चंडीगढ़: विचारों की अभिव्यक्ति या अभिव्यक्ति की आजादी यानी कि फ्रीडम ऑफ स्पीच का मतलब ये नहीं कि आप दूसरों के अधिकारों और मान सम्मान को ठेस पहुंचा सके. भारत के हर नागरिक को अपने विचार व्यक्त करने का अधिकार है, लेकिन इसका मतलब ये बिल्कुन नहीं है कि कोई जंगली बनकर दुर्भावनापूर्ण आरोप लगाने में सीमा ही लांघ दे. पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने ये टिप्पणी फेसबुक, यूट्यूब और ट्विटर अकाउंट पर सेना की एक यूनिट के खिलाफ आपत्तिजनक सामग्री अपलोड करने के एक आरोपी की अग्रिम जमानत याचिका को खारिज करते हुए की.
सेना से जुड़ी सामग्री अपलोड का मामला
इस मामले में सेना की एक पूर्व महिला अधिकारी सेना के एक कमांडिंग ऑफिसर की पत्नी है. उसने अंबाला कैंट पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई कि सबका सैनिक संघर्ष कमेटी नामक यू ट्यूब चैनल का एडमिन कपिल देव अपने चैनल पर सेना के खिलाफ आपत्तिजनक सामग्री अपलोड कर रहा है. चैनल ने सेना की एक यूनिट के खिलाफ कुछ वीडियो अपलोड किए, जिसमें कहा गया कि कुछ जवानों को यूनिट के कमांडिंग अधिकारी की पत्नी को सलाम ना करने पर सजा दी गई. इस बाबत उसने सेना और अधिकारियों के खिलाफ हेट स्पीच भी दी.
पूर्व महिला सेना अधिकारी ने हाई कोर्ट में आरोपी की अग्रिम जमानत का विरोध करते हुए कहा कि उसने सेना में मेजर के पद पर काम किया और उसके पति अभी कमांडिंग ऑफिसर है, लेकिन आरोपी ने उनके खिलाफ दुष्प्रचार किया और सेना के कई महत्वपूर्ण और गोपनीय दस्तावेज अपलोड किए. इससे उनके सम्मान, प्रतिष्ठा और सामाजिक स्थिति को गहरी ठेस पहुंची है.