आंकड़ा अभी तक 14 हो गया है. जिला पशुपालन एवं डेयरी विभाग के मुताबिक 4300 पशु अब तक ठीक हो चुके हैं.
लंपी स्किन डिजीज की वैक्सीन-हिसार के राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों ने लंपी वायरस की वैक्सीन (Lumpy skin disease Vaccine) तैयार कर ली है. ये पहली स्वदेशी वैक्सीन है. लंपी स्किन डिजीज (एलएसडी) सबसे पहले अफ्रीका में पाई जाती थी. मगर वर्ष 2019 में भारत आई और इसका सबसे पहला मामला ओडिशा में मिला था. ग्लोबल अलायंस फॉर वैक्सीन्स एंड इम्युनाइजेशन (गावी) की रिपोर्ट कहती है कि लंपी त्वचा रोग कैप्रीपोक्स वायरस के कारण होता है.
लंपी स्किन बीमारी से गौवंश को खतरा-लंपी स्किन बीमारी मुख्य रूप से गौवंश को प्रभावित करती है. देसी गौवंश की तुलना में संकर नस्ल के गौवंश में लंपी स्किन बीमारी के कारण मृत्यु दर अधिक है. इस बीमारी से पशुओं में मृत्यु दर 1 से 5 प्रतिशत है. रोग के लक्षणों में बुखार, दूध में कमी, त्वचा पर गांठें, नाक और आंखों से स्राव आदि शामिल हैं. रोग के प्रसार का मुख्य कारण मच्छर, मक्खी और परजीवी जैसे जीव हैं. इसके अतिरिक्त, इस बीमारी का प्रसार संक्रमित पशु के नाक से स्राव, दूषित फीड और पानी से भी हो सकता है.
लंपी स्किन बीमारी के उपचार एवं रोकथाम- वायरल बीमारी होने के कारण प्रभावित पशुओं का इलाज केवल लक्षणों के आधार पर किया जाता है. बीमारी की शुरूआत में ही इलाज मिलने पर इस रोग से ग्रस्त पशु 2-3 दिन के अन्तराल में बिल्कुल स्वस्थ हो जाता है. किसानों को मक्खियों और मच्छरों को नियंत्रित करने की सलाह दी जा रही है, जो बीमारी फैलने का प्रमुख कारण है. प्रभावित जानवरों को अन्य जानवरों से अलग करना अत्यंत महत्वपूर्ण है. बछड़ों को संक्रमित मां का दूध उबालने के बाद बोतल के जरिए ही पिलाया जाना चाहिए.
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