चंडीगढ़: हरियाणा के MBBS छात्रों की बॉन्ड पॉलिसी हड़ताल का कल एक महीना पूरा हो रहा (bond policy strike of Haryana MBBS students) है. एक महीने से हड़ताल के बीच दो बार सरकार के साथ इनकी बातचीत हो चुकी है लेकिन दोनों बार बातचीत के बाद कोई समाधान नहीं निकल पाया. अब तीसरी बार इन छात्रों की कल यानी बुधवार को सीएम मनोहर लाल के साथ चंडीगढ़ में बातचीत होगी. छात्र उम्मीद जता रहे हैं कि कल शायद सरकार उनकी बात को मान ले और कोई न कोई फैसला इसका निकल जाए.
क्या है MBBS छात्रों की बॉन्ड पॉलिसी? हरियाणा सरकार द्वारा एमबीबीएस छात्रों के लिए लाई गई बांड पॉलिसी के तहत डॉक्टरों को स्नातक और स्नातकोत्तर की स्टडी पूरी होने के बाद एक निश्चित समय अवधि के लिए राज्य सरकार द्वारा चल रहे अस्पतालों में काम करने की आवश्यकता होती है. अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो उन्हें इस के तौर पर जुर्माना देना होगा.
क्या है मेडिकल कॉलेज में बॉन्ड पॉलिसी, जानिए क्यों मचा है हरियाणा में बवाल हरियाणा में सरकारी संस्थाओं में पढ़ने वाले मेडिकल के छात्रों को प्रवेश के समय त्रिपक्षीय फॉर्म पर साइन करने होते हैं. 40 लाख के इस बोर्ड के तहत यह सुनिश्चित किया गया है कि एमबीबीएस छात्र 7 साल तक सरकार के लिए काम करेंगे. इतना ही नहीं राज्य सरकार का यह भी तर्क है कि हरियाणा में डॉक्टरों की कमी है जिसकी वजह से उन्हें इस तरह का बॉन्ड लाना पड़ा है. यानी सरकार कहीं ना कहीं डॉक्टरों की कमी को देखते हुए भी इस को एक आधार मान रही है. वही सरकार यह भी तर्क देती है कि ग्रामीण क्षेत्रों में डॉक्टर जाना पसंद नहीं करते. इसलिए भी इस बोर्ड के तहत उन्हें ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य करना होगा.
छात्र क्यों कर रहे हैं बॉन्ड पॉलिसी का विरोध?
छात्र लगातार सरकार की इस पॉलिसी का विरोध कर रहे हैं. वे इसे न्याय संगत नहीं मानते हैं. उनका कहना है कि अगर साधारण आदमी इसे समझना चाहे तो जो कुछ इस तरह है कि अभी हमारी मौजूदा साल की फीस फीस 52 हजार है, जो कि सरकार ने अब सीधी 10 लाख कर दी है. उनका कहना है कि सरकार हमें जॉब्स सिक्योरिटी देने के लिए तैयार नहीं है.
उनका कहना है कि सरकार तर्क दे रही है कि यह बॉन्ड पॉलिसी इसलिए बनाई गई है क्योंकि डॉक्टर की कमी है, और छात्र इससे बंधे रहे. उनका कहना है कि अगर सच में ही डॉक्टरों की कमी है तो फिर वह छात्रों को नौकरी देने के लिए तैयार क्यों नहीं होती. वे कहते हैं कि हरियाणा और देश में 11 हजार मरीजों पर एक डॉक्टर है, जबकि डब्ल्यूएचओ की गाइडलाइन के मुताबिक एक हजार लोगों पर एक डॉक्टर होना चाहिए. जब डॉक्टरों की कमी है तो फिर नौकरी देने का वादा सरकार क्यों नहीं करती.
