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हरियाणा का वो सीएम जिसके आगे झुक गया पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व

हरियाणा में एक ऐसा मुख्यमंत्री भी रहा है, जिसपर सबसे ज्यादा पक्षपात का आरोप लगा है. आज भी विपक्ष का कहना है कि उनके राज में बस एक तरफा ही काम हुआ. जाट लैंड को विदेश के तर्ज पर चमका दिया और बाकी हरियाणा को हमेशा नजर अंदाज किया. आरोप है कि इन्होंने अपनों के लिए ही काम किया, इनके राज में खूब भाई-भतीजावाद हुआ. लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि इस सीएम पर हरियाणा जनता ने सबसे ज्यादा विश्वास जताया.

Bhupinder singh hooda, former chief minister, haryana (haryana ke mukhyamantri)

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Published : Oct 22, 2019, 3:26 PM IST

चंडीगढ़: हम हरियाणा के अब तक के सबसे मजबूत सीएम के बारे में बात कर रहे हैं. नाम है भूपेंद्र सिंह हुड्डा... भूपेंद्र सिंह हुड्डा को सबसे मजबूत सीएम इसलिए कहना जरूरी हो जाता है क्योंकि पिछले 50 सालों के इतिहास में हरियाणा में एक मात्र ऐसा मुख्यमंत्री रहा, जिसने दो कार्यकाल लगातार पूरे किए और करीब 9 साल 235 दिनों तो सीएम की कुर्सी पर काबिज रहे.

जाट बिरादरी में लोकप्रिय हैं हुड्डा!
भूपेंद्र सिंह हु्डडा विरासत में मिली राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी हैं. जाट बिरादरी में हुड्डा की मजबूत पकड़ है. देश के दिग्गज नेताओं और विधायकों से इनके बेहतर संबंध रहे हैं. इस बात में भी कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि फिलहाल हरियाणा कांग्रेस में भूपेंद्र सिंह हुड्डा से बड़ा कोई चेहरा नहीं है.

देखिए रिपोर्ट: उस शख्स के बारे में जानें जो अब तक हरियाणा में सबसे लंबे समय तक सीएम की कुर्सी पर काबिज रहा.

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तीन बार 'चुनावी दंगल' में देवी लाल को दी थी पटखनी
भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने 1991, 1996 और 1998 लगातार तीन लोकसभा चुनाव हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी देवी लाल को हरा कर जीता था. साल 2005 में दसवें हरियाणा विधानसभा चुनावों में अपने निर्वाचन क्षेत्र किलोई से रिकॉर्ड मतों से जीतने के बाद भूपेंद्र सिंह हुड्डा प्रदेश के मुख्यमंत्री बनाए गए.

हरियाणा में अभी तक किसी भी राजनैतिक दल को दूसरी बार सत्ता में आने का मौका नहीं मिला था, लेकिन साल 2009 में कांग्रेस की ही टिकट से दोबारा मुख्यमंत्री बनने के बाद भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने इस चलन को रोक कर एक नया रिकॉर्ड अपने नाम किया.

कई मुकदमों में फंसे हुए हैं हुड्डा
पूर्व सीएम हुड्डा का समय-समय पर विवादों से भी पाला पड़ता रहा है. यही नहीं उन पर मुकदमें भी चल रहे हैं. मानेसर जमीन घोटाले और एजेएल प्लॉट आवंटन केस की वजह से भी पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा विवादों में रहे हैं, उन पर यह आरोप है कि उन्होंने अपने शासन काल के दौरान 900 एकड़ जमीन का अधिग्रहण कर के बड़े बिल्डरों को कौड़ियों के भाव में बेचा था. भूपेंद्र सिंह हुड्डा को कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर के साथ कहासुनी होने के कारण कड़ी आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ा था.

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मानेसर लैंड स्कैम क्या है?
27 अगस्त 2004 को एचएसआईआईडीसी ने इंडस्ट्रियल टाउनशिप बनाने के लिए मानेसर, लखनौला, नौरंगपुर में 912 एकड़ जमीन के अधिग्रहण का नोटिफिकेशन जारी किया. राज्य सरकार ने 224 एकड़ जमीन को इस प्रक्रिया से बाहर कर दिया, 688 एकड़ जमीन अधिग्रहण के दायरे में रही. इसके बाद कई बिल्डरों ने किसानों से जमीन खरीदना शुरू कर दिया. 24 अगस्त 2007 को तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने अधिग्रहण प्रक्रिया रद्द कर दी. फिर ये मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा.सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि बिल्डरों ने किसानों को जमीन के बदले जो भी रकम दी है वह वापस नहीं होगी. जमीन मालिक को जो पैसा बिल्डर ने दिया है वह मुआवजा माना जाएगा. अगर मुआवजा बकाया है तो राज्य सरकार देगी. जहां मुआवजे से ज्यादा रकम मिली है, वह रकम वापस नहीं होगी. जिसने बिल्डरों को जमीन और फ्लैट अलॉटमेंट के बदले रकम दी है, वह रकम वापस पाने का हकदार होगा. तीसरे पक्ष को रिफंड या अलॉट किए गए प्लॉट या फ्लैट में हिस्सा मिलेगा.

