चंडीगढ़:स्मार्ट क्लासेस को लेकर स्कूलों में कई बदलाव किए गए. लेकिन कुछ स्कूल ऐसे भी हैं जहां स्मार्ट क्लासेज तो शुरू कर दी गई लेकिन वह ज्यादा दिन तक चल नहीं सकी. बात चंडीगढ़ के सरकारी स्कूलों की करें तो यहां पर भी कई बड़े बदलाव किए गए. शहर के नौ सरकारी स्कूलों की लगभग 200 कक्षाओं को स्मार्ट क्लासरूम बनाया गया. लेकिन ये भी सिर्फ ढाक के तीन पात बनकर ही रह गए.
साल 2014 में चलाई सरकारी स्कूलों को स्मार्ट बनाने की योजना के तहत क्लासेज में स्मार्ट बोर्ड और प्रोजेक्टर लगाए गए. साथ ही बच्चों को क्लास में स्मार्ट स्क्रीन एटलस की भी सुविधा प्रदान की गई. लेकिन महज दो साल में ही सारी सुविधाएं चरमरा गई. सभी नौ सरकारी स्कूलों के स्मार्ट बोर्ड और प्रोजेक्टर बंद पड़े हैं. हाई डेफिनेशन कैमरा भी अब धूल फांक रहा है.
टेंडर एक्सपायर होने के कारण स्कूल कंटेट को एक्सेस नहीं कर पा रहे हैं. जिससे स्मार्ट क्लासरूम के बावजूद बच्चों को ब्लैकबोर्ड पर ही पढ़ाया जा रहा है. वहीं जब कभी भी ई-कंटेट से जुड़ा टॉपिक पढ़ाना होता है तो उसके लिए पेन ड्राइव का इस्तेमाल किया जाता है. अब ऑडिटोरियम में बच्चों को पढ़ाया जाता है, क्योंकि जिस कंपनी के स्मार्ट बोर्ड क्लास रूम में लगाए गए हैं, उन्हें न तो स्कूल टीचर को चलाना आता है और न ही स्टॉफ के किसी अन्य टीचर को ही आता है.
जीएमएसएसएस-19, जीएमएसएसएस-35, जीएमएसएसएस-20, जीएमएसएसएस सेक्टर-18 के स्कूल टीचरों का कहना है कि पिछले लगभग दो सालों से स्मार्ट क्लासरूम के तौर पर नहीं सामान्य क्लास की तरह ही चल रही है. ऐसे में जिस कंपनी के यह स्मार्ट बोर्ड है उनकी ओर से सॉफ्टवेयर ही अपडेट नहीं किया गया है. जिसके कारण ये स्मार्ट बोर्ड बच्चों के किसी काम नहीं आ रहे हैं. वहीं शिक्षा विभाग को कई बार सूचित किया गया, लेकिन शिक्षा विभाग की ओर से अभी तक कोई एक्शन नहीं लिया गया है.