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5 साल में इनेलो का सफर, 19 से 1 सीट पर पहुंची ताऊ देवीलाल की पार्टी - vote share of inld

पूर्व उप प्रधानमंत्री देवी लाल द्वारा गठित इस पार्टी का ये अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन है. पार्टी नेता अभय सिंह चौटाला को छोड़कर सभी उम्मीदवारों को हार का सामना करना पड़ा है. अभय सिंह चौटाला को सिरसा जिले की ऐलनाबाद सीट पर जीत हासिल हुई है.

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Published : Oct 25, 2019, 11:51 PM IST

चंडीगढ़ःहरियाणा विधानसभा चुनाव में एक ओर जहां बीजेपी का 75 पार का नारा फेल रहा तो वहीं 2014 में मुख्य विपक्ष पार्टी के रूप में उभरी इनेलो का भी हालत बेहद खस्ता रही. 2019 में हरियाणा विधानसभा चुनाव के परिणाम से इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) को बड़ा झटका लगा है.

अभय ने बचाई अपनी सीट
पूर्व उप प्रधानमंत्री देवी लाल द्वारा गठित इस पार्टी का ये अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन है. पार्टी नेता अभय सिंह चौटाला को छोड़कर सभी उम्मीदवारों को हार का सामना करना पड़ा है. अभय सिंह चौटाला को सिरसा जिले की ऐलनाबाद सीट पर जीत हासिल हुई है. 21 अक्टूबर को हुए चुनाव से कुछ दिन पहले इनेलो ने शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के साथ गठबंधन किया था, लेकिन शिअद भी तीन सीटों में से एक पर भी जीत हासिल नहीं कर पाया.

2014 विधानसभा चुनाव में हरियाणा की मुख्य विपक्षी पार्टी हुई फेल

INLD का वोट प्रतिशत
इनेलो का वोट प्रतिशत 2014 के विधानसभा चुनाव में 24.11 था. जिसके साथ इनेलो हरियाणा में दुसरे नंबर पर थी वहीं 35 प्रतिशत के साथ बीजेपी पहले नंबर पर थी. लेकिन 2014 के मुकाबले 2019 में इनेलो का वोट प्रतिशत 2.45 प्रतिशत रह गया. वहीं बात करें 2014 के लोकसभा चुनाव की तो इस दौरान इनेलो को करीब 24.36 प्रतिशत वोट मिले थे. जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में इनेलो को मात्र 1.9 प्रतिशत ही वोट मिले. जिसके ठीक पांच महीने बाद हुए विधानसभा चुनाव में इनेलो के वोट प्रतिशत में इजाफा हुआ.

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जेजेपी बनी किंग मेकर!
चौटाला परिवार में दरार के बाद पार्टी अजय और अभय चौटाला में बंट गई थी. अजय चौटाला फिलहाल शिक्षक भर्ती घोटाला मामले में अपने पिता के साथ जेल में बंद हैं. अजय चौटाला के बेटे दुष्यंत चौटाला ने कुछ समय पहले ही जननायक जनता पार्टी की स्थापना की थी. जेजेपी नेता दुष्यंत चौटाला चुनाव परिणाम आते ही किंग मेकर की भूमिका में देखे जाने लगे. क्योंकि बीजेपी के पास मात्र 40 सीटें ही थी तो प्रदेश में सरकार बनाने के लिए बीजेपी के पास जेजेपी का साथ लेने के अलावा कोई और चारा नहीं था.

क्या है वोट प्रतिशत कम होने का कारण
इनेलो और जेजेपी के बंटवारे का नुकसान इनेलो को उठाना पड़ा. इनेलो और जेजेपी के अलग-अलग होने से पार्टी के विधायक भी बिखर गए. जिसके कारण कुछ विधायक बीजेपी में शामिल हो गए तो कुछ ने कांग्रेस का दामन थाम लिया. इनेलो की हार के पीछे एक बड़ा कारण जाट वोटर्स का शिफ्ट होना भी बताया जा रहा है. इसके साथ ही इनेलो के पास कोई स्टार प्रचारक नहीं था और विधानसभा के चुनावी मैदान में उतारने के लिए ना ही कोई फेमस चेहरा था. यही कारण है कि एक ओर जहां 2014 विधानसभा चुनाव में इनेलो को 24.11 प्रतिशत वोट मिले थे तो वहीं इस बार केवल 1.9 प्रतिशत ही वोट मिले. इनेलो नेता अभय चौटाला ही ऐलनाबाद से अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे.

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