चंडीगढ़:रानी रामपाल (Rani Rampal) वो नाम जिसे दुनियाभर के खिलाड़ी अदब से लेते हैं. गरीबी और हजारों मुसीबतों को झेलते हुए हुआ रानी रामपाल आज उस मुकाम तक पहुंची हैं, जिसे पाना हर खिलाड़ी का सपना होता है. रानी रामपाल ओलंपिक (Tokyo Olympic) में महिला हॉकी टीम का बतौर कैप्टन नेतृत्व करेंगी, जो कि पूरे हरियाणा के लिए गर्व की बात है, लेकिन आज उनकी इस सफलता से कई गुना बड़ा है उनका वो संघर्ष जो यहां तक पहुंचने में रानी रामपाल ने किया.
संघर्ष और मुश्किलों से भरा रहा रानी का सफर
रानी रामपाल हरियाणा के शाहबाद मारकंडा (Shahbad Markanda, Kurukshetra) की रहने वाली हैं. उनका जन्म 4 दिसंबर 1994 को बेहद गरीब परिवार में हुआ था. घर चलाने के लिए, उनके पिता घोड़ा गांड़ी चलाते थे और ईंटें बेचते थे, लेकिन पांच लोगों के परिवार के लिए ये बहुत कम था. पिता दिन के मुश्किल से 100 रुपये कमा पाते थे. कच्चा मकान था जो बारिश के वक्त घर के अंदर पानी टपकता था.
रानी के पिता बताते हैं कि तेज बारिश के दिनों में उनके कच्चे घर में पानी भर जाता था और रानी अपने दोनों भाइयों के साथ मिल कर, बारिश के रुकने की प्रार्थना करती थीं. रानी के लिए बचपन में स्कूल जाना भी मुश्किल था. किसी तरह घरवालों ने स्कूल में दाखिला करवाया था.
समाज के ताने सुनकर भी नहीं रुकी रानी
रानी रामपाल के पिता रामपाल बताते हैं कि आस पड़ोस के लोग ताने देते थे. रानी रामपाल की माता को ना जाने कितनी तरह की बातें सुनाते थे, लेकिन मानों रानी के सिर पर हॉकी का जुनून सवार था. रानी ने लोगों की एक ना सुनी. जिसका नतीजा ये हुआ कि आज रानी रामपाल महिला हॉकी का चमकता सितारा बन गई हैं.
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...जब रानी की जिद्द के आगे नहीं चली घरवालों की
वो जब 6-7 साल की थीं, तब स्कूल से आते-जाते खेल के मैदान को देखती थीं. लड़के वहां हॉकी खेलते थे और उन्हें वो खेल अच्छा लगता था. एक दिन घर आकर रानी अपने पिता से बोलीं कि वो भी हॉकी खेलना चाहती है. घरवालों ने पहले तो मना किया, लेकिन रानी ने तो ठान लिया था कि हॉकी खेलनी है तो खेलनी है. रानी की इस जिद के आगे उनके पिता की भी एक ना चली. आखिरकार माता पिता मान गए, हालांकि रिश्तेदारों और समाज वालों ने भी घरवालों के फैसले का विरोध किया, लेकिन फिर भी पैरेंट्स ने बेटी का साथ देने का फैसला किया.
द्रोणाचार्य अवार्डी कोच बलदेव सिंह ने सिखाई हॉकी
इसके बाद रानी ने शाहबाद हॉकी एकेडमी में दाखिला लिया. उस वक्त उनके कोच थे द्रोणाचार्य अवॉर्ड पाने वाले बलदेव सिंह (Baldev Singh, Hockey Coach). उन्होंने पहले तो एडमिशन देने से मना कर दिया, लेकिन जब रानी का खेल देखा तो खुश हो गए और दाखिला दे दिया.