चंडीगढ़: कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन पंजाब से शुरू होकर हरियाणा के रास्ते दिल्ली की सीमाओं पर पहुंचा था. धीरे-धीरे इस आंदोलन को देश के बाकी राज्यों के किसानों का भी समर्थन मिलने लगा. हालांकि 26 जनवरी को दिल्ली में किसान ट्रैक्टर परेड के दौरान हुई हिंसा ने आंदोलन को लगभग बैकफुट पर ला दिया था, लेकिन सरकार द्वारा गाजीपुर बॉर्डर पर किसानों का बिजली पानी बंद करने और जबरन किसानों को उठाने पर किसान नेता राकेश टिकैत रो पड़े थे.
सीएम ने राकेश टिकैत को यूपी जाने की दी नसीहत
टिकैत के आंसूओं के बाद आंदोलन में नई जान पड़ गई थी और पश्चिमी यूपी व हरियाणा के किसान एक बार फिर आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए दिल्ली की ओर कूच कर गए. वहीं इतना समर्थन मिलने के बाद राकेश टिकैत और बाकी किसान नेताओं ने एक के बाद एक कई महापंचायत की. हरियाणा में राकेश टिकैत ने अब तक तीन महापंचायत की हैं. जिसको लेकर सीएम मनोहर लाल ने एक तरह से आपत्ति भी दर्ज की और टिकैत को उत्तर प्रदेश में जाकर किसानों को समझाने की नसीहत दे डाली.
सीएम मनोहर लाल ने कहा कि कुछ लोग किसानों के कंधों पर बंदूक रख कर चला रहे हैं. राकेश टिकैत को अगर किसानों को समझाना है तो यूपी में जाकर समझाएं, हरियाणा को कुरुक्षेत्र ना बनाएं. हरियाणा के किसान खुश हैं और सुखी हैं.
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कांग्रेस ने भी सीएम पर किया पलटवार
वहीं सीएम के ऐसे बयान के बाद माहौल तो गर्म होना ही था. कांग्रेस ने बिना देर किए सीएम पर हमला बोल दिया और सीएम के बयान को संविधान का हनन बताया. हरियाणा कांग्रेस प्रभारी विवेक बंसल ने कहा कि देश सभी का है और इस देश में हर नागरिक अपने राजनीतिक विमर्श को या समस्या को लेकर अपने विचार सांझा कर सकता है. अगर मुख्यमंत्री सोचते हैं कि देश के अन्य भागों से अपने प्रदेश में किसी को राजनीतिक चर्चा या विमर्श नहीं करने देंगे, तो ये संविधान का हनन है.
राकेश टिकैत ने कहा ये आंदोलन हरियाणा के नौजवानों का
वहीं ऐसे बयान के बाद राकेश टिकैत भी कहां चुप रहने वाले थे. उन्होंने भी सीएम के बयान पर पलटवार किया और कहा कि हरियाणा में रैली करना क्या बैन है क्या, मैं हरियाणा का ही तो ही हूं, पूरा देश हमारा है. हम कुरुक्षेत्र से माथे पर टीका लगाकर चले हैं. ये हरियाणा के किसान और नौजवान का आंदोलन है. आंदोलन के लिए सरकार को हमने दो अक्टूबर तक का समय दिया है. टिकैत ने कहा कि जो मेरे आंसू निकले थे, ये मेरे आंसू नहीं थे, ये भारत के किसान के आंसू थे.
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