चंडीगढ़: पीजीआई के डॉक्टरों ने रेयर ट्यूमर के इलाज को सरल बनाने के लिए M Desmo (एम डेस्मो) नाम के इंजेक्शन का शोध किया है. ये इंजेक्शन मस्तिष्क के अंदर ना दिखने वाले ट्यूमर की पहचान करता है. जिसे सर्जरी के बाद आसानी से निकाला जा सकता है. पीजीआई के इंडोक्राइनोलॉजी और न्यूक्लियर मेडिसिन के दो डॉक्टरों ने मिलकर कुशिंग सिंड्रोम यानी रेयर ट्यूमर के इलाज में सहायक साबित होने वाले इंजेक्शन की खोज की है.
रेयर ट्यूमर को ढूंढने की दवा: इस इंजेक्शन का काम ट्यूमर की लोकेशन को पहचानना और उसे ठीक करना है. इस इंजेक्शन को बनाने वाले डॉक्टरों की मानें तो, दिमाग के निचले हिस्से में एक ग्लैंड होता है. जिसे मास्टर ग्लैंड कहा जाता है. इस ग्लैंड का आकार 1 सेंटीमीटर के आसपास होता है. इसमें होने वाले ट्यूमर का आकार आधे सेंटीमीटर से भी काम होता है. ऐसे में उस ट्यूमर को मस्तिष्क के निचले हिस्से में ढूंढने के लिए एमआरआई और पीईटी स्कैन जैसे बड़े टेस्टों की मदद लेनी पड़ती है.
ऐसे काम करती है दवा: डॉक्टर ने कहा कि इतने बड़े टेस्ट भी इस छोटे से ट्यूमर को पूरी तरह पहचान नहीं पाते. ये बड़े टेस्ट 75 प्रतिशत तक ऐसे ट्यूमर को पकड़ पाते हैं, लेकिन ये दवा 99 प्रतिशत तक इस तरह के ट्यूमर को पहचान लेती है. पीजीआई के डॉक्टरों ने 6 साल की रिसर्च करके एम डेस्मो नाम का मॉलिक्यूल बनाया है. इस दवा को रेडियाइसोटोप के साथ मिला कर मरीज के खून में मिलाया जाता है. जिससे इस इंजेक्शन से निकलने वाली दवा मरीज के ना दिखने वाले ट्यूमर पर जाकर चिपक जाती है. जिसकी मदद से वो ट्यूमर दिखने लग जाता है. जिसे पेट इमेजिंग की मदद से देखा जा सकता है.
पीजीआई चंडीगढ़ में रेयर ट्यूमर के इलाज: डॉक्टर संजय ने बताया कि यह इंजेक्शन आम लोगों के लिए नहीं है. इस इंजेक्शन को सिर्फ उन मरीजों के लिए बनाया गया है, जिन्हें रेयर ट्यूमर से संबंधित बीमारी है. इन इंजेक्शन को वही लोग लगवा सकते हैं जिनका इलाज चल रहा है या फिर किसी अस्पताल से चंडीगढ़ पीजीआई इंडोक्राइनोलॉजी विभाग में रेफर किया जाता है. इसके साथ ही वे डॉक्टर जो इस तरह के मरीज का इलाज कर रहे हैं. वे ही अपने मरीजों को यह इंजेक्शन लेने के लिए पीजीआई भेज सकते हैं. इंजेक्शन देने के बाद मरीज को पीजीआई इंडोक्राइनोलॉजी विभाग के डॉक्टर की निगरानी में कुछ समय के लिए रखा जाता है. उसके बाद ही वह अपनी सर्जरी करवा सकता है. इंजेक्शन लगने के बाद एक सर्जन पर ही निर्भर करेगा कि वह उसे पहचाने गए ट्यूमर को आसानी से निकल पाता है कि नहीं.
'मैं ये साफ बता देना चाहता हूं कि ये कोई ट्रीटमेंट नहीं है. ये एक ट्रीटमेंट का हिस्सा है. यहां जिस रेयर ट्यूमर की बात की गई है वो कॉटीकोटरोपिनोमास कि वजह से कॉर्टिसोल का लेवल शरीर में ज्यादा बना देता है. जब शरीर में कॉटिसोल कैस्टर ज्यादा बनता है. तो ये शरीर के बहुत से अंगों को प्रभावित करता है. ये शरीर के लिए खतरनाक भी साबित हो सकता है, जिसकी वजह से मृत्यु भी हो सकती है. अगर शोध की बात की जाए, तो मैं आम भाषा में ये कहना चाहूंगा कि अगर एक कमरे में 100 लोग बैठे हैं और उनमें से एक व्यक्ति को चुना जाए या ढूंढा जाए और उसको निकला जाए, तो उस प्रक्रिया तक पहुंचने में एम डेस्मो हमारी मदद करता है. इंसान के मस्तिष्क के निचले हिस्से में कुछ ऐसे ट्यूमर होते हैं. जिनको ढूंढा नहीं जा सकता, लेकिन एक इंजेक्शन की मदद से अब इस ट्यूमर को पहचाना जा सकता है.- डॉक्टर संजय भडाडा, चंडीगढ़ पीजीआई इंडोक्राइनोलॉजी विभाग के प्रमुख