चंडीगढ़:पीएम नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को जैसे ही तीनों कृषि कानून को वापस (Three farm laws repealed) लेने का एलान किया. उसके बाद देशभर में इसको लेकर राजनीतिक प्रतिक्रियाओं का दौर भी जारी हो गया. कोई इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का (pm modi on farm laws) बेहतरीन फैसला बता रहा है तो कोई अपने तरीके से उसको लेकर सवाल उठा रहा है. वहीं किसान संगठन भी अब अगली रणनीति बनाने में जुट गए हैं. किसान अब एमएसपी की मांग को लेकर खास तौर पर आवाज उठाने लगे. हरियाणा के परिपेक्ष में प्रधानमंत्री की ओर से उठाए गए इस कदम का क्या असर होगा, इसको लेकर ईटीवी भारत की टीम ने राजनीतिक एक्सपर्ट डॉ. सुरेंद्र धीमान से विश्लेषणात्मक (three farm laws repealed explained) बातचीत की.
जब डॉक्टर सुरेंद्र धीमान से पूछा गया कि तीन कृषि कानून वापस लेने का हरियाणा के परिपेक्ष में क्या असर पड़ेगा? इसको लेकर उन्होंने कहा कि इन तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का सबसे ज्यादा असर हरियाणा की राजनीति (Politics of haryana) और शासन प्रशासन पर पडेगा. उन्होंने कहा कि ये आंदोलन हरियाणा की धरती पर चल रहा था. किसान आंदोलन का मुख्य केंद्र सिंघु बॉर्डर और टिकरी बॉर्डर ही था. जबकि दिल्ली और उत्तर प्रदेश में भी किसान आंदोलन (Three Farm laws Farmers Protest) कर रहे थे, लेकिन उसका इतना असर नहीं था.
डॉ सुरेंद्र धीमान ने कहा कि क्योंकि संयुक्त किसान मोर्चा ने हरियाणा के सत्ताधारी दल बीजेपी और जेजेपी के नेताओं का विरोध कर रखा था. उसकी वजह से उनका प्रदेश में कहीं भी निकलना मुश्किल हो रहा था और हर जगह उन्हें विरोध का सामना करना पड़ रहा था. वे कहते हैं कि इसका एक सबसे बड़ा असर यह होगा कि अब इन नेताओं का जो विरोध है वह खत्म हो जाएगा. अब बीजेपी और जेजेपी के नेता आसानी से अपने अपने हलकों में जा सकेंगे. इसके साथ ही मुख्यमंत्री भी सभी विधानसभाओं का दौरा करना चाहते थे, वह भी अब आसानी से कर पाएंगे.
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सुरेंद्र धीमान का कहना है दूसरा जो इसका असर होगा वह भी राजनीतिक है. जिस तरह से कांग्रेस, इनेलो और आम आदमी पार्टी इस आंदोलन को समर्थन दे रही थी. ऐसे में प्रधानमंत्री द्वारा उठाया गया कदम उनके किसान वोट बैंक को कितना प्रभावित करता है यह देखने वाली बात होगी. उनका कहना है कि अभी तक सभी को लग रहा था कि प्रधानमंत्री इन कानूनों को वापस नहीं लेंगे और जिस तरीके से बीजेपी और जेजेपी के नेताओं का विरोध हो रहा था वो कहीं ना कहीं विपक्ष को फायदा देगा.
उन्होंने कहा कि सभी को पता है कि अभी विधानसभा चुनावों के लिए भी करीब 3 साल का वक्त है और लोकसभा के भी चुनाव 2024 में होने हैं. ऐसे में बीजेपी के लिए हालात जमीनी स्तर पर बदल सकते हैं. वे मानते हैं कि इतने लंबे वक्त में तीन कृषि कानून का विरोध का जो असर सत्ता पक्ष को हो रहा था. वह शायद थोड़ा कम हो जाए.
अभय चौटाला को मिला मौका: डॉ. सुरेंद्र धीमान कहते हैं कि तीसरा असर यह होगा कि जिस दल के नेता ने तीन कृषि कानूनों को लेकर सदन की सदस्यता छोड़ी थी यानी इनेलो वह इसका कितना फायदा उठाता है यह देखना दिलचस्प होगा. क्योंकि उन्होंने किसानों के नाम पर ही विधानसभा सदस्यता छोड़ी थी और बाद में दोबारा से अब विधानसभा में चुनकर आए हैं. वे जनता के बीच में जाकर कह सकते हैं कि हमने आपके लिए ही विधानसभा सदस्यता छोड़ी थी और ऐसे में उनको इस आंदोलन का कितना फायदा मिलता है जो देखना दिलचस्प होगा.
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जब डॉक्टर सुरेंद्र से सवाल किया गया कि क्या आने वाले दिनों में अब एमएसपी को लेकर भी किसान आंदोलन बढ़ सकता है, क्योंकि किसान नेता अभी भी अपनी रणनीति को स्पष्ट नहीं कर रहे हैं और वे अब एमएसपी की बात कर रहे हैं? इसको लेकर सुरेंद्र धीमान ने कहा कि एमएसपी इन तीन कृषि कानून का ही बाय प्रोडक्ट है. क्योंकि इन 3 कृषि कानूनों के खिलाफ लोगों ने मांग रखी थी कि अगर वह सरकारी मंडी के बाहर अपना अनाज बेचेंगे तो उन्हें एमएसपी की गारंटी दी जाए. वे कहते हैं कि एमएसपी को लेकर कोई कानून तो है नहीं, वह पहले भी चल रहा था अभी भी चल रहा है.
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