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पीजीआई में रोबोटिक सर्जरी से किडनी ट्रांसप्लांट, अब तक दो मरीजों की हो चुकी है सफल सर्जरी

पंजीआई चंडीगढ़ में रोबोटिक सर्जरी के माध्यम से किडनी ट्रांसप्लांट पर जोर दिया जा रहा है. पीजीआई चंडीगढ़ में यूरोलॉजी विभाग 2015 से रोबोटिक सर्जरी कर रहा है. पीजीआई चंडीगढ़ यूरोलॉजी विभाग के एचओडी डॉ. उत्तम रोबोटिक के अनुसार सर्जरी मरीज के साथ-साथ सर्जन के लिए भी काफी मददगार है. (Robotic Surgery in PGI Chandigarh)

Robotic Surgery in PGI Chandigarh
पीजीआई में रोबोटिक सर्जरी

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Published : Apr 23, 2023, 2:16 PM IST

पीजीआई चंडीगढ़ यूरोलॉजी विभाग के एचओडी डॉ. उत्तम.

चंडीगढ़: पीजीआई चंडीगढ़ यूरोलॉजी विभाग ने 20 फरवरी, 2023 को पहला ओपन रीनल ट्रांसप्लांट किया था. किडनी ट्रांसप्लांटेशन में रोबोटिक सर्जरी, ओपन सर्जरी की तुलना में जटिलताओं की संभावना कम करने और मरीजों के लिए सुरक्षित और अधिक प्रभावशाली है. वहीं, दिल्ली एम्स और इलाहाबाद के बाद चंडीगढ़ पीजीआई ऐसा ‌संस्थान है, जहां यूरोलॉजी डिपार्टमेंट द्वारा रोबोटिक सर्जरी के जरिए किडनी ट्रांसप्लांट करेगा.

यूरोलॉजी विभाग के एचओडी डॉ. उत्तम के अनुसार, रोबोटिक सर्जरी में उच्च स्तर की विशेषज्ञों की आवश्यकता होती है. जिसके लिए अब यूरोलॉजी विभाग को भी लाइसेंस मिल गया है. जिसके अंतर्गत इन सर्जरी को किया जा रहा है. वहीं, अभी तक रोबोटिक सर्जरी के जरिए दो मरीजों की किडनी ट्रांसप्लांट की जा चुकी है. वहीं, दोनों मरीज अपनी आम जिंदगी व्यतीत कर रहे हैं.

पंजीआई चंडीगढ़ में रोबोटिक सर्जरी.

बता दें कि यूरोलॉजी विभाग 2015 से रोबोटिक सर्जरी कर रहा है. लेकिन, इससे पहले किडनी ट्रांसप्लांट नहीं किया गया था. अनुभवी टीम होने के चलते अब यूरोलॉजी के सर्जन द्वारा रोबोटिक सर्जरी में अनुभव ने विभाग को रोबोट-असिस्टेड एनल ट्रांसप्लांटेशन शुरू किया गया है, ताकि ट्रांसप्लांट कराने वालों को मिनिमली इनवेसिव सर्जरी के लाभ दिए जा सकें.

रीनल एलोट्रांसप्लांटेशन स्थापित डायलिसिस विधियों की तुलना में एक बेहतर रीनल रिप्लेसमेंट थेरेपी के रूप में विकसित हुआ है, क्योंकि यह गुर्दे/किडनी फेल हो चुके मरीजों की स्वास्थ्य गुणवत्ता में सुधार करता है. वहीं, परंपरागत रूप से किडनी ट्रांसप्लांट में बड़े चीरे लगाकर ओपन सर्जरी की जाती है. जिसके घाव भरने में समय लगता है. सामान्य तौर पर मोटापे से पीड़ित मरीजों में ओपन सर्जरी (चीरा लगाकर) करने में अधिक परेशानी होती है, रोबोट के जरिए इसे आसान बनाया जा सकता है. ओपन सर्जरी में कई बार मरीज को बाद में हर्निया की परेशानी भी हो जाती है. अगर मरीज का पहले किडनी ट्रांसप्लांट हो चुका है और वह असफल रहा हो तो रोबोट के जरिए उसकी सफल तोर पर से दोबारा किडनी ट्रांसप्लांट की जा सकती है, इसमें खतरा कम होता है.

