चंडीगढ़: जज के भेदभाव और एक तरफा रवैये को लेकर चीफ जस्टिस के पास रिप्रेजेंटेशन दायर कर मांग की जाती है कि जज से केस ट्रांसफर कर दिया जाए. पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के जस्टिस जसवंत सिंह और जस्टिस संत प्रकाश की खंडपीठ ने ऐसे ही एक मामले में स्पष्ट कर दिया है कि हाईकोर्ट न्यायिक स्तर पर चीफ जस्टिस को प्रशासनिक अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए रिप्रेजेंटेशन पर फैसला लेने के लिए निर्देश नहीं दे सकता.
'चीफ जस्टिस के विशेष अधिकारों में दखल अंदाजी नहीं कर सकते'
खंडपीठ ने फैसले में कहा कि जज का रोस्टर तय करने वाले को कैसे कहा जा सकता है कि वो जज से केस वापस ले. ये ना केवल चीफ जस्टिस के विशेष अधिकारों में दखल अंदाजी होगी बल्कि उनके प्रशासनिक कामकाज में भी हस्तक्षेप होगा. ऐसे में इस मांग को न्यायिक स्तर पर सुनवाई के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता.
सिंगल बेंच ने भी याचिका को कहा था अयोग्य
जस्टिस जसवंत सिंह और जस्टिस संत प्रकाश की खंडपीठ ने इस संबंध में सिंगल बेंच के फैसले को सही ठहराया. जिसमें कहा गया था कि याचिका सुनवाई के योग्य नहीं है. डिवीजन बेंच ने फैसले में कहा था कि ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो याची को ये अधिकार देता हो कि वो हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को रिप्रेजेंटेशन देकर किसी जज ट्रांसफर करने की मांग करें और चीफ जस्टिस फैसला लेने के लिए बाध्य हो.
क्या था मामला?
एक याची ने कहा था कि जज का रवैया पक्षपातपूर्ण था इसलिए केस ट्रांसफर किया जाए. इस संबंध में याचिका दायर कर कहा गया कि वैवाहिक विवाद से जुड़े आपराधिक मामले की सुनवाई के दौरान जज का रवैया पक्षपातपूर्ण था. ऐसे में केस की सुनवाई किसी दूसरे जज के पास ट्रांसफर की जाए. इन दलीलों को लेकर चीफ जस्टिस के पास रिप्रेजेंटेशन दायर की गई थी और कहा गया था कि चीफ जस्टिस इस पर फैसला नहीं ले सकते. ऐसे में रिप्रेजेंटेशन पर फैसला लेने के निर्देश दिए जाएं.
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