चंडीगढ़:हरियाणा सरकार के लिए सरपंचों का ई टेंडरिंग विरोध चुनौती बनता जा रहा है. हरियाणा में सरपंच बनने के बाद सरकार ने राइट टू रिकॉल और ई टेंडरिंग के माध्यम से काम करवाने का फैसला लिया था. जो अब सरकार के लिए भी चुनौती के तौर पर उभर कर सामने आ रहा है. क्योंकि इस मामले को लेकर सरपंच लगातार विरोध जता रहे हैं.
ई टेंडर और राइट टू रिकॉल के खिलाफ सरपंच:दरअसल, हरियाणा सरकार ने फैसला लिया है, कि पंचायतों के जो 2 लाख से अधिक के काम होंगे वे ई टेंडरिंग के माध्यम से होंगे. वहीं सरपंचों को लेकर राइट टू रिकॉल का भी फैसला लिया है. जिसकी वजह से सरपंच इसका विरोध कर रहे हैं और वे इन फैंसले को वापस लेने की मांग कर रहे हैं. साथ ही पंचायतों को पूरे अधिकार दिए जाने की मांग कर रहे हैं. इसी मुद्दे को लेकर सरपंच मंगलवार को मंत्रियों, सत्ताधारी विधायकों और निर्दलीय विधायकों के आवास का घेराव करेंगे.
सरपंच करेंगे विधायकों-मंत्रियों का घेराव:सरपंच मंगलवार को विरोध के जरिये, हरियाणा विधानसभा के बजट सत्र में उनकी आवाज उठाए जाने की मांग कर रहे हैं. सरपंचों ने फैसला लिया है कि प्रदेश भर में सरपंच ब्लॉक कार्यालय के साथ-साथ अब बीजेपी-जेजेपी मंत्रियों व विधायकों के अलावा निर्दलीय विधायकों के घरों का घेराव करेंगे. सरपंचों की कोशिश है कि वे सरकार पर इस मामले में बजट सत्र से पहले दबाव बनाए ताकि बजट सत्र में सरकार अपना फैसला वापस ले.
इस मामले में क्या कहती है बीजेपी?:सरपंचों के विरोध को लेकर बीजेपी के प्रवक्ता प्रवीण अत्रे कहते हैं कि सरकार का प्रयास हर काम को पारदर्शी तरीके से एक करने का है. ताकि सिस्टम में सुधार हो सके. इसी के तहत इस सरकार ने ई टेंडर व्यवस्था को लागू किया है. इतना ही नहीं वे कहते हैं कि सरकार ने किसी भी तरह से सरपंचों के अधिकारों में कोई कटौती नहीं की है, बल्कि उन्हें ज्यादा अधिकार दिए हैं. वहीं, वे राइट टू रिकॉल के मुद्दे पर कहते हैं कि जब विधानसभा में यह बिल पास हुआ था, तो फिर विपक्ष ने इसका विरोध उस वक्त क्यों नहीं किया था. साथ ही वे यह कहते हैं कि यह बिल तो चुनावों से पहले ही पास हो चुका था और इसका किसी को विरोध करना था तो फिर वह चुनावों से पहले इसका विरोध करते.
बीजेपी पर हमलावर विपक्ष:इधर सरपंचों के मामले को लेकर कांग्रेस पार्टी लगातार सरकार पर हमलावर है. कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता केवल ढींगरा सरकार के इस फैसले को लोकतंत्र के विरुद्ध करार दे रहे है. उनका कहना है कि सरकार के इस फैसले से लगता है कि उनको चुने हुए सरपंच पर भरोसा नहीं है. वे कहते हैं कि सरकार इस तरह का फैसला लागू करके चुने हुए प्रतिनिधियों का अपमान कर रही है.