पंजीआई चंडीगढ़ में रोबोटिक सर्जरी के माध्यम से किडनी ट्रांसप्लांट.

लेप्रोस्कोपिक (LKT) और रोबोटिक असिस्टेड (RAKT) सर्जरी दो सामान्य रूप से की जाने वाली न्यूनतम इनवेसिव प्रक्रियाएं हैं. लेप्रोस्कोपिक सर्जरी में कई घंटे लगते हैं, जिसमें मरीज के साथ डॉक्टर भी घंटों तक सर्जरी में बना रहना मुश्किल हो जाता है. वहीं, दूसरी ओर आरएकेटी में डोनर किडनी को पेट में डालने और फिर रक्त वाहिकाओं और मूत्रवाहिनी को सिलने के लिए एक बहुत छोटा चीरा (लगभग 7 सेमी) बनाया जाता है. अन्य चार या पांच छोटे (0.5 से 1 सेमी) चीरों का उपयोग उपकरणों को पेट में डाला जाता है. इस सर्जरी में 3डी कैमरा का इस्तेमाल किया जाता है, जिन्हें मानव हाथों और कलाई की गति की नकल करने के लिए डिजाइन किया गया है.

बता दें कि यूरोलॉजी विभाग के एचओडी डॉ. उत्तम की देखरेख में रोबोटिक सर्जरी की जाती है. उन्होंने ने बताया 2015 से रोबोटिक सर्जरी कर रहे हैं, लेकिन मेदांता और दिल्ली एम्स के बाद यूरोलॉजी विभाग द्वारा पहली बार किडनी ट्रांसप्लांट किया जा रहा है. अक्सर किडनी ट्रांसप्लांट में ओपन सर्जरी की जाती है, जिसमें कई समस्याएं आती हैं. ओपन सर्जरी के अलावा दो विकल्प लेप्रोस्कोपिक और रोबोटिक असिस्ट सर्जरी का होता है. लेप्रोस्कोपिक सर्जरी पेचीदा होने के कारण कम इस्तेमाल की जाती है.

रोबोटिक असिस्ट सर्जरी से समय जहां कम लगता है. साथ ही मरीजों को कम समय में घर भेज दिया जाता है. डॉ. उत्तम ने बताया कि अब तक दो सफल सर्जरी की जा चुकी हैं. जिसमें 30 वर्ष के दविंदर ‌सिंह को उनकी बहन ने हरप्रीत कौर ने किडनी दान की थी. वहीं, दूसरा केस में 15 वर्ष के राघव मेहता उनके पिता अरविंद मेहता द्वारा किडनी दान की गई.

ओपन रीनल ट्रांसप्लांटेशन शुरू होने के लगभग 6 सप्ताह के बाद विभाग में रोबोट असिस्टेड रीनल ट्रांसप्लांटेशन किया गया है. यूरोलॉजी विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. शैंकी सिंह ने कहा कि जिन दो मरीजों की रोबोटिक सर्जरी के जरिए किडनी ट्रांसप्लांट किया गया है, वे आम जीवन व्यतीत कर रहे हैं. उन्होंने कहा इससे पहले हुई सात सर्जरी जिनमें उन्हें देश के जाने-माने रोबोटिक रीनल ट्रांसप्लांट सर्जन डॉ. राजेश अहलावत और मेदांता, मेडिसिटी के उनके सहयोगी डॉ. सुदीप बोद्दुलुरी ने विभाग को रोबोटिक रीनल ट्रांसप्लांटेशन शुरू करने में मदद की थी.

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