चंडीगढ़: पंजाब और हरियाणा में एसवाईएल विवाद, यानी पानी के बंटवारे का झगड़ा उसी समय शुरू हो गया था जब पंजाब से अलग होकर हरियाणा राज्य का गठन हुआ था. साल 1966 से अब तक दोनों सूबों की राजनीति एसवाईएल के के ईद-गिर्द घूम रही है. केंद्र सरकार ने हलफनामा दायर कर सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि दोनों राज्यों के सीएम को आमने-सामने बैठाकर मामले का समाधान निकाला जाएगा.
मगर इस मामले में आपसी सहमति बनना दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रही. पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह पंजाब विधानसभा में कह चुके हैं कि हम शहीद हो जाएंगे, लेकिन एसवाईएल का पानी नहीं जाने देंगे. हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने भी पंजाब के मुख्यमंत्री के इस बयान का पलटवार करते हुए कहा था कि पंजाब कितनी भी ताकत लगा ले. वो हरियाणा के हिस्से के पानी को नहीं रोक सकता.
अगस्त, 2019 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दोनों राज्यों को अपने अधिकारियों की कमेटी बनाकर मामला सुलझाने के निर्देश देने के साथ ही साफ कर दिया गया कि अगर दोनों राज्य आपसी सहमति से नहर का निर्माण नहीं करते हैं तो सुप्रीम कोर्ट खुद नहर का निर्माण कराएगा. सुप्रीम कोर्ट के इस कड़े रुख पर 3 सितंबर को दोनों राज्यों की ओर से जवाब दिया जाना था, लेकिन दोनों राज्यों की दलीलों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अब चार महीने का समय दे दिया है, जिसमें नहर के निर्माण पर अंतिम फैसला लेना जरूरी हो गया है.
क्या है पूरा विवाद?
यह पूरा विवाद साल 1966 में हरियाणा राज्य के बनने से शुरू हुआ था. उस वक्त हरियाणा के सीएम पंडित भगवत दयाल शर्मा थे और पंजाब के सीएम ज्ञानी गुरमुख सिंह मुसाफिर नए नए गद्दी पर बैठे थे. पंजाब और हरियाणा के बीच जल बंटवारे को लेकर सतलुज-यमुना लिंक नहर परियोजना के अंतर्गत 214 किलोमीटर लंबा जल मार्ग तैयार करने का प्रस्ताव था. इसके तहत पंजाब से सतलुज को हरियाणा में यमुना नदी से जोड़ा जाना है.
इसका 122 किलोमीटर लंबा हिस्सा पंजाब में होगा तो शेष 92 किलोमीटर हरियाणा में. हरियाणा समान वितरण के सिद्धांत मुताबिक कुल 7.2 मिलियन एकड़ फीट पानी में से 4.2 मिलियन एकड़ फीट हिस्से पर दावा करता रहा है लेकिन पंजाब सरकार इसके लिए राजी नहीं है. हरियाणा ने इसके बाद केंद्र का दरवाजा खटखटाया और साल 1976 में केंद्र सरकार ने एक अधिसूचना जारी की जिसके तहत हरियाणा को 3.5 मिलियन एकड़ फीट पानी का आवंटन किया गया.