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एजेएल घोटाले में भी है भूपेंद्र सिंह हुड्डा का नाम
इस विवाद की शुरूआत वर्ष 1982 में हुई थी. तत्कालीन सरकार ने पंचकूला के सेक्टर-6 में एजेएल को 3360 स्क्वायर मीटर का प्लॉट अलॉट किया गया था. तय समय सीमा के दौरान संबंधित संस्थान ने इस प्लॉट पर किसी तरह का निर्माण नहीं किया. 1996 में पट्टे की अवधि समाप्त होने के बाद बंसीलाल के नेतृत्व वाली तत्कालीन हरियाणा विकास पार्टी सरकार ने इसका कब्जा वापस ले लिया. इसके बाद वर्ष 2005 में हरियाणा में फिर से कांग्रेस की सरकार सत्ता में आ गई. जून 2005 में कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने एजेएल के आधार पर हुड्डा से ये प्लॉट फिर से अलॉट किए जाने की मांग की. जिसमें यह कहा गया कि यहां से एक समाचार पत्र का प्रकाशन शुरू किया जाएगा. यही से एक नया घोटाला शुरू हो गया.

इस बार दांव पर है साख
आने वाले कुछ दिन ये तय कर देंगे कि हुड्डा का भविष्य क्या होने वाला है. क्योंकि विधानसभा चुनाव में साख दांव पर लगी हुई है. वो 2014 में सूबे में अपनी तीसरी बार सरकार बनाने में विफल रहे. इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में भूपेंद्र सिंह हुड्डा सोनीपत और बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा रोहतक से दोनों चुनाव हार गए. ऐसे में ये चुनाव उनका राजनीतिक भविष्य तय करने वाला साबित होगा, क्योंकि वो इस बार फिर मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं.

जब तंवर को साइड कर हुड्डा ने हरियाणा कांग्रेस को काबू में लिया!
हरियाणा विधानसभा चुनाव 2019 से ठीक पहले 18 अगस्त को भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने एक रैली में बागी तेवर दिखाते हुए खुद को मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित कर दिया. बातों ही बातों में ये घोषणा कर दी अगर हरियाणा कांग्रेस की कमान उनके हाथ में नहीं दी गई तो वो कांग्रेस को छोड़ देंगे. इस रैली में हुड्डा ने भारी जनसमर्थन के साथ शक्ति प्रदर्शन किया. हुड्डा ने इस रैली के जरिए उस समय के पार्टी प्रदेशाध्यक्ष अशोक तंवर पर बड़ा वार किया. भूपेंद्र हुड्डा ने नेतृत्व को 13 विधायकों का समथर्न भी दिखाया और सोनिया गांधी से मुलाकात की. नतीजा ये हुए कि चुनाव से महज कुछ दिन पहले तंवर को प्रदेशाध्यक्ष के पद से हटा दिया गया. हुड्डा को कई समितियों का अध्यक्ष नियुक्त किया गया और कुमारी सैलजा को प्रदेशाध्यक्ष घोषित कर दिया गया. इन सब उठापकट में अशोक तंवर ने भी वजूद की लड़ाई लड़ी. तंवर दिल्ली भी पहुंचे जमकर हुड्डा को कोसा, माइक लेकर हरियाणा कांग्रेस के मौजूदा दिग्गज नेताओं पर मनमानी का आरोप लगाया और हार मानकर पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया.

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कांग्रेस नेतृत्व से है खास कनेक्शन
ये जानना भी महत्वपूर्ण है कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा के पिता रणबीर सिंह हुड्डा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे. आजादी के बाद पंजाब सरकार में मंत्री भी रहे. भूपेंद्र सिंह हुड्डा हरियाणा के सांपला सीट से चुनाव जीतकर दो बार मुख्यमंत्री बने. भूपेंद्र सिंह के पुत्र दीपेंद्र हुड्डा भी सांसद रह चुके हैं. राहुल गांधी के खास दोस्तों में दीपेंद्र की गिनती होती है.

भूपेंद्र सिंह हुड्डा का राजनीतिक करियर

  • वर्ष 1972 से वर्ष 1977 तक वो गांव गढ़ी सांपला किलोई, जिला रोहतक, हरियाणा के ब्लॉक कांग्रेस कमेटी के सदस्य रहे.
  • साल 1980 से 87 तक वह हरियाणा प्रदेश युवा कांग्रेस के वरिष्ठ उपाध्यक्ष, रोहतक पंचायत समिति के अध्यक्ष और हरियाणा के पंचायत परिषद के अध्यक्ष रहे.
  • साल 1991, 1996, 1998 तथा 2004 में लगातार चार बार लोकसभा के सदस्य बने.
  • साल 1996 से साल 2001 तक वह हरियाणा कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे हैं.
  • 5 मार्च 2005 को, वह हरियाणा के मुख्यमंत्री बने.
  • 25 अक्टूबर 2009 को, वह पुनः हरियाणा के मुख्यमंत्री बने.

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