चंडीगढ़:शुक्रवार देर रात महान धावक मिल्खा सिंह (milkha singh) का निधन हो गया. उनके निधन के बाद से पूरे देश में शोक की लहर है. रविवार शाम को मिल्खा सिंह का राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया. अंतिम संस्कार में कई राजनेताओं ने शिरकत की और मिल्खा सिंह के परिवार को सांत्वना दी. मिल्खा सिंह के 'फ्लाइंग सिख' बनने तक का सफर काफी मुश्किलों भरा था, उनकी जिंदगी से जुड़ी 10 कहानियां हम आपके लिए लाए हैं.
1. 1951 में हुए सेना में भर्ती, बाद में बने इंटरनेशनल धावक
बंटवारे के बाद मिल्खा सिंह भारत आ गए थे. लेकिन यहां पर वो बेहद बुरे हालातों में रह रहे थे. उस वक्त तक शरणार्थी कैंपों में ही वे अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे. भारत आने के बाद उन्होंने सोचा कि अगर वे सेना में भर्ती हो जाएं तो उनका जीवन सुधर सकता है, जिसके लिए वे प्रयास करने लगे. 4 बार रिजेक्ट होने के बाद 1951 में उन्हें सफलता मिली और वे सेना में भर्ती हो गए. भर्ती के दौरान हुई क्रॉस-कंट्री रेस में वो छठे स्थान पर आये थे, इसलिए सेना ने उन्हें खेलकूद में स्पेशल ट्रेनिंग के लिए चुना था. इस दौरान सिकंदराबाद के ईएसई सेंटर में ही उन्हें धावक के तौर पर अपने टैलेंट के बारे में पता चला और वहीं से उनके करियर की शुरुआत हुई.
1956 में मेलबर्न में आयोजित हुए ओलंपिक खेलों में उन्होंने पहली बार 200 मीटर और 400 मीटर की रेस में भाग लिया. एक एथलीट के तौर पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनका ये पहला अनुभव भले ही अच्छा ना रहा हो, लेकिन ये टूर उनके लिए आगे चलकर बेहद फायदेमंद साबित हुआ. उस दौरान विश्व चैंपियन एथलीट चार्ल्स जेनकिंस के साथ हुई मुलाकात ने उनके लिए भविष्य में बहुत बड़ी प्रेरणा का काम किया.
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2. शादी के खिलाफ थे मिल्खा सिंह और उनकी पत्नी के घरवाले
मिल्खा सिंह और निर्मल कौर की शादी 1962 में हुई थी. हालांकि उनकी पहली मुलाकात 1955 में श्रीलंका में चल रही खेल प्रतियोगिताओं में हुई थी. कोलंबो में एक व्यापारी ने सभी खिलाड़ियों के लिए एक पार्टी का आयोजन किया था, जहां पर मिल्खा सिंह भी पहुंचे थे और निर्मल पहुंची थी और उस वक्त वो भारतीय वॉलीबॉल टीम की कप्तान थी. अगले 5 साल तक दोनों के बीच ज्यादा बात नहीं हुई, लेकिन साल 1960 में फिर से दोनों की मुलाकात हुई और बातचीत शुरू हुई, तब दोनों ने ये निश्चित किया कि अब दोनों को शादी कर लेनी चाहिए. लेकिन दोनों के परिवार वाले इस शादी के खिलाफ थे. जिसके बाद पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों आगे आए और उन्होंने दोनों के परिवार को समझाया जिसके बाद साल 1962 में दोनों की शादी हुई.
3. दौड़ लगाने के लिए पाकिस्तान नहीं जाना चाहते थे मिल्खा सिंह
साल 1960 में मिल्खा सिंह को पाकिस्तान में आयोजित एक रेस में हिस्सा लेने का बुलावा आया था. लेकिन उस वक्त मिल्खा सिंह ने उस रेस में शामिल होने से मना कर दिया था. जिसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने मिल्खा सिंह से बात की, तब मिल्खा सिंह ने कहा था कि वो पाकिस्तान नहीं जाना चाहते क्योंकि जब पाकिस्तान का नाम सुनते हैं तो उनके दिमाग में उस रात की यादें ताजा हो जाती हैं जब बंटवारे के वक्त कुछ लोगों द्वारा उनके माता पिता और भाई बहनों को मारा जा रहा था. लेकिन तब पंडित नेहरू ने उनसे कहा था कि खेल सद्भावना, प्यार और भाईचारे को बढ़ावा देता है, इसलिए तुम्हें पाकिस्तान जरूर जाना चाहिए. खेल दोनों देशों के रिश्ते को बेहतर करेगा जिसके बाद में पाकिस्तान जाने के लिए तैयार हुए थे.
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4. मिल्खा सिंह ऐसे बन गए 'फ्लाइंग सिख'
जब मिल्खा सिंह लाहौर के स्टेडियम में पहुंचे तो वहां पर पूरा स्टेडियम खचाखच भरा हुआ था और स्टेडियम में ऐसा सन्नाटा था जैसे मानो वहां पर कोई नहीं है. थोड़ी देर बाद रेस शुरू हुई और उन्होंने वहां के स्टार रेसर अब्दुल खालिद को हरा दिया. इस रेस को देखने के लिए पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अयूब खान भी पहुंचे थे और अयूब खान ने ही मिल्खा सिंह को इस जीत के बाद 'फ्लाइंग सिख' का खिताब दिया था. तब से मिल्खा सिंह फ्लाइंग सिख के नाम से दुनिया भर में मशहूर हो गए.
5. देश में दूसरा मिल्खा सिंह देखना चाहते थे