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मानवता को सुरक्षित रखने के लिए करना होगा प्रकृति का बचाव, ध्यान में रखें ये बातें - प्राकृतिक संसाधनों को खत्म किया

हमें समझना होगा कि हमारी मातृ भूमि यानी जिसे हम मदर अर्थ भी कहते हैं. जहां देशभर में प्लास्टिक को बैन किया गया. आज भी लोगों द्वारा प्लास्टिक का इस्तेमाल किया जा रहा है. धरती की रक्षा करना कोई मुश्किल काम नहीं है. यह शुरुआत हम अपने घर से भी कर सकते हैं.

save nature to avoid earthquake
मानवता को सुरक्षित रखने के लिए करना होगा प्रकृति का बचाव

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Published : Apr 24, 2023, 9:51 PM IST

पीजीआई के पर्यावरण विशेषज्ञ प्रोफेसर रविंद्र खेवाल

चंडीगढ़: धरती पर रहने वाला हर एक जीव-जंतु एक जीवनशैली से बंधा है. लेकिन, धरती पर होने वाली आपदाएं इस जीवन शैली को प्रभावित करती हैं. ऐसे में बीते कुछ सालों से मनुष्य द्वारा धरती पर मिलने वाले प्राकृतिक संसाधनों को प्रभावित किया जा रहा है. क्योंकि धरती पर रहने वाले जन जीवों के लिए जिन प्राकृतिक संसाधनों की जरूरत होती है, उन्हें लगातार नुकसान पहुंचाया जा रहा है. जिसमें पेड़, जानवर, वनस्पति शामिल हैं.

लगातार देखा जा रहा है कि प्राकृतिक संसाधनों को खत्म किया जा रहा है. ऐसे में मनुष्य के लिए पृथ्वी पर जीवित रहना मुश्किल हो जाएगा. इसी मुश्किल को हल करने के लिए प्राकृतिक वस्तुओं को संभालने की जरूरत है. पीजीआई के पर्यावरण विशेषज्ञ प्रोफेसर रविंद्र खेवाल ने बताया कि प्रकृति उसी की रक्षा करती है, जो प्रकृति की रक्षा करता है.

उदाहरण के तौर पर जब भी हम घर या ऑफिस से बाहर निकलते हैं, तो हम सभी इलेक्ट्रॉनिक से संबंधित स्विच और बटन को बंद करके निकलते हैं. यही आदत हमें अपने पर्यावरण से संबंधित और अपनी धरती से संबंधित बचाव के लिए भी करनी होगी. बीते दिन तुर्की में आई प्राकृतिक आपदा से हमें सीख लेने की जरूरत है. वह प्राकृतिक तौर पर एक घटना है. लेकिन, इसके अलावा होने वाली प्राकृतिक घटनाओं में इंसान का भी हाथ है.

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उन्होंने कहा कि वातावरण में आ रही आपदाओं को हम अपने व्यवहार को बदलते हुए ठीक कर सकते हैं. जैसे कि अगर अर्थक्वेक यानी भूकंप आता है, तो एक आम व्यक्ति को पता होना चाहिए कि वह किस तरह अपना बचाव कर सकता है. आज के समय में मनुष्य प्राकृतिक चीजों का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल कर रहा है. जिसके कारण आम जनजीवन प्रभावित हुआ है. जंगलों को और पेड़ों को लगातार खत्म किया जा रहा है. वहीं, जानवरों को भी शहरी इलाकों में आने के लिए मजबूर किया जाता है. जो कि एक प्राकृतिक नियम के खिलाफ हैं. इस सोच को बदलना होगा. साथ ही आने वाली नई पीढ़ी को भी इसके लिए अभी से तैयार करना होगा.

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