वे कहते हैं कि हम तो ग्रामीण क्षेत्रों में भी काम करने के लिए तैयार है लेकिन सरकार नौकरी ही नहीं देना चाहती. उनका कहना है कि 40 लाख के बॉन्ड की ईएमआई करीब 68 हजार पड़ेगी, वह डॉक्टर कैसे पूरी करेंगे. उनका कहना है कि अगर हम नौकरी के लिए रिफ्यूज करते हैं तो फिर सरकार बॉन्ड लेना चाहती है तो ले ले. वे कहते हैं कि अगर सरकार हमारी सेवाएं लेना चाहती है तो वह हम पर कंपलसरी एक साल के ग्रामीण क्षेत्र में कार्य करने का बॉन्ड भरवा ले. वे कहते हैं कि अगर सरकार को हमें नौकरी देने में दिक्कत आ रही है तो वह इस संबंध में हमारे सामने स्थिति को स्पष्ट करे.
अभी तक की बैठक को लेकर क्या कहते हैं छात्र? छात्रों का कहना है कि अभी तक की बातचीत में बार बार यह बात आती है कि रीपेमेंट ऑफ बॉन्ड हम पर थोपा जाए. सरकार चाहती है कि जो हम पर खर्चा हो रहा है, इंफ्रास्ट्रक्चर वगैरह पर वह हम से वसूला जाए. सरकार अपनी ओर से हर तर्क बता रही है, लेकिन हमें जॉब की गारंटी देने से पीछे हट रही है. यानी छात्र लगातार मांग कर रहे हैं कि उन्हें जॉब की गारंटी दी जाए. लेकिन उन्हें यह नहीं मिल पा रही है.
क्या कहते हैं फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन के पदाधिकारी?फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन (Federation of All India Medical Association) भी इस मामले को लेकर छात्रों के साथ खड़ी दिखाई देती है. उनका कहना है कि सरकार 40 लाख का बॉन्ड भरवा रही है. इसका मतलब यह है कि जैसे ही हम दाखिल होंगे वैसे ही हम पर इस बॉन्ड के तहत लोन लागू हो जाएगा. वे कहते हैं कि लोन जैसी स्थिति कभी भी स्वस्थ परंपरा नहीं होती.
वे कहते हैं कि जैसे ही छात्र एमबीबीएस करके बाहर निकलेगा तो वह गुलाम मानसिकता या यूं कहें बंधुआ मजदूर वाली मानसिकता के साथ आएगा. इतना ही नहीं वे कहते हैं कि ऐसे में गरीब लोगों को एमबीबीएस में दाखिला लेना भी मुश्किल होगा. जहां तक सरकार बच्चों को जॉब की गारंटी नहीं दे पा रही है तो इस मामले पर वे कहते हैं कि वैसे तो डॉक्टरों की भारी कमी है.
वे कहते हैं कि अगर आज डॉक्टर की 1000 भर्ती करवाई जाए तो करीब 5 से 8 साल के बीच एप्लीकेशन आती है. वे कहते हैं कि दो-तीन साल में ही नौकरी निकलती है तो ऐसे में सभी को नौकरी मिलना मुश्किल है. अगर सरकार इस तरीके का बॉन्ड करवाना चाहती है तो वह फिर जॉब गारंटी दे.
डॉक्टरों की हरियाणा में अभी क्या है स्थिति?
वर्तमान के आंकड़ों पर नजर डालें तो हरियाणा में अभी करीब 3000 से अधिक डॉक्टर हैं. जबकि अभी भी 800 से 900 डॉक्टरों की कमी सरकार के सामने है. जिनमें स्पेशलिस्ट डॉक्टर और सामान्य डॉक्टर सभी की पोस्ट शामिल है. हालांकि इस कमी को पूरा करने के लिए सरकार जल्द ही भर्ती प्रक्रिया शुरू करने वाली है लेकिन सवाल यह है कि जब सरकार के पास आने वाले एमबीबीएस छात्रों के लिए जॉब गारंटी नहीं है तो फिर उस स्थिति में क्या छात्रों के दबाव के आगे सरकार अपनी वर्तमान बोर्ड पॉलिसी में कोई बदलाव लाएगी.